(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : वक्फ कानून 1995 की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। एक याचिका दाखिल हुई है जिसमें कहा गया है कि ये कानून मुसलमानों को धार्मिक स्थल के मामले में हिन्दुओं और अन्य धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव करता है। इससे संविधान में दी गई धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अवधारणा का हनन होता है। कानून को हिन्दुओं व अन्य धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। यह याचिका आगरा के रहने वाले दिग्विजय नाथ तिवारी ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है। तिवारी ने स्वयं को जगनेर रोड आगरा स्थित संत ठाकुर कमाल सिंह की समाधि का सेवादार और वहां स्थित भगवान शिव, हनुमान और कालिका माता मंदिर का सेवादार बताते हुए आरोप लगाया है कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड इस कानून की आड़ में लगातार सार्वजनिक संपत्तियों और हिन्दुओं की संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करा रहा है। इसी तरह उसने हिन्दुओं द्वारा पिछले 300 वर्षों से प्रबंधन और देखरेख की जा रही संपत्ति दरगाह बाबा कमाल खान को बगैर कोई नोटिस जारी किये हुए वक्फ संपत्ति घोषित करा लिया है। बोर्ड ने 31 जनवरी 2018 को इसके वक्फ संपत्ति होने का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया है। याचिका में दरगाह बाबा कमाल खान की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने का आदेश भी रद करने की मांग की है। तिवारी के वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि सेन्ट्रल वक्फ कानून 1995 के जरिए बोर्ड को असीमित शक्तियां मिली हैं जिसके जरिए वह सार्वजनिक संपत्तियों, हिन्दू न्यास, मठ व अन्य धार्मिक स्थान की संपत्ति कब्जा कर सकता है। जबकि बोर्ड की कार्रवाई से पीडि़त व्यक्ति के पास अपनी शिकायत करने के लिए कोई उचित फोरम नहीं है। इस कानून की धारा 4,5, और 36 के तहत बोर्ड को अधिकार है कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है और इसी का इस्तेमाल करते हुए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। एएसआई ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। इसी तरह धारा 54 में वक्फ बोर्ड को अधिकार है कि वह किसी भी संपत्ति को अवैध कब्जाधारी से वापस ले सकता है। विष्णु कहते हैं कि ऐसे कई प्रावधान है जो वक्फ संपत्ति के बारे में मुस्लिम समुदाय को मिले हैं जबकि हिन्दुओं के मठ न्यास आदि के बारे में हिन्दुओं या अन्य धर्मावलंबियों को इस तरह के विशेष अधिकार नहीं हैं। सिर्फ एक समुदाय के पक्ष में बनाए गए इस कानून से हिन्दुओं और अन्य धर्मावलंबियों को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 मे मिले धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार का हनन होता है। याचिका मे कानूनी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि क्या संसद हिन्दुओं के न्यास, मठ, धार्मिक और चैरिटेबल संस्थाओं की तुलना में मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों को अधिक अधिकार और शक्तियां देने का विशेष कानून पारित कर सकती है। कहा गया है कि वक्फ कानून 1995 सिर्फ धर्म के आधार पर मुसलमानों को विशेष अधिकार देते हुए बनाया गया है इसलिए ये अनुच्छेद 14 व 15 में मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।