कमाई के मामले में महिलाएं निकली पुरुषों से आगे, ILO रिपोर्ट में खुलासा

2017 में एक्सेंचर द्वारा वैश्विक सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 67% कम कमाती थीं

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : यूं तो हर किसी को दूसरे की आमदनी अपने से अधिक ही लगती है। लेकिन यदि इसमें भी बात करें महिलाओं की तो पुरुषों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि महिलांए उनसे ज्‍यादा ही कमाती है। यही वर्ग अक्‍सर इसके लिए कई तरह का तर्क देता दिखाई देता है। लेकिन अब पुरुषों के इसी वर्ग का अंदेशा सही साबित हुआ है।दरअसल, अंर्तराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की 20 अगस्त 2018 को जारी रिपोर्ट में भारत में आम लोगों की कमाई को लेकर खुलासा हुआ है। इसमें कहा गया है कि इसी तरह महिलाओं के लिए औसत मजदूरी तेजी से बढ़ी है, वहीं पुरूष इस मामले में महिलाओं से पीछे रह गए हैं। यह इसलिए भी खास हो जाता है क्‍योंकि पिछली रिपोर्ट में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी निचले स्‍तर पर थी। 2017 में एक्सेंचर द्वारा वैश्विक सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 67% कम कमाती थीं। लिहाजा इस बार इसमें आए बदलाव को सकारात्‍मक कहा जा सकता है।आईएलओ की ओर से प्रकाशित ‘इंडिया वेज रिपोर्ट’ में कहा गया है कि दो दशक तक भारत की औसत सालाना वृद्धि 7% रही, लेकिन न तो मजदूरी में इस हिसाब से बढ़ोतरी हुई और न ही आर्थिक असमानता में कमी आई। यह असमानता स्त्री-पुरुष, शहरी-ग्रामीण सभी मामलों में है। रिपोर्ट से पता चलता है कि कम वेतन और मजदूरी असमानता, बेहतर कार्य परिस्थितियों को प्राप्त करने और समांवेशी विकास के भारत के मार्ग में गंभीर चुनौती है। इंडिया वेज रिपोर्ट के अनुसार संगठित क्षेत्र में औसत दैनिक वेतन 513 रुपए है। असंगठित क्षेत्र में यह सिर्फ 166 रुपए यानी संगठित क्षेत्र का 32% है। विकास से रोजगार के पैटर्न में बदलाव आया. फिर भी 45% श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं।आपको यहां पर ये भी बता दें कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल जेंडर डिफ्रेंस इंडेक्स 2017 की रिपोर्ट में भारत विश्व भर में 108वें स्थान पर रहा था। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ल्‍ड वैज रिपोर्ट 2016-17 के अनुसार भारत में लिंग मजदूरी असमानता विश्व के सबसे खराब स्तर पर था।रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण (ईयूएस) और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आधार पर रिपोर्ट का अनुमान है कि वास्तविक औसत दैनिक मजदूरी 1993-94 और 2011-12 के बीच लगभग दोगुना हो गई है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कमाई तेजी से बढ़ी है। इसी तरह दिहाड़ी मजदूरों की कमाई तेजी से बढ़ी है, वहीं नियमित कर्मचारियों की तनख्वाह में इस तुलना में कम वृद्धि हुई है।असंगठित क्षेत्र में मजदूरी ज्यादा बढ़ी है, जबकि संगठित क्षेत्र में काम करनेवाले इस तुलना में पीछे रह गए हैं।आईएलओ की ‘इंडिया वेज रिपोर्ट’ के मुताबिक काम के बदले कम वेतन और मजदूरी में असमानता आज भी भारत के श्रम बाजार में चुनौती बनी हुई है।वर्ष 2011-12 में, भारत में औसत मजदूरी लगभग 247 रूपये प्रतिदिन रही है। दिहाड़ी श्रमिकों की औसत मजदूरी 143 रूपये प्रतिदिन रही।केवल शहरी क्षेत्रों के कुछ सेक्टर्स में ही प्रोफेशनल्स की कमाई औसत से ज्यादा रही है। ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों के दिहाड़ी श्रमिकों की मजदूरी दोगुनी हुई है।आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, अंतरराष्ट्रीय आधारों पर मजदूरों तथा श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए नियम बनाता है। यह संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट संस्था है। यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों को पंजीकृत तो कर सकती है, किंतु यह सरकारों पर प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकती है। इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की एक एजेंसी के रूप में वर्ष 1919 में की गई थी।भारत इस संगठन का एक संस्थापक सदस्य रहा है। वर्ष 1969 में इसे विश्व शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में स्थित है। वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ है।

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