(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : जरा-सी विषम परिस्थिति सामने आने पर हम हताश-निराश हो जाते हैं। तभी तो विद्या, युक्ति और प्रबंधन के विलक्षण संयोजक गजानन गणेश हमें सीख देते हैं कि हम सब भी उनके समान अपनी बुद्धि व विवेक का सदुपयोग करें, जिससे कि राह की बाधाओं पर विजय पाई जा सके.भारतीय देव परंपरा में सर्वाधिक विलक्षण देवता हैं श्रीगणेश। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य गणपति वंदना के बिना शुरू नहीं होता। वे विघ्नहर्ता हैं, शुभत्व का पर्याय हैं। सद्ज्ञान के प्रदाता व नेतृत्वकर्ता हैं। उन्हें ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी माना जाता है। वैदिक संस्कृति में पंचतत्वों के प्रतीक रूप में जिन पांच महाशक्तियों (सूर्य, शक्ति, विष्णु, शिव और गणेश) की उपासना की परंपरा हमारे ऋ षियों ने डाली थी, उनमें गणेश सर्वोपरि माने जाते हैं। इसीलिए वैदिक युग से वर्तमान समय तक उनकी स्वीकार्यता प्रथम पूज्य देवशक्ति की बनी हुई है। श्रीगणेश का सर्वोपरि बुद्धिमत्ता, बहुआयामी व्यक्तित्व तथा लोकनायक-सा उदात्त चरित्र है। उन्हें प्रथम लिपिकार माना जाता है। उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेदव्यासजी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था।हमारे सारे काम बिना किसी विघ्न-बाधा व अड़चन के सफलता से पूरे हो जाएं, कोई अनिष्ट न आए, इसी कामना से हम अपने सभी कायरें का शुभारंभ गणपति वंदना के साथ करते हैं। विवाह आदि मांगलिक अवसर हों या नए मकान, दुकान की प्रवेश पूजा या भूमिपूजन, कोई भी काम गणपति को नमन किए बिना शुरू नहीं किया जाता। व्यापारी बही-खातों पर श्रीगणेशाय नम: या शुभ-लाभ लिखकर ही काम शुरू किया जाता है। हमारे समाज में यह परंपरा सदियों से कायम है। यहां तक कि सनातनधर्मी हिंदू समाज अपनी दैनिक उपासना भी गणपति नमन के साथ शुरू करता है।सर्वाधिक विविधतापूर्ण आकृतियों में पूजे जाने वाले गजानन महाराज भारतीय समाज में बेहद गहराई से पैठे हुए हैं। हम सभी पर ऐसे सार्वदेशिक लोकप्रिय देवता गजानन महाराज की कृपादृष्टि हमेशा बनी रहे और विघ्नहर्ता के आशीर्वाद से हमारे जीवन की सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाएं, ऐसी प्रार्थना के साथ विध्नहर्ता गणेश का दस दिवसीय जन्मोत्सव भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से समूचे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भले ही इस आयोजन का शुभारंभ लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र से किया था, लेकिन आज यह लोकोत्सव समूचे देश ही नहीं, अपितु सीमाएं लांघकर विश्वव्यापी हो चुका है।जिस तरह उस दौर में तिलक ने इस उत्सव के माध्यम से राष्ट्र को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए राह की विघ्नों-अड़चनों को दूर करने का स्तुत्य प्रयास किया था, ठीक वैसे ही वर्तमान के संकटग्रस्त दौर में हम विघ्नहर्ता की अनूठी शिक्षाओं पर अमल कर अपने जीवन को सफल, उन्नत व आनंदपूर्ण बना सकते हैं।गणेश का शाब्दिक अर्थ है विघ्नों का विनाश करने वाला। समझना होगा कि गणेश तब ही विघ्नहर्ता कहलाए, जब उन्होंने अपनी बुद्धि व विवेक का इस्तेमाल कर मार्ग की बाधाओं को दूर किया। बाल गणेश से जुड़ा एक अत्यंत शिक्षाप्रद पौराणिक प्रसंग है। एक बार समस्त देवशक्तियों में इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई कि प्रथम पूजा का अधिकार किसे मिलना चाहिए। निर्णय के लिए सभी लोग देवाधिदेव शिव व माता पार्वती के पास पहुंचे। भगवान शिव ने कहा कि जो कोई भी ब्रह्मांड की परिक्रमा सबसे पहले करेगा, उसी को प्रथम पूजन का अधिकार मिलेगा। आदेश सुन सभी देव तत्क्षण अपने-अपने वाहनों से ब्रह्मांड को नापने निकल पड़े। गणेश जी पशोपेश में पड़ गए कि वे क्या करें! यह काम उनके वाहन मूषकराज की क्षमता से बाहर का था। सो उन्होंने युक्ति से काम लिया और अपने माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर उनके चरणों में शीश नवाकर पूरी विनम्रता से बोले- मैंने आपकी आज्ञा का पालन कर अपना ब्रह्मांड नाप लिया महादेव! महादेव बालक गणेश की प्रत्युत्पन्नमति से प्रभावित हुए बिना न रह सके और इस तरह वे प्रथम पूज्य बन गए।