देवतालाब; एक ही पत्थर मे बना हुआ विशाल शिव मंदिर, दिव्य पंच शिव लिंग

रीवा (मप्र); देवतालाब मे एक ही पत्थर मे बना हुआ विशाल मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रातो-रात हुआ और इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था।भारत में कई ऐसे मन्दिर हैं, जो दिव्य हैं एवं अनोखे हैं.

देवतालाब मंदिर की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात मे हुआ। ऐसा कहा जाता है कि सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था लेकिन किसी ने यह नही देखा कि मंदिर का निर्माण कैसे हुआ। पूर्वजो के बताये अनुसार मंदिर के साथ ही यहां पर अलौकिक शिवलिंग का भी उत्पत्ति हुई थी। यह शिवलिग रहस्यमयी है दिन मे चार बार रंग बदली है।
एक किदवंती है कि शिव के परम भक्त महर्षि मार्कण्डेय देवतालाब मे शिव के दर्शन के हठ में अराधना मे लीन थे और स्वयंभू ने महर्षि को दर्शन देने के लिए भगवान यहां पर मंदिर बनाने के लिए विश्वकर्मा भगवान को आदेशित किया। उसके बाद रातों रात यहां विशाल मंदिर का निर्माण हुआ और शिव लिग की स्थापना हुई।

 

एक ही पत्थर पर बना हुआ अदभुत मंदिर है। इस मंदिर में कहीं जोड देखने को नही मिलेगा।
एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर के नीचे शिव का एक दूसरा मंदिर है भी और इसमे चमत्कारिक मणि मौजूद है। कई वर्षो पहले मंदिर के तहखाने से लगातार सांप बिच्छुओं के निकलने की वजह से मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया गया है। मंदिर के ठीक सामने एक गढी मौजूद थी यहां का राजा नाष्तिक था।
किवदंती है कि इस मंदिर को गिनराने की जैसे ही राजा ने योजना बनाई उसी वक्ता पूरा राजवंश जमीन मे दबकर नष्ट हो गया। इस शिवलिंग के अलावा रीवा रियासत के महाराजा ने यही पर चार अन्य मंदिरो का निर्माण कराया है।
ऐसा माना जाता कि देवतालाब के दर्शन से चारोधाम की यात्रा पूरी होती है। मंदिर से भक्तो की आस्था जुडी हुई यहां प्रति वर्ष तीन मेले लगते है और इसी आस्था से प्रति माह हजारो श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।

 

“शिव” की नगरी “देवतालाब” का नाम ही तालाब से मिलकर बना है। देवतालाब मंदिर के आसपास कई तालाब हैं। वैसे देवतालाव में कई तालाबों का होना, यहाँ की विशेषता है।
शिव मंदिर प्रांगण में जो तालाब है यह “शिव-कुण्ड” के नाम से प्रसिद्ध है। “शिव- कुण्ड” से जल लेकर ही श्रद्धालु सदाशिव भोलेनाथ के “पंच-शिवलिंग” विग्रह में चढ़ाने की परंपरा रही है। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के बुजुर्गों के अनुसार मान्यता ऐसी है कि “शिव-कुण्ड” से पांच बार जल लेकर पांचों मंदिर में जल चढ़ाया जाता है

 

 

प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध है विंध्य क्षेत्र..

रीवा में एक से बढ़कर एक प्राकृतिक धरोहरें हैं, जिनमें से कुछ के बारे में तो हम सभी जानते हैं। लेकिन अभी भी कुछ ऐसी धरोहरें है, जिन्हें बस जरूरत है तो पूरी इच्छाशक्ति के साथ इसे सहेजने और संवारने की। किला परिसर स्थित महामृत्यंजय भगवान और रानी तालाब की मां काली का दरबार, चिरहुला में सिद्ध हनुमान जी, देवतालाब के शिव मंदिर की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर है।

सफेद बाघों के लिए बना मुकुंदपुर चिडिय़ाघर भी दुनिया में अद्वितीय 

सफेद बाघों के लिए बना मुकुंदपुर चिडिय़ाघर भी दुनिया में अद्वितीय हैै। पर्यटन के मामले में किसी से पीछे नहीं है यही नहीं देउर कोठार में बौद्ध स्तूप, गोविन्दगढ़ किला और तालाब, क्योटी, बहुती, चचाई, पूर्वा, बेलौही जल प्रपात तो हैं ही विंध्य पर्वत शृंखला की सुरम्य घाटियां पर्यटन की असीम संभावनाएं समेटे हुए हैं। ऐतिहासिक लक्ष्मण बाग जहां चारों धाम के देवताओं का वास है। वहीं, कई ऐसे स्थल है जहां पर्यटकों को आकर्षित करने के मात्र संसाधन जुटने की आवश्कता है। इतना सब हो जाए तो विंध्य नगरी पर्यटन के मामले में किसी से पीछे नहीं रहेगी। ऐतिहासिक और पवित्र भूमि को देश के राष्ट्रगान में स्थान मिलने से विंध्य का गौरव और बढ़ गया है। भित्तीचित्रों ने दिलाई अलग पहचान रीवा रियासत और विंध्य प्रदेश की पूर्व राजधानी रीवा के संग्रहालय, किला, व्यंकट भवन, शिव मंदिर, रानीतालाब आज भी सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बाणसागर डैम और आसपास स्थित झरने पर्यटकों को बरबस की अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मानव की उत्पत्ति और उसकी प्रारंभिक क्रीड़ास्थली रहे विंध्यक्षेत्र के जंगल, कन्दराओं और रीवा के आसपास की पहाडिय़ों में उस काल के बनाए भित्तीचित्रों का बहुतायत की संख्या में मिलना ही विंध्य नगरी की पहचान है। अमरकंटक से चित्रकूट तक समृद्ध जैव विविधता 9वीं सदी से 11वीं सदी के मध्य के कल्चुरी काल के दुर्लभ प्रस्तरशिल्प को गुढ़ के भैरव बाबा एवं पद्मधर पार्क के हर गौरी की विशालकाय मूतिर्यों के रूप में स्थापित किया गया है। ईसा पूर्व ऋषि मुनियों का उज्जैनिन से कौशाम्बी का प्राचीन पदयात्रा का मार्ग इसी क्षेत्र से होकर जाता था। साथ ही महाभारत के पांडवों ने शहडोल में अज्ञातवास गुजारा तो चित्रकूट में राम ने वनवास काटा था। अमरकंटक से लेकर चित्रकूट तक की समृद्ध जैव विविधता। औषधीय वनस्पतियां, नर्मदा एवं सोन जैसी दो बड़ी नदियां नैसर्गिक सुंदरता की परिचायक हैं।

ये हैं आकर्षण के केंद्र

1. रीवा-इलाहाबाद मार्ग पर कटरा के समीप ईसा पूर्व के मौर्यकालीन स्तूप।

2. बीहर-बिछिया के जल प्रपात। चचाई, बहुती, क्योटी, धिनौची धाम, बरदहा घाटी।

3. गोविंदगढ़ का तालाब, खंधों की रहस्यमय घाटियां।

4. लक्ष्मणबाग मंदिर, जहां चारों धाम के देवता निवास करते हैं।

5. व्यंकट भवन जहां ऐतिहासिक सुरंग है।

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