(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : CPEC पर अमेरिका और पाक की गरमा गरमी जारी है। पाकिस्तान के नवनियुक्त योजना मंत्री असद उमर ने शनिवार को कहा कि चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) हमारे देश के लिए बोझ कभी साबित नहीं होगा। यह आने वाले साल में देश की औद्योगिक वृद्धि के लिए मजबूत आधार तैयार करने में मदद करेगा। कॉरिडोर की वजह से चीन के साथ रिश्ते कभी खत्म नहीं होंगे। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने उमर के हवाले से कहा कि पाकिस्तान सीपीईसी को मदद के तौर पर नहीं देखता। सरकार ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि वह विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों में पाकिस्तान को जो भी सहायता मिली थी, वह देश की प्रगति के लिए वास्तविक रूप से योगदान नहीं कर रही थी। जबकि हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। अमेरिका ने 21 नवंबर को कहा था कि पाकिस्तान सीपीईसी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा है। उमर ने कहा, “हमने बीते कई मौकों पर कहा है कि दोनों देशों को सीपीईसी से लाभ हुआ है। चीनी कंपनियों को व्यापार मिला, क्योंकि उनकी मशीनरी निर्यात की गई और पाकिस्तान आई। पाकिस्तान में बुनियादी ढांचे की कमी, विशेष रूप से बिजली की कमी को पूरा किया गया।” इससे पहले, अमेरिकी शीर्ष राजनयिक ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि चीन का सीपीईसी में निवेश करने का मकसद मदद करना नहीं, बल्कि खुद को फायदा पहुंचाना है। अगर चीन लंबे वक्त तक सीपीईसी के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करता रहा तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। इकोनॉमिक कॉरिडोर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है। इसमें पाकिस्तान के ग्वादर से चीन के काशगर तक 50 बिलियन डॉलर (करीब 3 लाख करोड़ रुपए) की लागत से आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। इसके जरिए चीन की अरब सागर तक पहुंच हो जाएगी। सीपीईसी के तहत चीन सड़क, बंदरगाह, रेलवे और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। इसी साल अक्टूबर में कॉरिडोर के दो हिस्सों का काम ठेकेदारों को भुगतान न होने की वजह से बंद करना पड़ा। पाकिस्तान सरकार की पब्लिक अकाउंट कमेटी (पीएसी) ने इसकी जानकारी दी थी। इमरान अक्टूबर में ही चीन दौरे पर गए थे। उन्होंने चीन सरकार को भरोसा दिलाया था कि कॉरिडोर का पूरा मामला अब वे ही देखेंगे। पीएसी ने वित्त मंत्रालय और योजना आयोग को पत्र लिखा था। पीएसी के चेयरमैन नूर आलम खान ने 2017-18 की ऑडिट रिपोर्ट भी पत्र के साथ संलग्न की थी। ‘द न्यूज’ अखबार के मुताबिक, पहली और दूसरी तिमाही के लिए कुल 20 हजार करोड़ पाकिस्तानी रुपए की जरूरत थी। सरकार ने सिर्फ 7 हजार करोड़ रुपए जारी किए।