53 साल के व्यक्ति को नाबालिग उम्र के अपराध पर पोस्टमार्टम कक्ष साफ़ करने की सजा।

बोर्ड ने अपनी सजा में आरोपी को साप्ताहिक छुट्टी या दैनिक कामकाज में भोजनावकाश तक नहीं दिया है।

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : उत्तर प्रदेश के किशोर न्याय अदालत ने एक 53 साल के ‘नाबालिग’ को सजा सुनाई है। वह कोर्ट में मौजूद सबसे ‘बुजुर्ग नाबालिग’ था। कोर्ट परिसर में मौजूद इस शख्स को 38 साल बाद सजा मिली है। कोर्ट ने इस नाबालिग को जिला अस्पताल और पोस्टमार्टम कक्ष को तीन सालों तक साफ करने की सजा सुनाई है। आरोपी नाबालिग जब 15 साल का था तब उसने 40 साल के शख्स की अपने दादा के साथ हो रही लड़ाई के दौरान चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी।
यह घटना 11 दिसंबर 1980 की है। चोट के कारण 9 दिनों बाद पीड़ित शख्स की अस्पताल में मौत हो गई थी। वयस्क होने पर उसे दोषी पाया गया और स्थानीय अदालत ने 1982 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जिसके बाद उसने 5 महीने और 15 दिन जेल में बिताए। इसके बाद उसे जमानत मिल गई। जेल से बाहर आने के बाद उसने सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। तीन साल बाद उसकी शादी हो गई और अब उसके तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। उसके बेटों ने अच्छी पढ़ाई की। एक बेटा इस समय सऊदी अरब में काम कर रहा है। इस अवधि के बीच उसका मामला कई अदालतों में गया। इलाहाबाद उच्च न्यायलय में दायर की गई याचिका के बाद ट्रायल कोर्ट को नाबालिग के मामले की सुनवाई करने के लिए कहा गया। उच्च न्यायालय ने माना कि उसे बाल किशोर न्याय अधिनियम का फायदा मिलना चाहिए। जिसके बाद पीलीभीत के ट्रायल कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड को उसका मामला हस्तांतरित कर दिया। बोर्ड ने उसके मामले की सुनवाई की। जिसके बाद उसे जिला अस्पताल और पोस्टमार्टम कक्ष को तीन सालों तक साफ करने की सजा सुनाई गई। इस मामले में अभियुक्त के वकील विवेक पांडेय ने कहा कि किशोर न्यायालय ने अब तक के इतिहास में पहली बार 53 साल के किसी नाबालिग आरोपी को सजा सुनाई है। वकील विवेक ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय में अपील करने पर विचार किया जा रहा है और हम फैसले के सभी पहलुओं का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने अपनी सजा में आरोपी को साप्ताहिक छुट्टी या दैनिक कामकाज में भोजनावकाश तक नहीं दिया है।

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