(न्यूज लाईव नाऊ) :28 और 29 सितम्बर (पितृ पक्ष की द्वितीय और तृतीय तिथि) को बेंगलुरु में कौलान्तक पीठ का सर्व पितृ पूजन साधना शिविर आयोजित किया गया।
इस अवसर पर स्वयं कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्रनाथ (ईशपुत्र) द्वारा भैरव भैरवियों को सर्व पितृ पूजन साधना के विषय में ज्ञान प्रदान किया गया ।इस शिविर को आयोजित करने और सफल बानाने में भैरव महायोगी अक्षर नाथ का काफी बड़ा योगदान रहा ।
पहले दिन की शुरुआत सत्ययोग अभ्यास से हुई। इसके पश्च्यात दिन का मुख्य कार्यक्रम प्रारंभ हुआ ।महायोगी सत्येन्द्रनाथ ने भैरव भैरवियों को सर्व पितृ पूजन साधना की कौल परंपरा के अनुसार साधना पद्धतियों और पितृ लोक के स्वामी देवता आर्यमा और उनकी शक्ति आर्यमयी देवी के विषय में ज्ञान प्रदान किया । उन्होंने साधकों को किसी मनुष्य द्वारा अपने पित्रों के लिए श्राद्ध कर्म करने के कारणों और उसके पीछे के मूल सिद्धांतों के विषय में सत्य निरूपण किया ।
उन्होंने कहा की “श्राद्ध शब्द ‘श्रद्धा’ शब्द से उत्पन्न हुआ है और अपने पूर्वजों के प्रति प्रेम और श्रद्धा ही मनुष्य द्वारा श्राद्ध कर्म करने के मूल कारण है। इसके आलावा उन्होंने नास्तिकतावादी विचारधारा और तथाकथित आधुनिक विचारधारा जो श्राद्ध की परंपरा को ढोंग मानती है उसकी कड़ी निंदा की।उन्होंने श्राद्ध कर्म के पीछे के महत्व और पितृ लोक के विषय में ज्ञान प्रदान किया ।
द्वितीय दिवस पर भैरव भैरवियों ने आर्यमयी शक्ति और आर्यमा देवता के यन्त्र का आवरण पूजन संपन्न किया।इसके पश्च्यात कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्रनाथ (ईशपुत्र) ने साधकों को विविध प्रकार के श्राद्ध कर्मों और उन्हें सम्पन्न करने की प्रणालियों के विषय में बताया ।शाम को हवन का आयोजन किया गया और मंत्र अथवा शक्ति दीक्षा प्रदान की गई ।
कौन होते है पित्र और क्या होता है श्राद्ध कर्म ?
कौल धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है वह अपनी मृत्यु के १२ दिन के बाद किसी अन्य योनी में जन्म लेता हैं।अगर वह किसी अन्य योनी में जन्म नहीं ले पाते तो उसकी गति पितृ लोक में होता है। वह पितृ लोक में तब तक निवास करता है जब तक की वह किसी अन्य योनी में जन्म ना लें सके। पितृ लोक के स्वामी आर्यमा देवता है और उनकी शक्ति अर्यामयी देवी है ।आर्यमा देवता १२ आदित्यों में से एक है ।
भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते है की वह पित्रों में आर्यमा है । भगवद गीता का यह श्लोक इस बात की पुष्टि करता है।
अनन्तश्र्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् || —- गीता १० : २९
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पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म के विषय में कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्रनाथ ( ईशपुत्र ) के विचार जानने के लिए Youtube पर यह वीडियो देखें : –
“कौल धर्म के अनुसार किसी मनुष्य द्वारा अपने पूर्वजों के प्रति प्रेम के कारण कोई श्राद्ध कर्म संपन्न करता है “
“पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म करने के कारण मनुष्य को पुण्य अथवा पित्रों के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है “