केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में वॉट्सऐप प्रिवसी पॉलिसी से जुड़े मामले पर सुनवाई के दौरान शुक्रवार को कहा कि यूजर्स का डेटा संविधान के तहत जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ‘अभिन्न’ हिस्सा है। केंद्र ने साथ ही कहा कि वह इसकी रक्षा के लिए नियम तय करेगा। केंद्र के तरफ से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी.सी.नरसिम्हन ने 5 सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष यह बात कही।
केंद्र ने कहा कि इस मामले में राज्य द्वारा हस्तक्षेप किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह यूजर के व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ है। जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ से अडिशनल सॉलिसिटर ने कहा, ‘यूजर का डेटा किसी व्यक्ति से जुड़ा है और यह अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है। अगर कॉन्ट्रैक्ट आधारित बाध्यता लागू की गई, तो इसकी जटिलताएं सामने आएंगी। हमें डेटा को सुरक्षित रखने के लिए नियम बनाने होंगे।’
संविधान पीठ के सदस्यों में जस्टिस ए.के.सीकरी, अमिताभ रॉय, ए.एम. खानविल्कर और एम.एम.शातंनागौदर शामिल हैं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि उसे एक लाइन खींचनी होगी कि डेटा का कहां इस्तेमाल और कहां दुरुपयोग हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि यूजर्स पर मनमानी शर्त नहीं थोपी जा सकती। जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘हमने पहले ही कहा है कि इसे प्रिवसी के मुद्दे से मत जोड़िए। इस मुद्दे को लेकर किसी दूसरे मंच पर बहस की जा सकती है। मेरे पास एक विकल्प है। आपके पास सुविधा है। जब आप सुविधा दे रहे हैं, तो फिर आप मनमानी शर्त नहीं थोप सकते।’
पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह के प्लैटफॉर्म शर्त लागू नहीं कर सकते, जो नागरिकों के अधिकारों का हनन करता हो। सुनवाई के दौरान वॉट्सऐप के तरफ से पेश हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मोबाइल ऐप नियामक के खिलाफ नहीं है और न ही यूजर डेटा को ही मेसेजिंग प्लैटफॉर्म के साथ शेयर किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि नौ जजों की पीठ ‘राइट टू प्रिवसी’ मूल अधिकार है या नहीं, के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है, और इससे संबंधित फैसला आने के बाद ही 5 सदस्यीय इस पीठ को कोई फैसला सुनाना चाहिए। सिब्बल की दलील के बाद कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को तय कर दी। नौ जजों की पीठ संभवतः उसी दिन मामले पर फैसला सुना सकती है।
सुनवाई की तारीख बढ़ाए जाने का फैसला करने से पहले कोर्ट रूम में बचाव पक्ष और याचिकाकर्ता के वकील के बीच तीखी बहस देखने को मिली। वॉट्सऐप की प्रिवसी पॉलिसी, 2016 को चुनौती दे रहे दो स्टूडेंट्स करमण्य सिंह सरीन और श्रेया सेठी की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि उनकी याचिका में मांग की गई है कि केंद्र को नियम लागू करने को लेकर निर्देश दिया जाए। उन्होंने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि आप (वॉट्सऐप) सेवा प्रदाता हैं, आप यह नहीं कह सकते हैं मैं आपकी चिट्ठी खोलकर पढ़ लूंगा।’ उन्होंने कहा, ‘कोर्ट के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार है।’
इस बीच, बचाव पक्ष के वकील सिब्बल ने कहा कि सिर्फ वॉट्सऐप के खिलाफ याचिका क्यों दायर की गई है? उन्होंने कहा, ‘यह वॉट्सऐप को रोकने की टेलिकॉम कंपनियों का अप्रत्यक्ष तरीका है। किसी भी प्लैटफॉर्म को लीजिए, डेटा शेयर किया जाता है। फिर सिर्फ वॉट्सऐप के खिलाफ क्यों याचिका दायर की गई है। हमारा डेटा सुरक्षित है। यह जनहित याचिका नहीं है।’
सिब्बल ने कहा कि टेलिकॉम कंपनी के ‘एजेंट’ कोर्ट पहुंचे हैं। इस पर साल्वे ने आपत्ति जताते हुए कहा, ‘आप युवाओं और स्टूडेंट्स को एजेंट नहीं कह सकते।’ इस पर सिब्बल ने कहा, ‘स्टूडेंट्स और युवा एजेंट नहीं हैं, लेकिन कुछ लोग एजेंट हैं। लाखों और अरबों यूजर्स को कोई आपत्ति नहीं है। इस धरती पर कुछ लोगों को ही आपत्ति है।’ इनकी दलील के बीच फेसबुक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अरविंद दतार ने कहा कि मेसेजिंग प्लैटफॉर्म पर कोई संदेश शेयर नहीं किया जाता है। फेसबुक ने 2014 में वॉट्सऐप का अधिग्रहण किया है।
इनकी दलील के बीच केंद्र ने कोर्ट को बताया कि यह डेटा की सुरक्षा के लिए नियम तय करेगा। उल्लेखनीय है कि मई में सुप्रीम कोर्ट ने वॉट्सऐप 16 करोड़ भारतीयों के डेटा को ट्रैप नहीं कर सकता। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि 2016 की प्रिवसी पॉलिसी के कारण वॉट्सऐप निजी डेटा और अन्य डेटा जुटा रहा है, जिसका इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्य से किया जा रहा है।