आज हम लोग दुखी इसलिए हैं, क्योंकि हम नहीं जानते कि जीवन में आने वाली परेशानियों, विघ्नों, बाधाओं से कैसा जूझा जाए। जरा-सी विषम परिस्थितियां हमें हताश-निराश कर देती हैं और हम टूटकर बिखर जाते हैं। विद्या, युक्ति और प्रबंधन के विलक्षण संयोजक गजानन गणेश सीख देते हैं कि हम सब भी उनके समान अपनी बुद्धि व विवेक का सदुपयोग कर उनके समान विघ्नहर्ता बन सकते हैं। रिद्धि-सिद्धि के दाता और बुद्धि के देवता की अनोखी काया में सफल प्रबंधन के ऐसे अनोखे सूत्र समाए हुए हैं, जिनको समझ लेने के बाद दुनिया की कोई भी विघ्न-बाधा सफलता का रास्ता नहीं रोक सकती।गणेशजी का गज मस्तक उनकी बुद्धिमत्ता व विवेकशीलता का प्रतीक है। अपने दिमाग में योजनाओं व विचारों को समाहित कर सब कुछ समग्रता के साथ सोचें, उस पर मनन करें और फिर क्रियान्वित करें।गणेश जी की सूंड कुशाग्र घ्राण यानी संवेदनशक्ति की द्योतक है, जो हर विपदा को दूर से ही सूंघ कर पहचान लेती है। सूंड यानी ग्रहण शक्ति। सजगता व हर अच्छी और बुरी चीज को पहचानना। हमारी सफलता काफी हद तक इस बात पर ही निर्भर रहती है कि अवसरों की गंध को हम कितनी कुशलता से पहचानते हैं।भगवान विघ्नहर्ता की छोटी-छोटी आंखें सूक्ष्मदर्शिता का प्रतीक व अगम्य भावों की परिचायक हैं, जो जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। जैसे चील आकाश में उड़ने के बावजूद अपने शिकार पर नजर गड़ाए रखती है, वैसे ही हमें भी लक्ष्य पर नजर गड़ाए रखनी चाहिए।सूप कर्ण गजानन सीख देते हैं कि हमें कान का कच्चा नहीं होना चाहिए। गणपति जी के विशालकाय सूपड़े जैसे कान हर छोटी-बड़ी बात को भली-भांति सुनने के प्रतीक हैं। जब तक आप दूसरों की बातों को सुनेंगे नहीं या उनके विचारों को जानेंगे नहीं, तब तक आप सही निर्णय ले ही नहीं सकते हैं। सूपकर्ण का मतलब है कि जरा-सा पत्ता भी खड़के, तो उसकी आवाज आपके कानों में आए। हालांकि सूप का एक गुण यह भी होता है कि वह सार-सार ले लेता है और कचरा बाहर कर देता है। सार को ग्रहण करने और थोथा को उड़ा देने की नीति को अपनाकर व्यर्थ और अनुपयोगी बातों को छोड़कर काम की बातों को ग्रहण करने की नीति को अपनाकर हम सुखी व तनावमुक्त जीवन जी सकते हैं।गणपति की नाक के पास उगा एक दांत, जिसके कारण वे एकदंत कहे जाते हैं, वह इस बात का द्योतक है कि मंजिल पर नजर ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए।लंबोदर गजानन का लंबा पेट सारी बातों की पचा लेने के भाव को इंगित करता है। यदि कोई विश्वास के साथ कोई बात कहता है, तो उसे स्वयं तक सीमित रखना चाहिए। आशय यह है कि अच्छा-बुरा सब हजम। जीवन की सफलता व असफलता में इस गुण की बहुत अहमियत होती है।चार भुजाधारी गणपति के चारों हाथ चार दिशाओं के सूचक हैं, यानी सफलता प्राप्त करनी है तो चहुंओर या चहुंमुखी प्रयास करना चाहिए। चारों हाथों में से एक में पाश, दूसरे में अंकुश, तीसरे में मोदक और चौथा हाथ अभय की मुद्रा में होता है। सफल प्रबंधन के लिए ये चारों ही गुण अनिवार्य हैं। नियमों का पाश हो, अनियमितताओं पर अंकुश भी हो, श्रेष्ठकर्ता को पुरस्कारस्वरूप मीठा प्रसाद यानी मोदक और कार्य करने की आजादी यानी अभय का अवसर भी मिले। यही है श्रीगणेश का सुप्रबंधन। गणपति जी के भाल पर द्वितीया का चंद्रमा सुशोभित रहता है। यह सफलता प्रसिद्धि के बावजूद चित्त को शांत रखने का प्रतीक है।मूषक गणपति का वाहन है, जो चंचलता एवं दूसरों की छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का परिचायक है। दरअसल मूषक अत्यंत छोटा एवं क्षुद्र प्राणी है। इसे अपना वाहन बना कर गणपति ने उसकी गरिमा को बढ़ाया है और यह संदेश दिया है कि तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति के प्रति भी हमें प्रेमभाव रखना चाहिए।धर्मशास्त्रों में गणेश को ब्रह्म और जगत के यथार्थ को बताने वाली परम शक्ति के रूप में रूपायित किया गया है। गणेश पुराण में वर्णित गजानन गणेश के शाब्दिक अर्थ के अनुसार गज शब्द दो व्यंजनों से बना है- ‘ग’ यानी गति या गंतव्य व ‘ज’ अर्थात जन्म अथवा उद्गम। अर्थात ऐसी ईश्वरीय शक्ति जो उत्पत्ति से लेकर अंत तक जीवन के मूल लक्ष्य का बोध जागृत रखे।