(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली।फ्रीडम फाइटर अर्थात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनना इतना भी आसान नही.. इसका पैमाना भी सिर्फ किताबो में नाम लिखवा लेना भी नही.. इसके लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है और सब कुछ त्यागना पड़ता है ..इसके लिए चाहिए निर्भीकता, निडरता और साहस जो सब में नही होता..उन तमाम निडर, निर्भीक योद्धाओं में से ही एक थे अमर बलिदानी हेमू कालानी..शौर्य, शक्ति व सम्मान के अद्भुत प्रतीक हेमू कालानी जी का आज बलिदान दिवस है जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा और जब 2 रास्ते मिले थे उनको कि मुखबिरी या मौत तो उन्होने खुद से ही आगे बढ़ कर चूम लिया था फांसी का फंदा और अमर हो गए थे करोड़ों सच्चे देशभक्तों के दिलों में सदा सदा के लिए! हेमू कालानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सख्खर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था। हेमू किशोरवय में ही अपने साथियों के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। ये संग्राम बिना खड्ग बिना ढाल वाला कदापि नही था बल्कि इस मे जान लेेने व जान देने दोनो का खतरा था!
सन 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी तो हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि यदि हेमू अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। आज ही के दिन अर्थात 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय वन्देमातरम की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया।
आज तमाम चाटुकार इतिहासकार व कई नकली कलमकारों की साजिश के शिकार उस परम बलिदानी हेमू कालानी को उनके बलिदान दिवस पर NLN परिवार बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है और साथ ही सवाल करता है भारत के उन तथाकथित भाग्य विधाताओं से की उन्होंने ऐसे वीर बलिदानी को इतिहास में उचित स्थान व योग्य सम्मान क्यों और किस के इशारे पर नहीं दिया ?