(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) :पाकिस्तान ने दुनिया को दिखाने के लिए एक नयी चाल चली है । वो भी ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था फाइनेंशल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक को कुछ ही समय हुआ है। अब पाकिस्तान आतंकी संगठनों और अपनी मिट्टी पर पल रहे आतंकियों के खिलाफ झूठे और कमजोर मामले दर्ज कर रहा है। पाकिस्तान के गुमराह करने के सबूत देते हुए सूत्रों ने बताया कि एक जुलाई को गुजरांवाला पुलिस में प्रतिबंधित दावत-वल-इरशाद के सदस्यों के खिलाफ एक सूत्र द्वारा दी गई जानकारी के आधार भूमि सौदा करने पर मामला दर्ज करवाया गया। बता दें दावत-वल-इरशाद, लश्कर-ए-तैयबा का ही एक सहायक संगठन है। जिसका प्रमुख आतंकी हाफिज सईद है। हालांकि कानून की जानकारी रखने वालों का कहना है ये एफआईआर कानून के अनुसार सही तरह से दर्ज नहीं करवाई गई है। एएनआई द्वारा शेयर की गई एफआईआर की कॉपी में लिखा है, “ये एफआईआर दोपहर डेढ़ बजे एएसआई मुमताज अहमद, इरफान अहमद 1199/सी और रिजवान आजम 1184/सी ने दर्ज की है। जो उस दिन उस्मान चौक मलिकवाल पर मौजूद थे। सूत्रों ने जानकारी दी है कि यह एफआईआर मोहम्मद अली की जमीन को आतंकी संगठनों को दिए जाने से जुड़ा है। मोहम्मद अली पुत्र सलीम अख्तर जाति राजपूत जो मलिकवाल शहर के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी एक जमीन जिसका खैवत नंबर 449, खतौनी नंबर 839 से 840 तक है, जो उस्मान चौक (राणा टाउन) मोहल्ला फैसलाबाद जिला मलिकवाल के पास स्थित है, उन्होंने अपनी जमीन का एक टुकड़ा प्रतिबंधित आतंकी संगठन दावत-वाल-इरशाद को प्रदान किया था, जो लश्कर-ए-तैयबा का एक सहायक आतंकी संगठन है। उन्होंने ये सब ये जानते हुए किया कि लश्कर-ए-तैयबा और दावत-वल-इरशाद दोनों एक प्रतिबंधित संगठन है और उनकी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए किया जाएगा इसके बावजूद उन्होंने यह जमीन उन्हें दे दी। एफआईआर में लिखा है, “इस जमीन का इस्तेमाल प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और उसके सहायक संगठन दावत-वल-इरशाद के सभी सदस्यों ने आतंकी गतिविधियों के लिए किया है। इस जमीन का इस्तेमाल उन्होंने धन एकत्र करके आतंकी फंडिंग के लिए किया और आतंकवाद के प्रचार के लिए भी इस संपत्ति का इस्तेमाल किया गया।हालांकि इसमें ना तो जमात-उद-दावा का नाम लिखा है और ना ही फलाह-ए-इंसानियत का। इसमें सिर्फ जमात-उद-दावा के पुराने नाम दावत-वल-इरशाद का नाम है। कानून के जानकारों का कहना है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका को भी सूचीबद्ध नहीं किया गया है। साथ ही एफआईआर में समयसीमा का भी ठीक से कोई उल्लेख नहीं किया गया है। पाक का ये रवैया सिर्फ एक दिखावा है ।