भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभों में मीडिया भी एक प्रमुख स्तंभ है.
लोकतंत्र के बाकी तीन प्रणालियों की खबर जनता तक पहुंचाना, और जनता की आवाज लोकतांत्रिक सरकार तक पहुंचाना मीडिया का काम है. आदर्श स्वरुप में मीडिया को कोई पक्ष नहीं लेना चाहिए. सूचना को सिर्फ तथ्यों के रूप में जनता तक पहुंचाना चाहिए. इन सूचनाओं और तथ्यों के जरिए जनता को अपना पक्ष खुद तय करना चाहिए.
यह तो हुई आदर्शवादी बात, किंतु सच्चाई यह है कि मीडिया अपनी ताकत अच्छी तरह से जानता है, और खबरें जनता तक बिना किसी प्रयोजन के पहुंचाई नहीं जाती हैं.
‘पेड न्यूज़’ और ‘फेक न्यूज’ का बिजनेस चिंतनीय
सनसनीखेज खबरों को दिखाने की होड़ में आज मीडिया का एक बहुत बड़ा समूह फेक न्यूज़ का इस्तेमाल कर रहा है. इसके साथ ही मीडिया अपना कर्त्तव्य भूलकर जरूरी खबरों को न दिखाकर पेड न्यूज़ दिखा रहा है. ‘पेड न्यूज़’ और ‘फेक न्यूज’ स्वच्छ पत्रकारिता की दिशा में बढ़ने में सबसे बड़ी चुनौती है. जहाँ एक ओर कुछ मीडिया समूह निष्ठां और ईमानदारी से खबरें दिखाते हैं वहीं दूसरी ओर डार्क और फेक मीडिया का एक बहुत बड़ा हुजूम है. जो लगातार मीडिया की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए मनगढ़ंत एवं बिकाउ खबरें दिखाते हैं. फेक न्यूज़ और वायरल वीडियोज की पड़ताल बहुत मुश्किल काम है. लेकिन कैसा भी दौर हो, पत्रकारिता को अपना धर्म नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि पत्रकारिता विवेक को जगाने का काम करती है।
मीडिया स्टूडेंट्स ने बढ़ते बाजारवाद, सामाजिक सरोकारों और कलाओं की उपेक्षा पर चिंता जताई
अब समय बदल रहा है. जनता डार्क और फेक मीडिया को समझने लगे हैं. ‘प्रेस दिवस’ पर मीडिया स्टूडेंट्स ने पत्रकारिता में बढ़ते बाजारवाद, सामाजिक सरोकारों और कलाओं की उपेक्षा पर चिंता जताई। सोशल मीडिया पर नकारात्मक आैर हिंसा के समाचारों को प्रमुखता देने से समाज पर पड़ रहे प्रतिकूल असर को भी रेखांकित किया गया. एक स्टूडेंट ने कहा कि प्रयोगधर्मी युग में नए पत्रकारों को भी प्रयोगवादी होना हाेगा। वहीं एक अन्य छात्र ने अंग्रेजी और हिंदी पत्रकारिता दोनों को समान रूप से पाठकों के लिए सहज और सरल बनाने की बात कही.
डार्क मीडिया के खिलाफ्र आवाज उठाना जरूरी
पहले तलवार के दम पर दुनिया बदली जाती थी. तलवार से तो भारत की संस्कृति को ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ा, परंतु पश्चिमी विचारकों ने जबसे विचारों के जरिए लोगों को और दुनिया को बदलने में महारत हासिल की, तब से भारतीय संस्कृति के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हुआ है. जो काम तलवारों के जरिए सदियों पहले आक्रमणकारी नहीं कर पाए, वह काम आज हम खुद ही कर डालने पर उतारू आ गए हैं. आज भारतीय लोग अपनी संस्कृति और इतिहास को लेकर हीन भावना से ग्रस्त हैं और मुख्यतः अपने धर्म और संस्कृति से किसी तरह के जुडाव को अपनी कमजोरी की तरह छुपाते हैं.
जिन लोगों में संस्कृति और राष्ट्र ले लिए सम्मान नहीं है, उनके प्रति भारतीय जनता को सावधान रहने की जरूरत है. लेफ्ट विंग मीडिया जो समाजवाद और कम्युनिस्ट जैसी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करता है, वह संस्कृति विरोधी कार्य अपनी विचारधारा को समाज में क्रियान्वित करने के लिए करता है. कम्युनिस्ट जैसी विचारधाराएं पूरी तरह से नास्तिक हैं, और कम्युनिस्ट विचार को क्रियान्वित करने का एक प्रमुख स्टेप पुरानी संस्कृति और धर्म को नष्ट करने से शुरू होता है. ताकि सरकार और जनता नास्तिक हो जाय और केवल तर्क के आधार पर समाज की स्थापना हो. यदि भारत की जनता को अपनी संस्कृति और धर्म से प्रेम है और उन्हें लगता है कि उनकी संस्कृति में वह तत्व है जो संरक्षण योग्य है, तो उन्हें हमेशा इस मीडिया से सावधान रहने की जरूरत है.
