(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली। कुंभ मेले में लोगों का एक कौतूहल और आकर्षण नागा साधुओं को लेकर होता है। साधु समाज में नागा साधुओं का जीवन सबसे अटपटा और जटिल हाेता है। आम जन के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग कर चुके इन नागा साधुओं का जीवन बहुत रहस्यमयी लगता है। आइए हम आपको बताते हैं प्रयाग राज में आए कुंभ मेले में नागा सन्यासियों के बारे में। प्राय: गेरुआ या सफेद वस्त्र धारण करने वाले भारतीय साधु संतों से अलग दिखने वाले इन नागा साधुओं के तन में कोई वस्त्र नहीं होता है। आम जन को ये नागा साधु दर्शन नहीं देते। इनका पूरा संसार अपने अखाड़े तक ही सीमित रहता है। लेकिन देश में जब-जब कुंभ या अर्द्ध कुंभ का आयोजन होता है तब-तब नागा साधुओं का आखड़ा इसमें शिरकत करता है। सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ हैरत और रहस्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता के लिए ये कुतूहल का विषय हैं, क्योंकि इनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि आदि सब अजरज भरी होती है। इनके साथ एक और धारणा जुड़ी है कि यह किस पल खुश हो जाए या नाराज इसका अंदाजा लगा पाना कठिन होता है। यही कारण है मेले में प्रशासन का इन पर खास ध्यान होता है।
अखाड़ों के वीर शैव नागा संन्यासियों नागा साधुओं का श्रंगार लोगों को सबसे अधिक आकर्षित करता है। खासकर उनके लंबे केश। नागा साधुओं के 17 श्रंगारों में पंच केश शामिल है। इसमें जिसमें लटों को पांच बार घूमा कर लपेटने का बहुत महत्व है। इनकी विशाल जटाओं के बारे में कहा जाता है कि इन लंबी जटाओं को बिना किसी भौतिक सामग्री का उपयोग किए रेत और भस्म से ही ये संवारते है।
दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ मेले में यहां का जूना अखाड़े का एकदम अलग सा लगता है। इसी अखाड़े में नागा सन्यासियों का जमावड़ा होता है। जूना अखाड़े के अंदर का नजारा लोगों को किसी रहस्य से कम नहीं होता है। यहां साधुओं की जमात आग के सामने अपनी जटाओं को भष्म से संवारते रहते हैं। यह नजारा देखकर आपको लग जाएेगा कि इन साधुओं के लिए लंबी जटाओं का कितना महत्व है। इनमें कर्इ साधुओं की शिखाएं दस फीट तक लंबी रहती है। यहां किसी भी संन्यासी के लिए अपने जटा-जूट को संभालना जीव-जगत के दर्शन की व्याख्या से कम पेचीदा नहीं है।
दरअसल, नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है। पहाड़ पर रहने वाले लोग पहाड़ी या नागा संन्यासी कहलाते हैं। इसका एक तात्पर्य एक युवा बहादुर सैनिक भी है। नागा का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु भी हैं। वे विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं, जिनकी परंपरा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गई थी। ऐसी मान्यता है कि नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं, जो उननके लिए ठंड से निपटने में साहयक साबित होते हैं। इसके साथ ही वह अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम बरतते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह विभक्त होते हैं। नागा साधुओं को विभूति, रुद्राक्ष, त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम धारण करते हैं।
कुंभ में लाखों लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ा का स्नान होता है। बता दें कि शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। हालांकि पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।