(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली। ये एक ऐसा सच है जिस पर भले ही पर्दा डालने की तमाम कोशिशे की गयी हों लेकिन उसको छिपाया नहीं जा सका। नृशंसता किसको कहते हैं इस दिन दुनिया ने देखा था लेकिन खुद से गढ़े गये सेकुलरिज्म के नियमो के चलते उसको सामने नहीं लाया गया। यहाँ कुचली गयी थी हिन्दुओं की आस्था और कुचलने वाले कोई और नही बल्कि इस्लामिक आतंकियों का समूह तालिबान था। वो सब कुछ हुआ जो किसी की भी आत्मा को त्राहि त्राहि करने पर मजबूर कर देगा लेकिन छाई रही ख़ामोशी । विदित हो कि ये वो समय था जब दुनिया भर में अपने ऊपर अत्यचारों का रोना रोने के बाद कुछ उन्मादियों ने अफगानिस्तान से रूस की फौजों को अन्तराष्ट्रीय दबाव बनाते हुए हटने पर मजबूर कर दिया था । उन्होंने कई ऐसे अमानवीय कृत्य अपने हाथ से किये जो दुनिया में हर कोई निंदा करता, लेकिन बाद में उनका आरोप रूस पर लगा दिया था । दुनिया भर की कथित सेकुलर शक्तियों ने भी रूस पर दबाव बनाया और अंत में रूस की फौजों को वहां से हटना पड़ा था । रूस की फौजों को हटाने के बाद जो कुछ भी अफगानिस्तान में हुआ वो आज दुनिया देख रही है। जहाँ दुनिया का हर देश विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है तो वहीँ अफगानिस्तान आज पाषण युग में जाने के जैसा हो चुका है। वहां फिर धीरे धीरे मज़हबी कट्टरपंथी जमा हो गये और उन्होंने अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के सभी शासको को सरेआम फांसी पर लटका दिया। इतना ही नहीं वहां की महिलाओं को कड़े नियमो का पालन करने पर मजबूर कर दिया गया जिसके फोटो और वीडियो आज भी देखे जा सकते हाँ। लेकिन इसके बाद उनकी नजर उन लोगो पर गई जो असल में मुस्लमान नहीं थे ।। उनके निशाने पर फिर वो लोग आ गये थे जो उनके मत या मजहब से संबंध नही रखते थे । इसमें सबसे पहले बौद्ध आये थे जिनके आराध्यो की प्रतिमाओं को बारूद लगा कर ये कहते हुए उड़ा दिया गया था कि उनके मत में मूर्ति पूजा हराम है ।। जापान सहित तमाम देश उन मूर्तियों की कई गुना कीमत भी देने के लिए तैयार थे पर उनकी एक नहीं सुनी गई और बामियान की प्रतिमाएं उड़ा दी गयी बारूद से। फिर वहां सरदारों के साथ होना शुरू हुआ अन्याय और नरसंहार । वो नरसंहार तेजी से जारी रहा और अभी कुछ माह पहले वहां बचे खुचे सरदारों पर भी आतंकी हमला किया गया था जिसमे कई सिख मरे गये थे । रही बात हिन्दुओ की तो उनको भी मारा गया और भागने पर मजबूर कर दिया गया । बुद्ध की प्रतिमाएं तोड़ने के बाद आज ही के दिन अर्थात 19 मार्च सन 2001 में आतंकी मुल्ला उमर के निर्देश पर तालिबान ने 100 गायों को सरेआम काट कर उनका मांस पूरे अफगानिस्तान के कोने कोने में भेजा था और ये साफ़ साफ़ इशारा किया था कि अब वहां इस्लामिक कानून लागू हो चुका है ।
गायों को काटना वहां के और भारत तक के हिन्दुओ को ठीक वैसे ही संदेश देना था जैसे बामियान में बुद्ध कि प्रतिमाओं को बारूद से उड़ा कर दुनिया भर के बौद्धों को संदेश दिया गया था कि अब वो अफगानिस्तान को तालिबान नाम से जाने और वो तालिबान जिसमे सेकुलरिज्म नाम की कहीं से कोई भी चीज नहीं बची है। लेकिन इसके बाद भी कई सेकुलरिज्म के ठेकेदार इस मामले में खामोश रहे । उस समय किसी ने मानवाधिकार या जीवों पर क्रूरता आदि का मुद्दा भी नहीं उठाया । हैरानी की बात ये रही कि खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी इस विधर्म पर खामोश रहा। गायो के कटे सर को तालिबानियों ने अपनी जीत के जश्न के रूप में बताया था। आज उस नृशंस दिवस की स्मृति है!