बीजेपी को मिली जीत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में, बीजेपी की संगठनात्मक ताकत, जित के अन्य कारण जाने

न्यूज़लाइवनाउ – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव के नतीजे रविवार (4 दिसंबर) को आ गए. हिंदी बेल्ट के तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को प्रचंड जीत मिली है. जीत के बाद पार्टी में जश्न का माहौल है. 2018 के विधानसभा चुनाव में इन राज्यों में कांग्रेस ने बीजेपी को शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.

2018 के चुनाव में स्थिति पूरी तरह से अलग थी. कांग्रेस ने तीनों राज्यों में बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंका था. इस बार एमपी में पहले से बीजेपी की सरकार थी, जबकि बाकी दो राज्यों में BJP ने बाजी मार ली. मध्य प्रदेश में पहले से ही बीजेपी की सरकार है, लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता में कांग्रेस है. बीजेपी के नेता खुद मान रहे हैं कि जैसी जीत उन्हें तीनों राज्यों में मिली है वह उनकी कल्पना से भी बहुत ज्यादा है. यहां तक की एग्जिट पोल में भी दोनों पार्टियों के बीच बेहद करीबी मुकाबला नजर आ रहा था, लेकिन नतीजों में बीजेपी को एकतरफा जीत हासिल हुई. बीजेपी की इस प्रचंड जीत की क्या वजह है, आइए एक बार इस पर नजर डाल लेते हैं.

PM मोदी की लोकप्रियता

तीनों राज्यों में बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतरी. उनकी लोकप्रियता बरकरार है, जिसने पार्टी के उम्मीदवरों को अपने प्रतिद्वंदियों से आगे निकलने में मदद की है. पार्टी नेताओं ने भी जीत का श्रेय पीएम मोदी को दिया है. जीत के लिए पीएम मोदी की लोकप्रियता को इसलिए भी श्रेय दिया जा रहा है कि क्योंकि पिछली बार जब 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जोरदार जीत हासिल की थी. हालांकि, विधानसभा चुनावों में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था और लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2014 से भी ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी की थी. ऐसे में यह विश्वास पैदा हुआ कि मतदाताओं के बीच पीएम मोदी की स्वीकार्यता पर भरोसा किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री मोदी की उभरते वैश्विक नेता के रूप में छवि पेश की गई और बताया गया कि कैसे उन्होंने वैश्विक परिदृश्य में भारत की स्थिति को बेहतर किया है. इस तरह बीजेपी हर राज्य में जाति और वर्ग की सीमाओं से ऊपर उठकर अपना समर्थन आधार मजबूत करने में सफल रही है. जैसे कमजोर स्थिति में होने के बावजूद, बीजेपी छत्तीसगढ़ की 34 आदिवासी सीटों में से 20 पर नेतृत्व करने में कामयाब रही. छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोट बहुत मायने रखता है. यह दिखाता है कि जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर पीएम मोदी की स्वीकार्यता और मतदाताओं का उन पर भरोसा, 2014 के बाद से बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत रही है और वह अब भी बरकरार है.

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की महिलाओं के लिए कल्याणाकारी योजनाएं महिला मतदाताओं के बीच काफी प्रचलित हैं. चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने छत्तीसगढ़ में भी ऐसी स्कीम्स की घोषणा की थी, जो महिलाओं के हित में हैं. उसके मैनिफेस्टों में भी महिलाओं पर केंद्रित स्कीम्स की भरमार थी. एमपी में सीएम शिवराज अपनी योजनाओं के चलते महिला मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. उन्हें मामा की उपाधि दी गई है. वहां 2 करोड़ 60 लाख महिला वोटर्स हैं और राज्य की लाडली बहना एवं लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं के 1 करोड़ से भी ज्यादा लाभार्थी हैं. इस बार एमपी में शिवराज सिंह चौहान की नैया पार कराने में इन योजनाओं की अहम भूमिका मानी जा रही है.

छत्तीसगढ़ में भी 7 नवंबर को फर्स्ट फेज की वोटिंग से सिर्फ 4 दिन पहले महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान करके बीजेपी ने पूरा गेम पलट कर रख दिया. गरीब परिवारों के लिए 500 रुपये का गैस सिलेंडर, शादीशुदा महिलाओं को हर साल 12,000 रुपये की मदद जैसी घोषणाएं कांग्रेस की वेलफेयर स्कीम्स पर भारी पड़ गईं.

विकास और कल्याणकारी योजनाएं

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी नेताओं का ऐसा मानना है कि हिंदुत्व कार्ड, विकास और जनता के लिए पार्टी की कल्याणकारी योजनाओं ने जमीनी स्तर पर बेहतर काम किया है और कांग्रेस को शिकस्त देने में इन्होंने अहम रोल निभाया. पार्टी के एक नेता ने कहा कि पीएम मोदी को विकास के नेता के रूप में पेश करना, उनके कल्याणकारी उपायों को ‘मोदी की गारंटी’ के रूप में उजागर करना और चुनावी अभियान में यह कहना कि पार्टी ने हिंदू बहुमत के हितों को सबसे आगे रखा, इन सभी ने पार्टी को अच्छे नतीजे हासिल करने में मदद की है. राजस्थान जैसे राज्य में बीजेपी के चुनावी पोस्टर्स में युवाओं के लिए रोजगार, बिजली, पानी और अच्छी कानून व्यवस्था प्रणाली का वादा किया गया. ‘रोजगार पाएंगे, बीजेपी को लाएंगे’ और ‘गुंदागर्दी हटाएंगे, बीजेपी को लाएंगे’ जैसे नारे पार्टी को पोस्टरों में खूब देखने को मिले.

पिछले चुनावों में देखा गया कि मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दलों के लिए अलग-अलग राय दिखाते थे, लेकिन बीजेपी इस अंतर को बदलने में सफल रही है. लोकसभा में पार्टी की जीत ने राज्यों में भी अपनी छाप छोड़ी है. पार्टी ने अपनी संगठनात्मक ताकत और पार्टी एवं सरकार के बीच समन्वय पर ध्यान केंद्रित किया है. मध्य प्रदेश में बीजेपी के प्रभारी पी मुरलीधर राव ने कहा कि पिछले तीन सालों में पार्टी और सरकार के बीच कम्यूनिकेशन और को-ऑर्डिनेशन बढ़ाने का हमेशा प्रयास किया गया. उन्होंने कहा कि हमने कैडर को कभी निराश नहीं होने दिया.

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तीनों राज्यों में जीत के लिए कांग्रेस ने मजबूत वेलफेयर मॉडल प्रस्तुत किया. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी और दोनों ही जगह उसने जनता के लिए खास कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की, लेकिन उनमें कुछ खामियां थीं. इन खामियों को बीजेपी नेताओं ने बार-बार उठाया और इसका फायदा उसको नतीजों में भी मिला. जैसे अशोक गहलोत के वेलफेयर मॉडल में कई लूपहोल थे और उनके अपने ही विधायकों और मंत्रियों ने इन्हें बार-बार उठाया. उनके एक विधायक ने तो यहां तक भी कहा था कि इसमें बड़ा घोटाला हुआ है. इन्हीं खामियों को जोरशोर से उठाकर गहलोत के वेलफेयर मॉडल को ध्वस्त कर चुनावों में इसका लाभ लिया. इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर जीत हासिल की.

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