कानून व्यवस्था नियंत्रण के बाहर, पुलिस से उठ रहा जन विश्वास

म प्र, रीवा (प्रद्युम्न शुक्ला) : दिनो दिन जिले में अपराधों की संख्या बढ़ रही है। जो लोग पुलिस थानों में पहुंचते हैं उनकी रिपोर्ट कभी दर्ज होती है, कभी नहीं होती। मजबूरन लोग पुलिस अधीक्षक तक पहुंचते हैं और उन्हें ज्ञापन सौपते हैं। लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता। लोगों को स्मरण आता है कि इसी जिले में ऐसे कलेक्टर और एसपी हुए हैं जिनके नाम से लोग कांपते रहे हैं। उन्हें हमेशा यह भय बना रहता था कि कहीं रिक्शा से कहीं साइकिल से कहीं पैदल चलकर कलेक्टर और एसपी न पहुंच जाएं। इसलिए हर व्यवस्था  पटरी पर चल रही थी। लेकिन इस जिले का दुर्भाग्य है जो भी अधिकारी यहां पदस्थ होता है वह केवल अपने प्रचार प्रसार तक सिमट जाता है। जिले की कानून व्यवस्था से उसका कोई वास्ता नहीं होता। यही वजह है कि जिले में महिलाओं से जुड़े गंभीर अपराध लगातार हो रहे हैं। मारपीट डकैती लूट चोरी राहजनी से लेकर बाल अपराध तक खुलेआम होते हैं। पुलिस पर आम लोगों का भरोसा लगातार टूटता जा रहा है। SP को जो शिकायतें मिलती है वह संबंधित थानों को भेजने तक सीमित होती है। पुलिस ने कभी भी यह नहीं देखा कि जो निर्देश उन्होंने अपने मातहतों को दिया उसका किसी ने पालन किया या नहीं। जहां तक कलेक्टर का सवाल है जन सुनवाई के परिणाम सभी के सामने है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों की समस्याओं का समाधान तत्काल हो इसलिए हर मंगलवार को जनसुनवाई की व्यवस्था बनाई। परंतु शायद ही ऐसा कोई अवसर आता हो जब जिम्मेदार अधिकारी जनसुनवाई में मौजूद रहते हो और लोगों की समस्याओं का समाधान होता हो। केवल कागजी पत्र चलते हैं और लोग बार-बार वही बातें अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। थानों की हालत क्या है यह कहने की जरूरत नहीं है। वास्तव में नियम के अनुसार जिले का कोई भी पुलिस अधिकारी जिले में पदस्थ नहीं होना चाहिए। प्रधान आरक्षक से लेकर ऊपर तक के कर्मचारी उस जिले के नहीं होने चाहिए।

थानों में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए हस्ताक्षर भले ही किसी के होते हो, लेकिन मठाधीश बने मुंशी अपने मनमाफिक थाना प्रभारी को घुमाते हैं और थाना प्रभारी में यह साहस नहीं होता कि वह मुंशी के विरुद्ध कुछ कर पाए। शायद यही वजह है कि जिले में कानून व्यवस्था पूरी तरह से पंगु हो चुकी है। जगह जगह शराब बिक रही है। गांजा की पुडिया तो रीवा शहर में ही खुलेआम बिकती है। पुलिस को पता है कि कौन कहां-कहां प्रतिबंधित गांजा बेच रहा है। शराब  कहां किस तरह बिक रही है इसकी जानकारी हर पुलिस थाने को होती है, लेकिन जिले का शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां अवैध रूप से शराब ना बेची जाती हो। लेकिन क्या कभी कोई कार्यवाही होती है। इसकी जानकारी लेने के लिए कोई अधिकारी गंभीर नहीं होता। हर महीने थाना प्रभारियों की क्राइम मीटिंग होती है। पर उस मीटिंग में सिवाय भाषण एवं उपदेश देने के कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए जाते। अन्यथा ऐसा कोई कारण नहीं है कि जिले में महिलाओं से बढ़ते अपराध। जिसमें चैन स्नैचिंग लूट से लेकर अन्य मामले शामिल है। निरंतर बढ़ते चले जाएं क्राइम मीटिंग में कभी भी अधिकारी यह नहीं देखते किस थाना क्षेत्र में कितने अपराध लंबित पड़े हैं, जिनका अन्वेषण कर न्यायालय के हवाले नहीं किया गया। थाना प्रभारी कभी भी यह भी नहीं देखते कि उनके क्षेत्र में घटित अपराधों के लिए असामाजिक तत्वो को नियंत्रित किया जाए और कानून के हवाले किया जाए। पदस्थापना के मामले में तो ऐसा लगता है कि किसी का निवास का पता भले ही बाहर का हो, लेकिन अधिकांश अधिकारी इसी जिले के निवासी हो चुके हैं। जो घूम फिर कर किसी जिले में किसी न किसी थाने में अथवा दफ्तर में अपने को स्थापित कर लेते हैं। ऐसे में यदि अपराध बढ़ते हैं तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि पुलिस अपराधों को गंभीरता से लें और अपराधियों पर गलबहियां डालकर चलना छोड़े और सख्त कार्यवाही करें।

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