(न्यूज़लाइवनाउ-Pakistan) ईद-उल-अज़हा से पहले पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय को उनके धार्मिक कार्यों से रोकने के लिए शपथपत्रों पर जबरन दस्तखत कराए जा रहे हैं।
पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय, जिसने एक समय देश के गठन में मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग का साथ देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, आज अपने ही वतन में धार्मिक, सामाजिक और कानूनी उत्पीड़न का सामना कर रहा है। ईद-उल-अजहा 2025 (7 जून) से पहले इस समुदाय के लिए यह पर्व श्रद्धा के बजाय भय और दमन का प्रतीक बन गया है।
पंजाब और सिंध क्षेत्रों में स्थानीय पुलिस व प्रशासन अहमदिया लोगों पर दबाव बना रहे हैं। उन्हें जबरन हिरासत में लेकर शपथ-पत्र और क्षतिपूर्ति बॉन्ड पर दस्तखत कराए जा रहे हैं। यहां तक कि निजी परिसर में भी कुर्बानी किए जाने पर प्रतिबंध की चेतावनी दी जा रही है। इन दस्तावेज़ों में यह लिखा जा रहा है कि वे ईद-उल-अजहा से जुड़ी किसी धार्मिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे, और ऐसा न करने की स्थिति में 5 लाख पाकिस्तानी रुपये का आर्थिक दंड लगाया जाएगा। यह कार्रवाई वर्ष 2023 की एक अधिसूचना को आधार बनाकर की जा रही है। लाहौर फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार के हलफनामे पर दबाव डालकर हस्ताक्षर करवाना ना केवल गैर-कानूनी है, बल्कि यह अधिकार क्षेत्र से भी परे है।
मानवाधिकारों का दमन जारी
साल 1974 में पाकिस्तान के संविधान में किए गए संशोधन के बाद अहमदिया समुदाय को मुस्लिम धर्म से अलग कर दिया गया था। इसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक तौर पर कुरान पढ़ने, नमाज अदा करने, इस्लामिक अभिवादन (सलाम) कहने और मस्जिद निर्माण जैसे धार्मिक कार्यों से वंचित कर दिया गया। यदि वे ऐसा करते पाए जाते हैं, तो उन्हें कानूनी सजा दी जाती है, जिसमें जेल भेजा जाना भी शामिल है।
100 से अधिक कब्रों का क्षतिग्रस्त
अहमदिया समुदाय को मौत के बाद भी अपमान का सामना करना पड़ता है। मार्च 2025 में, चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ने पंजाब के खुशाब इलाके में 100 से अधिक कब्रों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसके अलावा, टीटीपी और अन्य कट्टरपंथी गुट अहमदियों को लगातार निशाना बना रहे हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2024 में ईद से जुड़े धार्मिक क्रियाकलापों को रोकने के लिए कम से कम 36 अहमदिया नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था।
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