(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): राष्ट्रमंडल संसदीय संघ बैठक के अंतिम दिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने जनप्रतिनिधियों को नसीहत दी है कि सदन के भीतर तथा बाहर उनका आचरण तथा व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि लोगों का लोकतांत्रिक संस्थाओं पर विश्वास बढ़े। उनसे गरिमामय आचरण की अपेक्षा की जाती है, वे विधायी सदनों का स्तर गिरने न दें। लोकसभा स्पीकर ने कहा कि विधायी सदनों में गतिरोध लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं और जनता के मन में इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। बाद में मीडिया से भी बात करते हुए बिरला ने इस पर चिंता जताई कि सदन आरोप-प्रत्यारोप के ठिकाने बन गए हैं, जबकि इन्हें सहमति-असहमति, संवाद-बहस, विचार-विमर्श का केंद्र होना चाहिए। बिरला ने कहा कि 2001 में सभी दलों के अध्यक्षों, मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचेतकों ने यह तय किया था कि विधानमंडलों में राज्यपाल व संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर कोई गतिरोध उत्पन्न नहीं किया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि दलगत राजनीति इस संकल्प पर हावी हो गई। बिरला ने हालांकि, उम्मीद जताई कि इस सम्मेलन के मुख्य बिंदु कानून निर्माण की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी पर दो दिनों तक जैसी चर्चा हुई। उससे यह उम्मीद बंधी है कि एक दिन आएगा जब देश में हर सदन सार्थक और सकारात्मक कामकाज के लिए ही जाना जाएगा।
बिरला ने राजनीतिक विमर्श में असंसदीय व्यवहार और अवांछनीय शब्दावली के इस्तेमाल को लोकतंत्र के लिए अशुभ बताया और कहा कि नेताओं की ओर पूरा देश देखता है, वे जो कहते और करते हैं, वह मिसाल बनती है। इस लिहाज से उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। वे समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले होने चाहिए। नागरिकों के प्रति जितना दायित्व राज्य और राष्ट्रीय स्तर के सदनों का है, उतना ही स्थानीय निकायों और पंचायतों का भी है। स्पीकर ने बताया कि संसद और राज्यों के विधानमंडलों को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिए कार्य किया जा रहा है। यह काम 31 मार्च तक कर लिया जाएगा। राज्यों से कहा गया है कि वे अपने विधानमंडलों की अब तक की समस्त कार्यवाही और रिकार्ड भेज दें। इससे पूरे देश में कोई भी किसी भी सदन के रिकार्ड, कार्यवाही और बहस को देख सकेगा। बिरला ने कहा कि यह भारत जैसे विशाल लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी बात होगी। इससे युवाओं की विधायी कामकाज के प्रति रुचि बढ़ेगी।