(न्यूज़लाइवनाउ-Noida-Greater Noida) देश में फंसे कुल हाउसिंग प्रोजेक्ट का 35 फीसद हिस्सा इन दो जगहों से आता है. यहां करीब 1.65 लाख फ्लैट फंसे हुए हैं और लोगों का 1.18 लाख करोड़ रुपया अटक गया है.
देश में फंसे कुल हाउसिंग प्रोजेक्ट का 35 फीसद हिस्सा इन दो जगहों से आता है. पजेशन की डेट कई बार निकल चुकी है और रजिस्ट्री भी नहीं हो पा रही है. लोग किराया और ईएमआई भरकर परेशान हैं. दिल्ली-एनसीआर के विकास में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत बड़ा योगदान रहा है. दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के इस इलाके ने दिल्ली की बढ़ती आबादी को अपने आप में समा लिया है. गौतम बुद्ध नगर जिले में पड़ने वाला यह इलाका उत्तर प्रदेश की शान है. यहां हजारों कंपनियां और लाखों लोग रहते हैं. मगर, बढ़ती आबादी को जरूरतों को पूरा करने में नोएडा-ग्रेटर नोएडा पिछड़ते दिख रहे हैं. यहां घर खरीदने वाले उसका पजेशन मिलने का अभी भी इंतजार कर रहे हैं.
पजेशन डेट निकल जाने के बाद भी फ्लैट मिलने का इंतजार
घर खरीदने वालों की समस्याओं पर जारी हुए एक श्वेत पत्र से खुलासा हुआ कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा में लगभग एक लाख लोग फ्लैट के रजिस्टर होने का इंतजार कर रहे हैं. साथ ही 60 हजार लोग पजेशन डेट निकल जाने के बाद भी फ्लैट मिलने का इंतजार कर रहे हैं. यह जानकारी नोएडा डायलॉग और नमो सेवा केंद्र द्वारा जारी श्वेत पत्र में दी गई है.
उत्तर प्रदेश के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में इस समय 1.65 लाख फ्लैट फंसे हुए हैं. यह देश में कुल फंसे घरों का 35 फीसद हिस्सा है. इनमें लोगों का 1.18 लाख करोड़ रुपया अटका हुआ है. अपना घर मिलने के लिए लोगों का इंतजार बढ़ता ही जा रहा है. पजेशन की डेट कई बार निकल चुकी है और रजिस्ट्री भी नहीं हो पा रही है. इससे लोगों पर किराये और ईएमआई का दोहरा बोझ पड़ रहा है. प्रॉपर्टी विशेषज्ञ नोएडा को फंसे हुए घरों के मामले में सबसे दयनीय शहर बताते हैं.
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यह जानकारी देते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि हमें जल्द से जल्द इन समस्याओं पर ध्यान देना होगा. केंद्र और यूपी सरकार को इस समस्या का समाधान जल्द निकालने की आवश्यकता है. लोगों में काफी गुस्सा है. यूपी रेरा रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 से अब तक गौतम बुद्ध नगर में 850 रिहायशी प्रोजेक्ट लांच हो चुके हैं. इनमें से 90 फीसद नोएडा अथॉरिटी, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेसवे डेवलपमेंट अथॉरिटी के दायरे में आते हैं. इनमें से लगभग 50 फीसद प्रोजेक्ट तीन साल से भी ज्यादा समय से फंसे हैं. रेरा पोर्टल पर इस संबंध में लगभग 27,992 शिकायतें की जा चुकी हैं.
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