(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 साल की आयु में निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर साढ़े 3 बजे अंतिम सांस ली। स्वामी शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे। स्वामी शंकराचार्य आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। वहीं उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म सन 1924 मे, मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तर प्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे। क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी।
स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे। ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 2018 में जगतगुरु शंकराचार्य का 95वां जन्मदिन वृंदावन में मनाया गया था।
उन्होंने आजादी की लड़ाई में भी भाग लिया था। इस दौरान उन्होंने वाराणसी के जेल में 9 और मध्य प्रदेश के जेल में 6 महीने यानी कुल 15 महीने की सजा भी काटी थी
राम मंदिर निर्माण के लिए शंकराचार्य ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। इसके अलावा स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जि साईं बाबा की पूजा के खिलाफ भी थे और हिंदुओं से लगातार अनुरोध करते थे कि साईं बाबा की पूजा ना की जाए, क्योंकि वह हिंदू धर्म से संबंध नहीं रखते हैं।