वेस्ट बंगाल: सिलीगुड़ी में कौलान्तक पीठ का मंत्रयान दीक्षा का शिविर संपन्न।

पहली बार आध्यात्मिक शिक्षा का शिविर सिलीगुड़ी में आयोजित।

(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ) सिलीगुड़ी: कौलान्तक पीठ द्वारा मंत्रयान दीक्षा का शिविर सिलीगुड़ी में आयोजित किया गया। जो कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ (ईशपुत्र) की छत्रछाया में संपन्न हुआ। यह दो दिन का विशेष मन्त्रयान दीक्षा शिवर था। सभी साधक इस मन्त्रयान सम्बन्धी नई दीक्षा को ले कर बहुत ही उत्त्साहित दिखे। वहाँ उपस्थित एक साधक सूर्यकांत नाथ जो मुंबई से थे, ने हमे इस दीक्षा के बारे में बताया कि यह साधना शिविर अपनी तरह का पहला शिवर था। ज्ञात हो कि सूर्यकांत नाथ भी एक धर्म गुरु हैं। क्योंकि कौलान्तक पीठ द्वारा आयोजित दीक्षाओं में विशाल यंत्रों की पूजा होती है, जो कि एक विशेष आकर्षण भी होता है। किन्तु इस दीक्षा में कोई यन्त्र नहीं था इस कारण भी जिज्ञासा अधिक थी। यन्त्र ना होने का कारण ये था कि इस साधना के लिए मानव मस्तिष्क को ही, एक यंत्र की तरह माना जाता है और साधना प्रयोगों के बाद, मानव मस्तिष्क स्वयं यंत्रवत कार्य करता है। मंत्रों की गूँज और ध्वनियाँ सीधे मस्तिष्क के कार्य को प्रभावित करती हैं। मंत्रयान सिद्धों की एक प्रमुख और प्राचीन परंपरा है जिसमें मन्त्रों से सम्बंधित सभी प्रकार का ज्ञान दिया जाता है। साधकों ने यह भी बताया कि मंत्रयान में ध्यान व योग की मदद भी ली जाती है। साधक प्रकृति में शांत मन से बैठ कर ध्वनियों को सुन कर गहन समाधी तक जाता है। आयोजकों ने यह भी बताया कि इस शिवर में बहुत से साधकों ने आवेदन किया था। किन्तु कुछ ही चयनित साधकों को इस साधना को ग्रहण करने की अनुमति मिली। सिक्किम से आये एक साधक सुभाष कुमार लिम्बू ने हमें बताया कि यह उनका कौलान्तक पीठ में पहला शिवर है और मंत्रयान दीक्षा का उनका अनुभव वास्तव में बहुत ही आनंदित करने वाला था। वहीं दूसरी ओर शिवर में साधिकाओं ने भी दीक्षा ग्रहण की। जिनमें से एक साधिका ओएंड्रिला दास जो कोलकाता से आई थी ने बताया कि उनको अध्यात्म में बचपन से ही रूचि है। इसलिए उनहोंने ईशपुत्र से दीक्षा ग्रहण कर ईशपुत्र को अपना गुरु बनाया है। ईशपुत्र के आने से साधकों में खुशी और उमंग की लहर देखने को मिली। कौलान्तक पीठ की ये विशेषता है कि वो साधकों को प्रत्येक विषय का गहन प्रशिक्षण देता है। इस मन्त्रयान शिविर में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ईशपुत्र ने मंत्र की उत्त्पत्ति, प्रभाव और प्रकारों पर गहन चर्चा की। साधकों के प्रश्नों के उत्तर देने के साथ-साथ ही ध्यान की बहुत सी विधियां भी साधकों को प्रदान की। योगासन और ऋषियों की परम्पराओं का ज्ञान देने के साथ-साथ प्राणायामों की गहनता पर भी प्रकाश डाला। इस शिविर को देख कर लोगों की धारणा ही बदल गई। क्योंकि लोगों को आम तौर पर ये लगता है कि धार्मिक आयोजन यानि प्रवचन। जबकि पहली बार इस तरह से आध्यात्मिक शिक्षा का शिविर सिलीगुड़ी में आयोजित किया गया था। बहुत से लोगों को इस शिविर की जानकारी देर से मिलने के कारण वो भाग नहीं ले पाए। लेकिन पीठ दोबारा भी ऐसे शिविरों का सिलीगुड़ी में सञ्चालन करेगी, इस आश्वासन से उम्मीदें बढ़ी हैं।

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