हिमाचल के इस रहस्यमयी मंदिर में है मक्खन से बना शिवलिंग
बात हो रही है बाबा भूतनाथ मंदिर की। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव से एक माह पूर्व से बाबा भूतनाथ मंदिर में प्राचीन समय से मक्खन चढ़ाने की परंपरा को कायम रखते हुए हर रोज अलग-अलग रूपों का शृंगार किया जाता है।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : हिमाचल को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। देवभूमि के कई मंदिर रहस्यों से भरे पड़े हैं। इन मंदिरों से जुड़ी देव आस्था की बातें हर किसी को हैरान कर देती हैं। हिमाचल में ऐसे सैंकड़ों मंदिर हैं जिनकी पौराणिक मान्यताएं और दैवीय शक्तियां चर्चा का विषय बनी हुई हैं।ऐसा ही एक मंदिर मंडी शहर में स्थित है। बात हो रही है बाबा भूतनाथ मंदिर की। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव से एक माह पूर्व से बाबा भूतनाथ मंदिर में प्राचीन समय से मक्खन चढ़ाने की परंपरा को कायम रखते हुए हर रोज अलग-अलग रूपों का शृंगार किया जाता है।प्राचीन परंपरा के अनुसार बाबा भूतनाथ मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग पर शुक्रवार को मक्खन से आनंद भैरो का मनमोहक रूप उकेरा गया। आनंद भैरो का मंदिर मायापुर हरिद्वार में स्थित है। इस स्थान पर माता माया देवी का प्राचीन मंदिर भी विराजमान है।मंदिर के महंत देवानंद सरस्वती ने बताया कि भैरो शिवजी का रूप हैं। भैरो बाबा गलत शक्तियों को दूर करते हैं और भैरो की आराधना से कष्ट दूर होते है। इसके चलते मायापुर हरिद्वार में स्थित आनंद भैरों का रूप उकेरा गया है।शनिवार को स्वयंभू शिवलिंग पर मक्खन से न्याय देवी का मनमोहक रूप उकेरा गया। मंदिर के महंत देवानंद सरस्वती ने बताया कि न्याय देवी हरिद्धार की हैं। उन्होंने कहा कि 3 फरवरी से 3 मार्च तक स्वयंभू शिवलिंग रोज स्वरूप बदलेगा। प्राचीन परंपरा का निर्वाह करते हुए मंडी के आराध्य देव बाबा भूतनाथ में शिवलिंग का शृंगार मक्खन के लेप की विधि धृत कंबल से किया जाता है। शिवरात्री के एक दिन पहले इस लेप को निकाला जाएगा। मान्यता है कि वैदिक काल से यह परंपरा चली आ रही हैं। मंदिर के महंत देवानंद सरस्वती के अनुसार हर शाम जब वह साधना में होते हैं। इस दौरान उन्हें जिस भी देवी-देवता का स्वरूप दिखता है, उसे मक्खन के शिवलिंग में उकेर देते हैं। इस तरह यहां श्रद्धालुओं को देश भर में पूजे जाने वाले प्रमुख देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। हालांकि, इसके वैज्ञानिक पहलू भी हैं लेकिन देव आस्था इन वैज्ञानिक पहलुओं पर हावी रहती है। करीब 30 दिन तक शिवलिंग पर किसी भी प्रकार का जल नहीं चढ़ाया जाता।