(न्यूजलाइवनाउ-Ghosi,UP) अगर भसपा कैंडिडेट नही उतरती है तो इसका सीधा नुकसान सपा और बीजेपी को हो सकता है क्योंकि Ghosi में दलित समुदाय का वोट बैंक सबसे ज्यादा है और बसपा के कैंडिडेट न उतारने से ये वोट सीधे बीजेपी को ट्रांसफर हो सकता है।
सीट के मुस्लिम वोटर्स जीत और हार के अहम भूमिका निभाते है। अगर सीट की बात करे तो Ghosi विधान सभा में कुल 4,30,000 मतदाता उम्मीदवारों के भाग का फैसला करेंगे।
सरवन समाज के मतों की बात करे तो उनकी संख्या एक लाख से भी कम है वही पिछड़ा दलित और अल्प संख्यक समझ ही चुनाव की हार और जीत की अहम भूमिका निभाएंगे।
Ghosi election 2023 के आंकड़े
आंकड़ों की माने तो यह आंकड़ा करीब 40 हजार यादव और 62 हजार दलित है, 40 हजार राजधर और 60 हजार मुस्लिम मतदाता इसके अलावा अन्य वोटर्स की संख्या करीब 72 हजार है।
अगर इन संख्याओं पे ध्यान दे तो बात तो साफ है की अखिलेश यादव जिस PDA की बात कर रहे है उसकी तादत ज्यादा है और वो चुनावी जीत और हार में अहम भूमिका निभा सकती है।
मुस्लिम यादव गठजोड़ को समाजवादी पार्टी का मुख्य आधार माना जाता है इस लिहाज से समाजवादी पार्टी को लीड मिलती नजर आ रही है। लेकिन यह Mayawati के कैंडिडेट को ने उतारने से दलित वोटर्स बीजेपी के साथ जा सकते है।
दलित वोटर्स अगर बीजेपी की और शिफ्ट होजाए तो इसका नुकसान सीधे अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी को झेलना पड़ेगा। हालांकि अखिलेश यादव भी इस बार दलित वोटर्स को साथ देने के लिए कोशिश कर रहे है।
Ghosi, UP election 2023 में अब तक पार्टी से ज्यादा चेहरों की जीत होती रही है
सूत्रों के अनुसार उपचुनाव न सिर्फ समाजवादी पार्टी बल्कि सुभासपा के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सपा छोर कर NDA में शामिल हुए राजभर के लिए भी अब अपनी ताकत दिखाने का बड़ा मोका है।
हालांकि सीट का ये भी इतिहास है की यह पे पार्टी से ज्यादा चेहरों की जीत होती रही है। अगर फागू चौहान के जीत को देखे तो वे जिस दल में रहे उनकी जीत होती रही।
वही दारा सिंह चौहान की जीत के देखे तो वे जिस दल में भी गए जीत उनकी हुई इसका ये अर्थ है की अगर विधान सभा में जाती समीगण का बोलबाला रहा तो अब खुले तौर पर अखिलेश यादव पिछड़ा दलित अल्प संख्यक समाज की राजनीति को धार दे रहे है तो उनके लिए किसी टेस्ट से कम नहीं है।