अतीक अहमद का आपराधिक सफर-चांद बाबा की हत्या से शुरू हुआ सिलसिला, कुछ वैसे ही ख़तम भी हुआ

जिस जगह हुई मौत कभी वहां पर अतीक और उसके भाई अशरफ की महफिले सजा करती थी। चकिया के रहने वाले अतीक अहमद की हर गली में तूती बोला करती थी

(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): चार दशकों तक प्रयागराज की गलियों में अपनी दहशत का साम्राज्य फैलाने वाला अतीक अब लोगों के लिए ‘अतीत’ बन चुका हूं। राजनीति का चोला ओढ़ अतीक ने तमाम अपराधो को अंजाम दिया। वहीं, जिस गुरु ने अतीक का साया बन उसे चलना सिखाया राजनीति की चाहत में अतीक ने उस गुरु को भी रास्ते से हटा दिया। कभी प्रयागराज की गलियां अतीक के दहशत की कहानियां बयां करती थी। वहीं, कल हुए हत्याकांड में अतीक की मौत साथ के आतंकवाद और जुर्म की कहानी भी बंद हो गई। 34 साल और पांच बड़ी राजनीतिक हत्याएं। जिस माफिया अतीक ने चांद बाबा की हत्या के साथ इसकी शुरुआत की थी, उसी की हत्या के साथ इसका अंत भी हो गया। वर्ष 1995 में जवाहर पंडित हत्याकांड को छोड़ दें तो हर राजनीतिक हत्या में माफिया अतीक अहमद का ही नाम सीधे तौर पर सामने आया।

वर्ष 1989 शहर की पश्चिमी सीट से अतीक ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना पर्चा दाखिल किया था वही उसके गुरु चांद बाबा ने भी नामांकन किया था। चांद बाबा ने अतीक से अपना पर्चा वापस लेने की बात कही लेकिन अतीक ने गुरू के शब्दों को दरकिनार कर दिया। फिर दोनों ने यहां से चुनाव लड़ा लेकिन अतीत के रुतबे के आगे जनता की नतमस्तक हो गई और अतीक को चुनाव में यहां की सीट से जीत हासिल हुई। मतगणना से दो दिन पहले रोशनबाग में कबाब पराठा की एक दुकान में शाम साढ़े सात बजे के आसपास दोनों को आमना-सामना हुआ। पहले बहस हुई और फिर ताबड़तोड़ गोलियां और बम चलने लगे। इस घटना में चांद बाबा मारा गया और हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। चांद बाबा गैंग के सदस्य इस्लाम नाटे, जग्गा और अख्तर कालिया बच निकले। बाद में, पुलिस ने एक मुठभेड़ में इस्लाम नाटे को ढेर कर दिया। इसके बाद अख्तर कालिया की हत्या कर दी गई और फिर मुंबई भागे जग्गा को वापस इलाहाबाद लाकर मार दिया गया।

सभी दुश्मनों के मारे जाने के बाद अतीक का सियासी कारवां तेजी से आगे बढ़ चला। वह वर्ष 2004 तक लगातार पांच बार विधायक भी चुन लिया गया। इस बीच वर्ष 1995 में सपा के तत्कालीन विधायक जवाहर पंडित को सिविल लाइंस की सड़क पर दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया। चांद बाबा के बाद प्रयागराज में यह दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक हत्या थी। पहली बार शहर में किसी की हत्या के लिए एके-47 का इस्तेमाल किया गया था। इस हत्याकांड में कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया को प्रमुख आरोपी बनाया गया। हत्याकांड में तीनों करवरिया भाइयों और इनके रिश्तेदार रामचंद्र उर्फ कल्लू को उम्रकैद की सजा हो चुकी है। इस घटना के ठीक 10 साल बाद माफिया अतीक और अशरफ सुर्खियों में फिर आए, जब 25 जनवरी 2005 को शहर पश्चिमी से बसपा के तत्कालीन विधायक राजू पाल को धूमनगंज में दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया था। नवंबर 2004 हुए विधानसभा चुनाव में राजू पाल ने शहर पश्चिमी से अशरफ को हराया था।

अतीक और अशरफ पर हत्या का इल्जाम लगा। बावजूद इसके राजू पाल की हत्या के बाद हुए उप चुनाव में अशरफ ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को हरा दिया। 2007 में हुए विधानसभा के मुख्य चुनाव में पूजा पाल ने अशरफ को शिकस्त दी। तीनों बार अशरफ ने सपा के टिकट से चुनाव लड़ा। इसके बाद माफिया अतीक तो सियासत की छांव में फलता-फूलता रहा, लेकिन अशरफ 2007 के बाद फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा। राजू पाल हत्याकांड में जब दोनों जेल चले गए तो लगा कि प्रयागराज में अब सबकुछ ठीक है, लेकिन बीते 24 फरवरी को भाजपा नेता उमेश पाल हत्याकांड ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया। उमेश की सुरक्षा में तैनात दो सिपाही भी मारे गए। इस घटना के सूत्रधार भी अतीक और अशरफ ही बताए गए। पहली बार अतीक के पांच बेटों में से तीसरे नंबर का बेटा असद भी उमेश पाल पर गोली चलाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ। 34 साल पुराने इतिहास ने खुद को दोहराया, बस चेहरे बदले हुए थे। 15 अप्रैल की रात करीब 10.37 बजे ताबड़तोड़ गोलियों की गूंज के साथ 34 साल पहले शुरू हुई कहानी अतीक-अशरफ के अंत के साथ खत्म हो गई।

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