Code Name Tiranga परिणीति चोपड़ा और हार्डी संधु की फिल्म रिलीज हो गई।

(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): कोड नेम तिरंगा की कहानी—-कहानी शुरू होती है अफगानिस्तान के काबुल शहर से जहां इस्मत उर्फ अंडरकवर रॉ एजेंट दुर्गा सिंह (परिणीति चोपड़ा) की सच्चाई से अनजान डॉक्टर मिर्जा अली (हार्डी संधू) को उससे प्यार हो जाता है। दुर्गा साल 2001 में दिल्ली में संसद पर हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी ओमार खालिद (शरद केलकर) की तलाश में अफगानिस्तान आई है। वह उसी शादी में आने वाला है, जहां मिर्जा को जाने का भी न्योता है। वह मिशन फेल हो जाता है। फिर कहानी पहुंचती है तुर्किए, जहां दुर्गा को एक और मिशन दिया जाता है कि उसे रॉ एजेंट अजय बक्शी (दिब्येंदु भट्टाचार्य) को मारना है, जो रॉ के एक सीनियर के मुताबिक गद्दार है। क्या वाकई अजय बक्शी गद्दार है? क्या दुर्गा अजय को मार पाएगी या ओमर को पकड़ पाएगी? कहानी इसी पर आगे बढ़ती है।

‘द गर्ल ऑन ट्रेन’ जैसी क्लासिक फिल्म बना चुके रिभू दासगुप्ता इस बार ‘कोड नेम: तिरंगा’ के जरिये दर्शकों के सामने नई कहानी लेकर आए हैं। कोड नेम तिरंगा एक ऐसे अंडरकवर एजेंट पर आधारित कहानी है, जिसका हीरो फिल्म की हीरोइन ही है यानी कि परिणीति चोपड़ा। इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा ने एक्शन सीन में दो-दो हाथ किए हैं। मूवी में उनके कमाल के एक्शन सीन हैं। मगर फिल्म देखकर लगता है कि जितनी मेहनत ऐक्शन सीन पर की गई है, उतनी मजबूत कहानी गढ़ने में नहीं।

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रा के एजेंट्स का दूसरे देश में जाकर खुफिया मिशन को अंजाम देने की कहानी कई फिल्मों में दिखाई जा चुकी है। कोड नेम तिरंगा भी उन्हीं फिल्मों की सूची को आगे बढ़ाती है।

फिल्म का नाम कोड नेम तिरंगा क्यों है, यह सवाल आप अंत तक खुद से पूछते रह जाएंगे। जिस मिशन का नाम तिरंगा रखा गया है, उस मिशन की गंभीरता तो दिखती ही नहीं है। फिल्म के सभी चरित्र जैसे हैं, वैसे क्यों हैं उसकी वजहें स्पष्ट नहीं हैं। जैसे आतंकी ओमर कहता है कि मेरे वालिद कहा करते थे कि जब एक कमजोर इंसान आवाज उठाता है, तो पूरी दुनिया लानत करती है, लेकिन जब वही कमजोर इंसान बंदूक उठाता है तो उसे दहशरतगर्दी कहते हैं…।

फिल्म के अंत में ओमार के घर में दुर्गा का अकेले घुसकर उसके लोगों को मारने वाले दृश्य में वंदे मातरम… गाने को बैकग्राउंड में रखने के पीछे निर्देशक रिभु दासगुप्ता का उद्देश्य समझ नहीं आता है। सिर्फ एक गाना इसे देशभक्ति वाली फिल्म नहीं बना सकता है। इस क्लाइमेक्स सीन को एक वीडियो गेम की तरह शूट किया गया है, जिसमें परिणीति के सिर्फ हाथ दिखते हैं और बंदूकें बदलती रहती हैं, जो दिलचस्प नहीं लगता है।

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