गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक अब किसी भी महिला को अबॉर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेना जरूरी नहीं है। एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये फैसला लिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार है। गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेना जरूरी नहीं है। बता दें कि पत्नी से अगल हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उसके माता-पिता, भाई और दो डॉक्टरों पर ‘अवैध’ गर्भपात का आरोप लगाया था। पति ने बिना उसकी सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी।
इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह से महिला का हो सकता है। अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम खानविलकर की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वो एक मां है ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। ये कानून के दायरे में आता है।
जानें क्या है पूरा मामला:
जिस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी उसकी शादी सन् 1995 में हुई थी। लेकिन उसके और उसकी पत्नी के रिश्ते में खटास आने लगी जिसके बाद पत्नी अपने बेटे के साथ चंडीगढ़ में अपने मायके चली गई। सन् 1999 से महिला अपने मायके में रह रही थी। नवंबर 2002 से दोनों ने फिर साथ रहने का फैसला लिया। लेकिन फिर बात नहीं बनी और 2003 में दोनों की बीच तनाव हुआ और तलाक हो गया।
2003 में जब दोनों ने तलाक लिया उस समय महिला प्रेगनेंट थी। लेकिन महिला इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी और गर्भपात करवाना चाहती थी। लेकिन पति ने इस बात का विरोध किया और उसके परिवारवालों से इस बारे में बात की। बाद में महिला ने अपने परिवार से संपर्क किया, जिसके बाद माता-पिता महिला को लेकर चंडीगढ़ के अस्पताल ले गए यहां पति ने अस्पताल के दस्तावेज जिसमें गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी पर भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
इस पूरे मामले के बाद पति ने कोर्ट में महिला के माता-पिता, उसके भाई और डॉक्टर्स पर 30 लाख रुपए के मुआवजे का केस कर दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि विवाद के बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध की इजाजत है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महिला गर्भ धारण करने के लिए भी राजी हुई है, यह पूरी तरह से महिला पर निर्भर है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। पति उसे बच्चे को पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।