केरल बाढ़ त्रासदी के तीन बड़े कारण
केरल में अकेले 53 बड़े बांध हैं। इन बांधों की क्षमता सात खरब लीटर पानी संग्रह की है। केरल के अधिकतर बांध संवेदनशील पश्चिमी घाट पर बने हुए हैं।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : केरल में भीषण बाढ़ के बाद एक बार फिर से बांध प्रबंधन प्रोटोकाल के अमल पर सवाल उठ गए हैं। एक बहस छिड़ गई है कि बांधों का प्रबंधन कैसे और किस तरह से किया जाए, ताकि पर्यावरण संतुलन के साथ बाढ़ जैसी त्रासदी का सामना नहीं करना पड़े। आइए जानते हैं, देश में बांधों की संख्या और उसकी स्थिति के बारे में। क्या है बांध प्रबंधन का प्रोटोकॉल। क्या है बाढ़ से बचने के उपाय। इसके साथ यह भी जानेंगे कि केंद्र सरकार ने इसके लिए क्या पहल की है।केरल में अकेले 53 बड़े बांध हैं। इन बांधों की क्षमता सात खरब लीटर पानी संग्रह की है। केरल के अधिकतर बांध संवेदनशील पश्चिमी घाट पर बने हुए हैं। पर्यावरण के लिहाज से यह इलाका अत्यधिक संवेदनशील है। इस बार भी यह देखा गया है कि सबसे अधिक भूस्खलन की घटनाएं व जानमाल की क्षति यहीं हुई है। इसके अलावा कई बांधों का नियंत्रण अंतरराज्यीय है। उदाहरण के तौर पर मुल्लापेरियार बांध केरल में है और उसका प्रबंधन तमिलनाडु के जिम्मे है। इससे जलस्तर को लेकर हमेशा दोनों राज्यों में विवाद बना रहता है। केरल के ही 57 फीसद बड़े बांध पनबिजली के लिए हैं। इनका प्रबंधन केरल राज्य बिजली बोर्ड करता है। वह बांध में जलस्तर, बाढ़ नियंत्रण के बजाए बिजली उत्पादन के आधार पर तय करता है।देश में कुल पांच हजार बांध है। इनकी ऊंचाई 15 मीटर से भी अधिक है। इसमें से 28 बांध सैद्धांतिक रूप से बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं। अगर राज्यवार बांधों की संख्या की बात की जाए तो महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बांध हैं। महाराष्ट्र में 2069 बांध हैं। मध्य प्रदेश में इन बांधों की संख्या 899 है। संख्या के लिहाज से यह दूसरे नंबर पर है। गुजरात में 620 बांध हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में 248 बांध है।देश में अधिकतर बांध 1970 से 1990 के बीच बनाए गए। वर्ष 1971 और 1981 सर्वाधिक बांधों का निर्माण किया गया। वर्ष 1971 में 1288 बांध बनाए गए, जबकि 1981 में 1304 बांधों का निर्माण हुआ। आजादी के ठीक बाद 1951 सबसे कम 235 बांधो का निर्माण हुआ। केरल में बाढ़ की त्रासदी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर हम बांध प्रबंधन प्रोटोकाल में तत्काल बदलाव और अमल से ही बाढ़ की त्रासदी से निपट सकते हैं। आखिर क्या है यह प्रोटोकाल।मानसून से पहले ही बांधों को खाली किया जाना चाहिए। बांधों से पानी छोड़े जाने की प्रक्रिया को चरणबद्ध ढंग से लागू किया जाना चाहिए। बांध के पानी के निकासी के लिए फ्लड फ्लो कैनाल का निर्माण बेहद जरूरी है। मानसून में बांध में अधिक जल की स्थिति में इस पानी को इसी फ्लड फ्लो कैनाल में छोड़ा जाना चाहिए। यह एक तरह से बाढ़ में सेफ्टीवॉल का कार्य करते हैं।बांधों के निर्माण के पूर्व उसके फायदे व बाढ़ नियंत्रण संबंधी सभी पहलुओं का बहुत बारीकी से अध्ययन किया जाना चाहिए। कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने जलाशयों के साथ फ्लड फ्लो कैनाल बनानी शुरू की है। जब जलाशय भर जाते हैं तो कैनाल के जरिए पानी छोड़ा जाता है। तेलंगाना के श्रीराम सागर बांध में यह व्यवस्था है। पोलावरम बांध में ऐसी नहर बनाई जा रही है।2016 में मध्यप्रदेश के बाणसागर बांध से पानी छोड़ने के कारण कम बारिश के बावजूद बिहार के कई इलाके डूब गए थे। वर्ष 2015 में अडयार नदी पर बने चेमबरबक्कम बांध से पानी छोड़े जाने की वजह से चेन्नई को दशकों बाद बाढ़ का सामना करना पड़ा।वर्ष 2006 में उकाई बांध से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण सूरत शहर जलमग्न हो गया था। शहर का अस्सी फीसद हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ गया था।जून 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बांध सुरक्षा अधिनियम-2018 को संसद में लाने की मंजूरी दी। इस विधेयक का मकसद पूरे देश में बांधों के प्रबंधन और सुरक्षा मानवीकरण में एकरूपता लाना है। विधेयक में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव है।