कचरे से किसान होंगे मालामाल, इथेनॉल से दौड़ेगी आपकी कार

अभी देश में पेट्रोल में 10 फीसद इथेनॉल मिलाने की इजाजत है, जिसे 2022 में बढ़ाकर 15 और 2030 में 20 फीसद इथेनॉल मिलाने की योजना है

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : स्‍वच्‍छ ईंधन और कच्‍चे तेल की आयात की निर्भरता को कम करने के मकसद से बायोफ्यूल देश के लिए मील का पत्‍थर साबित होगा। आखिर क्‍या है सरकार की बायोफ्यूल योजना। भारत की जरूरतों के हिसाब यह किस तरह से यह उपयोगी है और क्‍या है इसके समक्ष चुनौतियां।ऊर्जा के क्षेत्र में जैसे पेट्रोल, डीजल और सीएनजी को हम केवल 18 फीसद ही देश में उत्‍पादन करते हैं, बाकी 88 फीसद आयात किया जाता है। इसके लिए प्रतिवर्ष आठ हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा का तेल दूसरे देशों से आयात करते हैं। अभी देश में पेट्रोल में 10 फीसद इथेनॉल मिलाने की इजाजत है, जिसे 2022 में बढ़ाकर 15 और 2030 में 20 फीसद इथेनॉल मिलाने की योजना है। साथ ही इसके उपयोग में आने वाले कच्‍चे माल के दायरे को बढ़ाने की कवायद चल रही है।क्‍लीन एनर्जी के क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बी-3 योजना भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनाने की एक पहल है। बी-3 यानी बायोमास, बायोफ्यूल और बायोएनर्जी। ये भविष्‍य में ऊर्जा के तीन बड़े स्रोत हैं। इथेनॉल के अतिरिक्‍त आज कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का भी तेज गति से काम चल रहा है। देश की ट्रांसपोर्ट व्‍यवस्‍था में सीएनजी के इस्‍तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि पेट्रोल-डीजल से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सके। फिलहाल सीएनजी विदेश से आयात किया जा रहा है। अब बायो-सीएनजी से विदेशों पर निर्भरता को कम करने के प्रयास जारी है।केंद्र में एनडीए सरकार बायोमास को बायोफ्यूल में बदलने के लिए बहुत बड़े स्‍तर पर निवेश कर रही है। देशभर में दस हजार करोड़ रुपये की लागत से 12 आधुनिक रिफाइनरी बनाने की योजना है। एक रिफाइनरी से लगभग 1000-1500 लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। यानि रिफाइनरी के संचालन से लेकर सप्‍लाई चेन तक, लगभग डेढ़ लाख नौजवानों को रोजगार के नए अवसर उपलब्‍ध होंगे। इसके अलावा गोबर से ईंधन बनाने की योजना भी प्रगति पर है।गन्‍ने से इथेनॉल बनाने की योजना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की एक महत्‍वाकांक्षी योजना थी, उस समय इस पर काम प्रारंभ हुआ था। लेकिन इसके बाद इस योजना को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया। वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार ने बनी तो इस योजना पर बकायदा एक रोडमैप तैयार किया गया। इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम शुरू किया गया। आज देश के 25 राज्‍य और केंद्र शासित प्रदेशों में यह प्रोग्राम सुचारू रूप से चल रहा है। बीते चार वर्षों में इथेनॉल का रिकॉर्ड उत्‍पादन किया गया है और आने वाले चार वर्षों में लगभग 450 करोड़ इथेनॉल के उत्‍पादन का लक्ष्‍य रखा गया है।इथेनॉल से ना सिर्फ किसानों को लाभ पहुंचेगा, बल्कि देश का पैसा भी बचाया जा सकेगा। इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिक्‍स करने से पिछले वर्ष देश को लगभग चार हजार करोड़ रुपये के बराबर की विदेशी मुद्रा की बचत हुई।। अगले चार वर्ष में ये बचत करीब-करीब 12 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्‍य रखा गया है। इतना ही नहीं, अगले चार वर्ष में गन्‍ने से इथेनॉल बनाने भर से ही लगभग 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक जुटने का अनुमान है। इस बचत से और गन्‍ने के लिए मिले विकल्‍प से गन्‍ना किसानों को जो बार-बार मुसीबतों को झेलना पड़ता है उसका एक स्‍थायी समाधान का रास्‍ता निकलेगा।

बायोफ्यूल के स्रोत
1- देश की राष्‍ट्रीय नीति के तहत बायोफ्यूल न सिर्फ फसलों से बल्कि घर से निकलने वाले कूड़े, खेत से निकलने वाले कचरे और पशुओं के गोबर को ईंधन में बदलने की राष्‍ट्रव्‍यापी योजना है।

2- खास बात यह है कि इसमें गेहूं, चावल, मक्‍का, आलू और सब्जियां जो अक्‍सर मौसम की वजह से या भंडारण के अभाव के कारण खराब हो जाती हैं, सड़ जाती हैं, बर्बाद हो जाती हैं। इसका इस्‍तेमाल भी इथेनॉल बनाने के लिए किया जाएगा।

3- आने वाले समय में केले के छिल्के, जो ना सिर्फ किसान बल्कि हर घर में कचरे के रूप में आसानी से मिल जाते हैं, वो भी ईंधन के रूप में काम आएगा।

4- इसके अलावा घास और बांस से भी इथेनॉल बनाए जाने का लक्ष्‍य है। बांस विशेष तौर पर उत्‍तर-पूर्व और दूसरे आदिवासी इलाके में अच्‍छी मात्रा में पैदा होता है। ऐसे में वहां की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए ये महत्‍वपूर्ण कदम होगा, जो बांस की खेती करने वालों को फायदा करेगा।

5- हरियाणा और पंजाब में पराली से इथेनॉल बनाने की संभावनाओं पर बहुत व्‍यापक रूप से काम किया जा रहा है। यानि अब पराली भी आपको एक आय का स्रोत बन सकती है। और इससे प्रदूषण की भी राहत मिलेगी और किसानों की अतिरिक्‍त आय हासिल होगा।

अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने बायोफ्यूल का इस्तेमाल करके हवाई जहाज उड़ाया है। इसमें से भी केवल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में ही बायोफ्यूल का इस्तेमाल कॉमर्शियल फ्लाइट्स में हो रहा है। जट्रोफा के बीज से बने बायोफ्यूल से उड़ने वाली देश की पहली एयरलाइन्स बनी है ‘स्पाइस जेट’। अपनी दाईं टंकी में बायोफ्यूल और एटीएफ (एविएशन टर्बाइन फ्यूल) का मिश्रण और बाईं टंकी में प्लान बी यानी 100 फीसद एटीएफ भरे हुए इस विमान ने देहरादून से दिल्ली के लिए लिए सफल उड़ान भरी।इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट असोसिएशन (आईएटीए) ने लक्ष्य रखा है कि 2050 तक विमानों से होने वाले प्रदूषण को आधा कर दिया जाएगा। बायोफ्यूल के बिना यह लक्ष्य असंभव लगता है तब जबकि दुनिया भर के कार्बन फुटप्रिंट्स में ढाई प्रतिशत से ज़्यादा पैरों के निशान एयरलाइन इंडस्ट्री के हैं। देहरादून के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम संस्थान में जट्रोफा को छत्तीसगढ़ से लाया गया। छत्तीसगढ़ के 500 से ज़्यादा परिवारों ने इसकी खेती की थी।

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