महा ऋषि वशिष्ठ से देवश्री बड़ा छमाहूं का भव्य मिलन – सृष्टि के रचियता है देवश्री बड़ा छमाहूं

-इंद्र किला की यात्रा में देवता ने किया महायज्ञ

-आज नगर स्थित जगतीपट्ट में होगी छमाहूं की जगती

मनाली।

सराज घाटी के देवश्री बड़ा छमाहूं आजकल इंद्रलोक की यात्रा पर हैं। सराज घाटी के अधिष्ठाता देव एवं सृष्टि के रचनाकार देवश्री बड़ा छमाहूं लाव-लश्कर के साथ इस यात्रा पर हैं और हजारों लोग देवता की इस रथ यात्रा में भाग ले रहे हैं। देवता के कारदार मोहन सिंह ने बताया कि रविवार को इंद्र किला को न्यास दिया गया और वशिष्ठ ऋषि के मंदिर में देवता विराजमान हुए। इसके बाद सोमवार सुबह वशिष्ठ ऋषि से भव्य मिलन के बाद देवता की रथ यात्रा वापस लोटी है और मंगलवार को नग्गर स्थित जगतिपट्ट में जगती का आयोजन होगा। गौर रहे कि मनाली के समीप देवराज इंद्र का सामा्रज्य हिमालय की तलहटी पर विराजमान रहा है। हिमालय की गोद में बसे इस इंद्रकिला का इतिहास बेहद प्राचीन व स्वर्गलोक से संबंध रखता है। इसी देवराज इंद्र के साम्राज्य में इंद्रकिला का भी वर्णन किया गया है,जो वर्तमान में मनाली स्थित नेहरू कुंड के ठीक ऊपर वाली पहाड़ी पर है। देवभूमि कुल्लू के अठारह करोड़ यानिकि अठारह करडू देवी-देवताओं ने इसी इंद्रकिला की पहाड़ी को तोड़कर जगतीपट्ट मधुमक्खियों का रूप धारण करके उठाकर लाया था, और कुल्लू देश की राजधानी नग्गर में स्थापित किया था। इस जग्तीपट्ट को संसार की सबसे बड़ी एवं शक्तिशाली देव शिला माना जाता है। जहां सदियों से विश्व की सबसे बड़ी देव अदालत लगती है। विश्व में कोई भी विपदा आने वाली हो तो अठारह करोड़ देवी-देवता इस शिला पर विराजमान होकर देव कचहरी का आयोजन करते हैं और आने वाली विपदा को रोकने का कार्यभार सभी देवी-देवता को सौंपते हैं। आज माना जा रहा है कि देवराज इंद्र किला पर ही संकट आ गया है जिसे रोकने के लिए देवश्री बड़ा छमाहूं स्वयं वहां पर पहुंचे हैं और देवराज इंद्र के साम्राज्य में शांति स्थापित करने जा रहे हैं। इंद्रकिला का इतिहास कई पुराणों में है और इसके बारे में बहुत लंबा इतिहास है। जिस इंद्रकिला से देवभूमि के देवी-देवता जगतीपट्ट लाया था उसके चिन्ह आज भी इस पहाड़ी पर विराजमान है। यूं मानों कि इस पहाड़ी से देवी-देवताओं ने काटकर यह शिला लाई थी और नग्गर में स्थापित की थी।

आज देवश्री बड़ा छमाहूं की यह यात्रा व विश्व की भलाई के लिए मानी जा रही है। सनद रहे कि देवश्री बड़ा छमाहूं विष्णु भगवान का वह रूप है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश,आदी, शक्ति,शेष भी विराजमान है। देवश्री बड़ा छमाहूं ब्रह्मा, विष्णु ,महेश ,आदी ,शक्ति, शेष छ: देवी-देवताओं के समूह का अवतार माना जाता है। छमाहूं की उत्पति ओम से हुई है और छमाहूं सृष्टि के रचियता हैं ।

इन छ: शक्तियों के बिना सृष्टि की रचना संभव नहीं है। छमाहूं का अवतार प्रलय के बाद उस समय हुआ था जब सृष्टि की पुन: रचना की जा रही थी। सुर्य,चंद्रमा, पृथ्वी सहित तमाम ग्रह अंधकार सागर में डूबे हुए थे और जब सृष्टि ने फिर से जन्म लेना था तो चारों ओर एक ही ध्वनि थी वह थी ओम की ।

ब्रह्मा, विष्णु ,महेश जब सृष्टि की रचना करने में जुट गए थे तो सृष्टि पूर्णमय नहीं हो रही थी तब सृष्टि को पूर्ण करने के लिए शक्ति व आदि अनंत को प्रकट करना पड़ा उसके बाद अंधकार सागर से सभी ग्रहों को अपने-अपने स्थानों पर स्थापित किया गया लेकिन उस अंधकार सागर में उन सभी ग्रहों के डूब जाने से इतनी ऊर्जा उत्पन्न हो चुकी थी कि वह ऊर्जा इतनी भयंकर थी कि फिर से प्रलय होने लगी और वह ऊर्जा एकत्र होकर शेषनाग का रूप धारण करके ब्रह्मंड में तबाही मचाने को निकल पड़ी लेकिन पांचों देवों ब्रह्मा,विष्णु ,महेश ,आदी ,शक्ति ने स्थिति को भांपते हुए पुछा कि तुम कौन से देव हो तो जबाब आया कि सभी ग्रहों की स्थापना तो हो चुकी है लेकिन जो इन ग्रहों से सागर में ऊर्जा उत्पन्न हुई है उसका शेष भाग मैं हूं । उसके बाद उक्त पांचों देवों ने माना कि सृष्टि की रचना में छठी शक्ति भी है और उस शक्ति को शेषनाग का नाम देकर अपने सृष्टि रचना के समूह में शामिल किया। उसके बाद सृष्टि के रचनाकार छ: देवताओें की सामुहिक शक्ति जो अवतारित हुई का नाम छमाहूं पड़ा । छमाहूं का अर्थ है छ: जमा समूह यानिकि छ: देव शक्तियों का एक मुंह। बहरहाल आज तक सृष्टि की रचना के बाद देवश्री बड़ा छमाहूं की पुजा होती है और इस छमाहूं देव को ही सृष्टि का रचनाकार माना जाता है । यह सारी शक्तियां भगवान विष्णु में समाहित है इसलिए यह माना जाता है छमाहूं विष्णु का वह रूप है जिसमे छः देव समाहित है।

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