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https://newslivenow.com/2017/10/26/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F/
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर किसने क्या कहा-
इतिहास डार्क एवं फ़ेक मीडिया को माफ़ नहीं करेगा :महायोगी सत्येंद्र नाथ
समाज को सही एवं सभ्य दिशा देने में मीडिया हमेशा से खास भूमिका रही है. ‘प्रेस दिवस’ पर ‘कौलान्तक पीठ’ के पीठाधीश्वर ‘महायोगी सत्येंद्र नाथ’ ने मीडिया की भूमिका पर चर्चा की. आज की मीडिया कैसी है और कैसी होनी चाहिए? उन्होंने कहा – देश के जाति और धर्म के नाम पर बाटने में सबसे बड़ा हांथ डार्क मीडिया (निगेटिव मीडिया) रहा है. उन्होंने कहा कि हमारे गौरवशाली इतिहास को कुछ तथाकथित डार्क मीडिया वाले कल्पना बता रहें हैं, जो की सरासर अनुचित है.
‘ईशपुत्र’ ने कहा कि मीडिया हमेशा यही कहता है कि उसकी ख़बर निष्पक्ष है, जबकि हकीकत ये है कि अथिकतर मीडिया खबरों के सिर्फ एक पहलू को ही दिखाते हैं और दूसरे पहलू को जनता तक नहीं पहुचने देते .
‘ईशपुत्र’ ने कहा – आज के 200 साल बाद जब इतिहास पलट कर देखा जायेगा तो आने वाली पीढ़ी डार्क और फेक मीडिया को कभी माफ़ नहीं करेगी.
‘ईशपुत्र’ ने कहा – “हो सकता है कि आपके पास आने वाले समय में ऐसे ऐसे टीवी एंकर हो जो वास्तव में हो ही नहीं. जो कि 3-D पर एनीमेशन पर बने हो. या फिर जो कंप्यूटर के द्वारा संचालित हो.”
ईशपुत्र ने ‘न्यूज़ लाइव नाऊ’ के स्टूडियो से ‘मीडिया’ सम्बंधित विचारों और अनुभवों को सांझा किया। ज्ञात हो कि ‘महायोगी सत्येंद्र नाथ’ जिनको ‘ईशपुत्र’ के नाम से जाना जाता है. ‘ईशपुत्र’ मीडिया कम्पनी ‘एनएलएन मीडिया’ समूह के प्रमुख भी हैं।
स्वतंत्र प्रेस जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है: PM मोदी
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मीडिया कर्मियों को शुभकामनाएं दीं. पीएम ने बधाई देते हुए कहा स्वतंत्र प्रेस जीवंत लोकतंत्र की ‘‘आधारशिला’’ है और उनकी सरकार उसकी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है. प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है, ‘‘स्वतंत्र प्रेस जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है. हम सभी रूपों में प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हैं. आशा करते हैं कि हमारी मीडिया का प्रयोग 125 करोड़ भारतीयों के कौशल, शक्ति और सृजनात्मकता को दिखाने के लिए होगा.’’ उन्होंने मीडिया, खास तौर से संवाददाताओं और कैमरापर्सन के ‘‘कठिन परिश्रम’’ की प्रशंसा की, जो मौके पर पहुंचकर ‘‘अथक परिश्रम’’ करते हैं और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरों को उनका ‘‘आकार’’ देते हैं.
प्रेस की स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी से करने का संकल्प लें: स्मृति ईरानी
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने मीडिया कर्मियों को शुभकामनाएं दीं. केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी शुभकामना देते हुए ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, ‘‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर सभी मीडिया कर्मियों को शुभकामनाएं. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकप्रिय, सक्रिय और स्वतंत्र प्रेस हमारे लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है. प्रेस की स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी और तार्किक तरीके से करने का संकल्प लें.’’
राष्ट्रीय प्रेस दिवस
राष्ट्रीय प्रेस दिवस 1966 से प्रति वर्ष मनाया जाता है. प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एवं पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद् की कल्पना की थी. इसके तहत चार जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद् की स्थापना की गई जिसने 16 नंवबर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया. तभी से प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है.