रिटायर्ड मेजर जनरल ने कहा सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए।

वायुसेना में महिला अधिकारियों की बात करें तो यह अन्‍य सेना के मुकाबले कहीं अधिक हैं।

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका को लेकर जो सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है वो एक अहम मुकाम पर पहुंचती दिखाई दे रही है। इस सुनवाई का सबसे अहम पहलू महिलाओं को कमांड पोस्‍ट सौंपे जाने को लेकर है। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि कमांड पोस्‍ट सेना की किसी यूनिट या सबयूनिट का हेडक्‍वार्टर होता है, जहां का मुखिया या कमांडर अपनी यूनिट के दूसरे साथियों या जवानों के साथ मिलकर अपने काम को अंजाम देता है। यहां पर ही किसी भी ऑपरेशन से जुड़ी रणनीति बनाई जाती है, जिसमें कमांडर अपने जूनियर को अपना आदेश देता है और आगे की रणनीति बताता है। जहां तक भारतीय सेना में महिलाओं की बात है तो वर्तमान में केवल भारतीय वायुसेना में महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल किया गया है। वायुसेना में महिला अधिकारियों की बात करें तो यह अन्‍य सेना के मुकाबले कहीं अधिक हैं। वायुसेना में जहां 13.09 फीसद महिला अधिकारी हैं वहीं नौसेना में 6 फीसद और सेना में यह करीब 4 फीसद तक है। वहीं सेना के पूर्व अधिकारी भी इस बात से इत्‍तफाक नहीं रखते हैं कि महिलाओं को सेना में कमांडर पोस्टिंग न दी जाए। रिटायर्ड मेजर जनरल का कहना है कि महिलाओं को इस काबिल न मानना ही उस मानसिकता को दर्शाता है जो महिलाओं को हीन मानती है, जबकि हकीकत ये नहीं है। उनके मुताबिक महिलाएं आज देश की रक्षा में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। ऐसे में उन्‍हें इस तरह की पोस्टिंग से नकारना सही नहीं है। वह मानते हैं कि महिलाओं को लेकर जिन परेशानियों की बात की जा रही है वह भी सही नहीं है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि दुनिया के कई देशों में महिलाओं को कई अहम पोजिशन दी गई हैं। इजरायल समेत अमेरिका में भी महिलाएं कमान संभाल रही हैं। भारत में जो सवाल महिलाओं की शारीरिक बनावट और उन्‍हें होने वाली परेशानी को लेकर उठ रहा है उसका जवाब जैसे इन देशों ने पा लिया है वैसे ही भारत को भी इनका जवाब मिल जाएगा। इस बात से भी इत्‍तफाक नहीं रखते हैं कि महिलाएं पुरुषों की यूनिट को हेड करेंगी तो वो उनका कहा नहीं मानेंगे, क्‍योंकि वो एक महिला हैं, ऐसा नहीं होगा। उनके मुताबिक, फौजी कभी अपने कमांडर का हुक्‍म इसलिए नहीं स्‍वीकारता है कि वह एक पुरुष दे रहा है, बल्कि इसलिए स्‍वीकारता है, क्‍योंकि वो उससे सुपीरियर है और उसका बॉस है। लिहाजा ये कहना कि पुरुषों की बटालियन महिला अधिकारी का हुक्‍म मानने से इनकार कर सकती है सरासर गलत है। उनके मुताबिक, हमें इतिहास से सबक लेने की जरूरत है जहां पर हमारे सामने रानी लक्ष्‍मीबाई का उदाहरण है, जिसने जंग के मैदान में अंग्रेजों से लोहा लिया और वीरगति प्राप्‍त की थी। भारतीय इतिहास में इस तरह के एक नहीं, बल्कि कई उदाहरण मौजूद हैं। दूसरे विश्‍व युद्ध में कई देशों की सेनाओं में महिलाओं ने बढ़चढ़कर हिस्‍सा भी लिया था। आपको यहां पर बता दें कि भारत में जहां महिलाओं को सेना में अहम कमान सौंपने पर चर्चा चल रही है। वहीं, कई देश ऐसे हैं जहां की सेना में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। यह पुरुषों के साथ जहां मोर्चों पर खड़ी हैं वहीं कई दूसरी जगहों पर भी अहम भूमिकाओं में हैं।

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