विजय माल्या और सुब्रत रॉय देश की अर्थव्यवस्था में वह नाम है जिन्हें पैसे लेकर वापस न करने का पर्याय माना जाता है. विजय माल्या देश के सरकारी बैंकों से 9000 करोड़ रुपये लेकर न लौटाने के लिए विलफुल डिफॉल्टर घोषित हैं और सुब्रत राय सहारा ने निवेशकों से पैसे लेकर कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन इन दोनों मामलों के बावजूद देश के सरकारी बैंक न तो अपने कर्ज देने की व्यवस्था को दुरुस्त कर पाएं हैं और न ही देश में नए-नए विजय माल्या और सुब्रत रॉय बनने की रफ्तार पर लगाम लगा पाए हैं.
सार्वजनिक बैंकों का कहना है कि जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों कर्जदारों (विलफुल डिफाल्टरों) पर उनके बकाया कर्ज में 20 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह इस साल मार्च के आखिर में कुल मिलाकर बढ़कर 92000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया.
ऐसे कर्जदारों का बकाया रिण वित्त वर्ष 2016-17 के आखिर में बढ़कर 92,376 करोड़ रुपये हो गया जो कि 20.4 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी दिखाता है. यह कर्ज मार्च 2016 के आखिर में 76,685 करोड़ रुपये था. इसके साथ ही सालाना आधार पर ऐसे कर्जदारों की संख्या में लगभग 10 फीसदी बढोतरी दर्ज की गई.
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जानबूझाकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की संख्या मार्च के आखिर में 8,915 हो गई जो कि पूर्व वित्त वर्ष में 8167 रही थी. बैंकों ने जानबूझाकर कर्ज नहीं चुकाने के 8915 मामलों में से 32,484 करोड़ रुपये के बकाया कर्ज वाले 1914 मामलों में प्राथमिकी एफआईआर दर्ज करवाई है.
वित्त वर्ष 2016-17 में एसबीआई व इसके पांच सहयोगी बैंकों सहित 27 सार्वजनिक बैंकों ने 81,683 करोड़ रूपये को बट्टे खाते में डाला. यह बीते पांच साल में सबसे बड़ी राशि है. पूर्व वित्त वर्ष की तुलना में यह राशि 41 फीसदी अधिक है.
गौरतलब है कि मार्च 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 41 बैंकों का कुल बैड लोन वित्त वर्ष 17 की दिसंबर तिमाही तक 7 लाख करोड़ रुपये था. यह आंकड़ा एक साल पहले के आंकड़े से 60 फीसदी अधिक है. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान इन बैंकों का ग्रॉस एनपीए 6.74 लाख करोड़ रुपये था.