(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने कहा कि हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए चीन को लीज पर दिया जाना पूर्ववर्ती सरकार की गलती थी। इस समझौते पर फिर से बातचीत चल रही है। निवेश के लिए ऋण का छोटा हिस्सा देना अलग बात है लेकिन एक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण आर्थिक बंदरगाह को पूरी तरह दे देना स्वीकार्य नहीं है। इस पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए था। चीन ने श्रीलंका द्वारा ऋण की भरपाई न किए जाने पर 2017 में हम्बनटोटा बंदरगाह को अपने अधिकार में ले लिया था। राजपक्षे ने कहा कि वह श्रीलंका को एक तटस्थ राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं। वह भारत के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और इसलिए वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे किसी के हित को नुकसान पहुंचे। उन्होंने कहा कि वह श्रीलंका-भारत के बीच चल रहे शक्ति संघर्ष के बीच में नहीं आना चाहते। इसी महीने हुए राष्ट्रपति चुनाव में गोतबाया राजपक्षे ने जीत हासिल की। उन्होंने 18 सितंबर को शपथ ली थी। गोतबाया 29 नवंबर को अपने पहले आधिकारिक यात्रा पर भारत आएंगे। उन्होंने कहा, “हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और यह वर्तमान की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रीलंका एक महत्वपूर्ण रणनीतिक हिस्से में मौजूद है और सभी समुद्री रास्ते श्रीलंका के पूर्व और पश्चिम से होकर गुजरते हैं। इसीलिए, इन रास्तों को मुक्त होना चाहिए और किसी भी देश को इन रास्तों पर नियंत्रण स्थापित नहीं करने दिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि महिंदा राजपक्षे के पूर्व कार्यकाल (2005-2015) के दौरान चीन के साथ पूरी तरह व्यावसायिक संबंध रहे थे। उन्होंने कहा, “मैंने भारत, सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी निवेश के लिए आमंत्रित किया है। सिर्फ चीन आमंत्रित नहीं किया गया है।” प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए आतंकी हमले के बाद श्रीलंका का जून 2019 में दौरा किया था और एक आशावादी दृष्टिकोण के साथ श्रीलंका की हिम्मत बढ़ाई थी। हालांकि वे 2015 और 2017 में भी श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का 27 साल बाद किया गया दौरा था। मोदी की श्रीलंका यात्रा ने कई द्विपक्षीय समझौतों के लिए जमीन बनाई है और काफी हद तक आपसी विश्वास को बढ़ाया है। मगर अब यह कितना प्रासंगिक रहेगा, कहना कठिन है।