(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली। भारत में आज की स्थिति से लगभग तमाम लोग वाकिफ होंगे..कई लोग जान रहे हैं कश्मीर में हिंदुओं की स्थिति, असम में चरमपंथियों का उत्पात, केरल में बने वर्तमान हालात, पश्चिम UP में पनप रही आतंकी गतिविधिया , पश्चिम बंगाल में उन्मादियों का आतंक, अयोध्या, अक्षरधाम काशी आदि हिन्दू तीर्थ स्थलों पर हुए आतंकी हमले.. संगीनों के साये में बीत रही होली, दीपावली, 15 अगस्त, 26 जनवरी .. सेना और पुलिस के जवानों पर भयानक पत्थरबाजी , कैराना , जमशेदपुर आदि जगहों से हिन्दुओ का पलायन, वन्देमातरम और भारत माता की जय न कहने की जिद, तीन तलाक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट तक को दिखाई जा रही आंखें ..ये सब हालात कैसे बने और कौन है इसका जिम्मेदार। अगर थोड़ा अतीत में झांका जाय तो एक सवाल जरूर बनता है कि जितना सम्मान एक वर्ग अशफाक उल्ला खान का करता था और है , क्या उतना ही सम्मान दूसरा वर्ग राम प्रसाद बिस्मिल का भी करता है ? इस सवाल का जवाब मिलते ही इस देश को बांटने वालों के चेहरे उजागर हो जायेगे..15 अगस्त अर्थात देश की स्वतंत्रता के दिन किस के चलते देश हाई अलर्ट पर घोषित रखा जाता है ये भी जान लिया जाय तो देश के भूतकाल से सबक ले कर देश के भविष्य को सुधारा जा सकता है.. लेकिन न जाने किस प्रकार से भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का ताना बाना बुना गया है कि न देश के अतीत में झांकने की अनुमति है और न ही देश के भविष्य के आंकलन के लिए सहमति है ..बस एक या दो नारा लगवाया जाता है, जैसे बिना खड्ग बिना ढाल और अहिंसा आदि से जुड़ा हुआ.
फिलहाल आज के ही दिन देश मे वर्तमान सेकुलरिज़्म की नींव कहे जाने वाले गांधी ने 1948 में भारत के मुसलमानो की चिंता करते हुए उन्हें बराबरी का अधिकार दिलाने व उनके मान सम्मान व स्वाभिमान की सुरक्षा करने के लिए अनशन पर बैठ गए थे..ये अनशन स्थल दिल्ली में था..इसका फौरन असर पड़ा था और सरकार ही नही, पुलिस व सेना सतर्क हुई और मुस्लिम इलाको की सुरक्षा में दिन रात एक कर डाला ..गांधी के साथ उनके तमाम अनुयायी जो हिन्दू थे लेकिन सेकुलर भी थे, वो भी बैठ गए थे मुसलमानो के लिए अनशन पर जिस से समाज ही नही देश विदेश में ये सन्देश गया कि भारत के हिन्दू मुसलमानो की रक्षा और उनके सम्मान के लिए आगे आ चुके हैं और खुद से आगे बढ़ कर उनको अपने बराबरी का अधिकार देना चाहते हैं। आज ही के दिन अर्थात 13 जनवरी, 1948 को गांधी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। नेहरू, ‘द स्टेट्समैन’ के पूर्व संपादक आर्थर मूर और हजारों अन्य लोग गांधी के साथ अनशन पर बैठ गए, जिसमें गांधीवादी हिंदुओं की संख्या ज्यादा थी..यद्द्पि वो संख्या आज के समय भी ज्यादा है.. 12 जनवरी को गांधी की प्रार्थना सभा में एक लिखित भाषण पढ़कर सुनाया गया, क्योंकि गांधी ने मौन धारण कर रखा था।
“कोई भी इंसान जो पवित्र है, अपनी जान से ज्यादा कीमती चीज कुर्बान नहीं कर सकता। मैं आशा करता हूं कि मुझमें उपवास करने लायक पवित्रता हो। उपवास कल सुबह (मंगलवार) पहले खाने के बाद शुरू होगा। उपवास का अरसा अनिश्चित है। नमक या खट्टे नींबू के साथ या इन चीजों के बगैर पानी पीने की छूट मैं रखूंगा। तब मेरा उपवास छूटेगा जब मुझे यकीन हो जाएगा कि सब कौमों के दिल मिल गए हैं और वह बाहर के दबाव के कारण नहीं, बल्कि अपना धर्म समझने के कारण ऐसा कर रहे हैं।”इस अनशन का असर चमत्कारिक था। दिल्ली में जगह-जगह गांधी के समर्थन में लोग जुटने लगे।
15 जनवरी, 1948 को हुए एक सार्वजनिक सभा में करोल बाग के गांधीवादियों ने गांधी को विश्वास दिलाया कि वे उनके आदर्शों में आस्था रखते हैं और उन्होंने एक शांति ब्रिगेड बनाकर घर-घर जाकर अभियान चलाया। श्रमिकों की एक सभा में, जहां रेलवे, प्रेस आदि के प्रतिनिधि मौजूद थे, ये संकल्प लिया गया कि विभिन्न समुदायों के बीच अच्छे संबंध स्थापित करने के काम में वे तुरंत जुट जाएंगे। इस सभा को हुमायूं कबीर ने भी संबोधित किया था। प्रिंसिपल एनवी थडानी की अध्यक्षता में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों की एक बैठक हुई और प्रस्ताव पास किया गया कि शहर में साम्प्रादायिक सौहार्द स्थापित करने के लिए वे अपना योगदान देंगे। नेहरू पार्क में हुई बैठक में अन्य हिन्दुओ से अनुशासित रहने की अपील की गई।आज के वर्तमान परिदृश्य को देखा जाय तो मुसलमानो की मजबूती में पहला योगदान गांधी का ही है जिन्होंने 1948 मे ही इसकी शुरुआत की थी जिसको तमाम राजनैतिक दल दिन रात आगे बढ़ा रहे हैं..