(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : टेलीकाम सेक्टर को रहत देने की कोशिश में सरकार अब ग्राहकों से पैसा वसूलने जा सकती है। सरकार ने टेलीकॉम सेक्टर पर बढ़ते वित्तीय दबाव को कम करने के उपाय सुझाने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की है। सुप्रीम कोर्ट के टेलीकॉम कंपनियों को 1.42 लाख करोड़ रुपए के पुराने बकायों का भुगतान करने का आदेश देने के कुछ दिन बाद ही सरकार ने यह निर्णय लिया है। साथ ही ट्राई से भी कई उपायों पर विचार करने को कहा गया है। इनमें फ्री-कॉलिंग समाप्त करने और डेटा दरों में इजाफा करना शामिल हो सकता है। समिति टेलीकॉम कंपनियों के स्पेक्ट्रम भुगतान को कुछ समय के लिए टालने के साथ-साथ कंपनियों के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) में योगदान के नियम पर भी पुनर्विचार कर सकती है। समिति में वित्त सचिव, दूरसंचार सचिव और विधि सचिव समेत अन्य मंत्रालयों के सचिव शामिल किए जाएंगे।टेलीकॉम कंपनियों के एजीआर की गणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हाल के निर्णय के बाद कंपनियों ने बढ़ते वित्तीय संकट की बात की है। भारती एयरटेल ने एजीआर के मुद्दे की वजह से सितंबर तिमाही के परिणामों की घोषणा 14 नवंबर तक टाल दी है। कंपनी को अपने दूसरी तिमाही के नतीजों की घोषणा मंगलवार को ही करनी थी। ट्राई कॉलिंग और डेटा सर्विसेज के लिए न्यूनतम शुल्क निर्धारित करने के पहलू पर काम कर सकता है। ऐसे में मुफ्त कॉलिंग खत्म हो सकती है। सचिवों की समिति वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए स्पेट्रम चार्ज की राशि चुकाने में विलंब की सिफारिश कर सकती है। यूएसओएफ को 5% से घटाकर 3% करने का सुझाव दिया जा सकता है। मौजूदा समय में भारत में डेटा की दरें दुनिया में सबसे कम है। यहां 1 जीबी डेटा का औसत शुल्क सिर्फ 8 रुपए है। रिलायंस जियो के मार्केट में आने के बाद डेटा की दरें इतनी कम हुईं। इसका असर कंपनियों के प्रति यूजर रेवेन्यू (एआरपीयू) भी पड़ा। 2014 में प्रति यूजर औसत रेवेन्यू 174 रुपए था। 2018-19 में यह घटकर 113 रुपए पर आ गया। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद सबसे ज्यादा असर एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के ऊपर ही पड़ेगा। अगर सरकार की ओर से कोई राहत पैकेज जारी नहीं होता है तो एयरटेल को करीब 42 हजार करोड़ और वोडाफोन-आइडिया को करीब 40 हजार करोड़ रुपए चुकाने पड़ सकते हैं। वहीं, रिलायंस जियो पर सिर्फ 14 करोड़ रुपए का बकाया है। अगर टेलीकॉम कंपनियों को राहत नहीं मिली तो इस सेक्टर में छंटनी की संभावना काफी बढ़ सकती है। साथ ही नई भर्तियों पर भी रोक लग जाएगी। बकाया चुकाने के लिए कंपनियों को स्टाफिंग और कैपेक्स जैसे खर्च में कटौती करनी पड़ेगी। इसका असर नेटवर्क में इन्वेस्टमेंट, इक्विपमेंट मेकर्स और टावर कंपनियों पर भी पड़ सकता है।