(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ) : मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने 19 हजार किसानों को चोर बनाकर उन्हें 59 करोड़ रुपये के बिल थमा दिए हैं। यह केस दो साल में दर्ज हुए हैं। किसान बिजली का बिल जमा नहीं करते हुए कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट में चोरी के केस झूठे साबित हो रहे हैं।मध्य प्रदेश के ग्वालियर में बिजली कंपनी ने पहले किसानों को समझौते के तहत केस खत्म करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन केस झूठा होने से किसानों ने समझौता नहीं किया। 19 हजार में से 11 हजार 548 केसों का कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया गया है। इन पर 32 करोड़ 95 लाख का बकाया बताया। सात हजार 582 केस प्री -लिटिगेशन (कोर्ट में परिवाद दायर होना है) में रखे गए हैं, लेकिन किसान समझौता नहीं कर रहे हैं। कोर्ट केसों पर नजर डालें तो 99 फीसद मामलों में कंपनी की कार्रवाई झूठी निकल रही है।बिजली नियामक आयोग ने किसानों पर बिजली चोरी पकड़े जाने पर नियम तय किया है। प्रतिदिन छह घंटे आपूर्ति व छह महीने की बिलिंग की जा सकती है, लेकिन बिजली कंपनी आयोग के फार्मूले पर काम नहीं कर रही हैं। किसानों के चोरी के जितने भी केसों में बिल जारी हुए हैं, उसमें 10 घंटे की बिजली आपूर्ति बताई गई है और साल भर बिजली का चोरी से उपयोग बताया गया है। 50 हजार से 70 हजार रुपे के बीच बिल दिए गए हैं।किसान को रबी के सीजन में सिंचाई के लिए बिजली की पांच महीने जरूरत पड़ती है, लेकिन बारिश व गर्मी के दिनों को भी जोड़कर बिलिंग की जा रही है।बिजली कंपनी ने सिंचाई के लिए अस्थायी कनेक्शन देना बंद कर दिए हैं। जैसे ही लाइन लॉस बढ़ता है तो अपना टारगेट पूरा करने के लिए पूर्व में अस्थायी कनेक्शन लेने वालों पर केस दर्ज कर देते हैं। उन्हें पंचनामा नहीं दिया जाता है। कोर्ट में परिवाद दायर होने के बाद उन्हें चोरी के केस की जानकारी होती है। ऑफिस में की गई कार्रवाई की वजह से कोर्ट में केस झूठे साबित होते हैं। जिस व्यक्ति पर बिजली चोरी का केस लगाया गया है, उसके पंचनामे पर हस्ताक्षर नहीं होते हैं। न कंपनी के पास कोई स्वतंत्र गवाह होता है।