(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बार-बार यह दावा करती हैं कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है और कई सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की स्थापना के साथ सभी को मुफ्त चिकित्सा सेवा मुहैया करा रही है। परंतु राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल यह है कि यहां के एक सरकारी अस्पताल ने एक मरीज को एक्सरे के लिए करीब पांच महीने बाद की तारीख दी है।जानकारी के मुताबिक, यह घटना किसी जिला, प्रखंड या स्थानीय अस्पताल की नहीं है बल्कि झाड़ग्राम जिला सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की है। झाड़ग्राम के लालगढ़ थाना निवासी पीड़ित मरीज रोहित प्रतिहार के मुताबिक वे सोमवार सुबह अस्पताल के ओपीडी विभाग में कमर दर्द की शिकायत लेकर पहुंचे। उन्होंने बताया कि इस दौरान मुझे दर्द इतना जोर हो रहा था कि मैं बैठने या ठीक से खड़े होने में असमर्थ था। देखने के बाद डॉक्टर ने मुझे एक्सरे की सलाह दी। इसके बाद जब एक्सरे कराने के लिए रेडियोलॉजी विभाग में गया तो वहां मुझे इस साल 21 दिसंबर को सुबह 9 से 10 बजे वापस आने के लिए कहा गया। यह सुनकर मैं दंग रह गया। एक्सरे के लिए काफी विनती भी की, लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना।रोहित के मुताबिक, छह सदस्यों के परिवार में वही एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति है। उनके पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है और पूरा परिवार खेती पर निर्भर है। उन्होंने बताया कि अगर मेरी बीमारी का जल्द इलाज नहीं हुआ तो सभी लोग भुखमरी से मर जाएंगे या उन्हें भोजन के लिए जमीन बेचनी पड़ेगी। रोहित ने बताया, उनका घर झाड़ग्राम अस्पताल से करीब 40 मीटर दूर है और वहां आने-जाने में भी कई घंटे लग जाते हैं।जानकारी के मुताबिक, इसी अस्पताल का एक और मामला सामने आया है। जब 30 जुलाई को सीने में दर्द की शिकायत लेकर पहुंचे एक मरीज को एक्सरे के लिए 20 अक्टूबर, 2018 की तारीख दी गई। पीड़ित प्रशांत पात्रा के मुताबिक, समझ में नहीं आता है कि मुझे दवा 15 दिनों के लिए दी गई, परंतु एक्सरे तीन महीने बाद किया जाएगा। मैं अस्पताल अधीक्षक के पास भी गया, लेकिन उन्होंने भी अपनी असमर्थता व्यक्त की। सूत्रों के अनुसार, उल्टे उन्हें बताया गया कि चूंकि आपका मामला अधिक महत्वपूर्ण था, इसलिए प्राथमिकता देकर महज तीन महीने का ही समय दिया गया है।इधर, अस्पताल अधीक्षक डॉ. मलय अदक ने स्वीकार किया कि स्थिति जटिल है और उन्होंने इसका कारण कर्मचारियों की कमी बताया। उनके मुताबिक, अस्पताल में केवल एक रेडियोलॉजिस्ट और पांच तकनीशियन हैं जो पूरे दिन शिफ्ट में काम करते हैं। दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रतिदिन केवल 20 एक्सरे की अनुमति है। वहीं, ओपीडी में प्रतिदिन करीब 1500 रोगी आते हैं। स्थिति जटिल है। मैंने अधिक कर्मचारियों को देने के लिए स्वास्थ्य विभाग से मांग की है।दरअसल, यह आलम सिर्फ झाड़ग्राम सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का ही नहीं है बल्कि महानगर कोलकाता में स्थित सभी बड़े सरकारी अस्पताल में भी इलाज की कुछ ऐसी ही स्थिति है। लोगों को डॉक्टरों को दिखाने व ऑपरेशन के लिए चक्कर लगाना पड़ता है। बड़ी संख्या में दलाल भी सक्रिय हैं। राज्यभर के दूर-दराज के इलाकों से जो लोग यहां चिकित्सा कराने आते हैं, उन्हें काफी लंबा इंतजार करना पड़ता है। अभी पिछले सप्ताह फुटबाल मैच देखने गए एक युवक को चोट लग गई थी, उसे चार अस्पतालों का चक्कर लगाना पड़ा और आखिर में निजी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। महानगर के मल्टी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एसएसकेएम हो या फिर अन्य मेडिकल कॉलेज अस्पताल लोगों को भर्ती लेने के लिए मंत्री व नेताओं से पैरवी करनी होती है। यही नहीं एसएसकेएम में तो कुछ माह पहले मुख्यमंत्री आवास से लिख कर देने के बावजूद भर्ती नहीं लिया गया था।