(न्यूज़लाइवनाउ-India) शारदीय नवरात्र का शुभारंभ माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना से होता है।
इस वर्ष 22 सितंबर से नवरात्र का शुभ पर्व प्रारंभ होगा। नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रूपों की साधना की जाती है। पहले दिन कलश स्थापना के साथ मां शैलपुत्री का पूजन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। मां की भक्ति से साधक को शक्ति, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री की आराधना से मिलने वाले लाभ
माता शैलपुत्री की साधना से सांसारिक सुख, मानसिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जीवन की रुकावटें दूर होकर प्रगति के नए मार्ग खुलते हैं।
प्रातः स्नान कर शुद्ध होकर शुभ मुहूर्त में पूजा प्रारंभ करें। कलश स्थापना करें और एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अक्षत रखें। मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र विराजित करें। गंगाजल से अभिषेक करें तथा लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चंदन और लाल फल अर्पित करें। अंत में माता की आरती करें और भक्तिभाव से प्रार्थना करें।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को गौ-घृत (गाय का घी) अर्पित करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। मान्यता है कि इससे साधक को उत्तम स्वास्थ्य, रोगों से मुक्ति, दीर्घायु और जीवन में ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
मां शैलपुत्री की कथा
माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। अपने पूर्व जन्म में वे राजा दक्ष की कन्या सती थीं और भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं। पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में जब भगवान शिव का अपमान हुआ तो सती ने आत्मदाह कर लिया। इससे शिव क्रोधित होकर यज्ञ स्थल को ध्वस्त कर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 अंग पृथक किए, जो आगे चलकर शक्तिपीठ कहलाए। इसके बाद सती ने हिमालय के घर जन्म लेकर शैलपुत्री रूप में अवतार लिया।मां शैलपुत्री का मंत्रपूजा के समय इस मंत्र का जप करना विशेष फलदायी है—ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः।