कांची शंकराचार्य समाधी प्रकरण: सोशल मीडिया के निशाने पर मैंनस्ट्रीम मीडिया।

कम्युनिस्ट मीडिया हाउसेस पर भी लोग सोशल मीडिया में गंभीर आरोप लगा रहे हैं।

(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ) अब सोशल मीडिया के निशाने पर मैंनस्ट्रीम मीडिया भी आ गया है। श्री देवी की मृत्यु की लगातार और अत्यधिक मीडिया कवरेज से नाराज लोग अब सोशल मीडिया पर जम कर नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं। क्योंकि इसी दौरान महत्वपूर्ण मुद्दों और शंकराचार्य की समाधि लेने की ख़बर को बहुत सा मीडिया ग्रुप दबा गया। जबकि अब होली में महिला सुरक्षा, होलिहा के गलत दहन, नारी सम्मान, उत्सव की उत्त्पत्ति जैसे मामलों पर मीडिया घंटों टीवी पर बहस दिखा रहा है। देश में हिन्दू वर्ग और साधू-संत अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सरकार पर आरोप है कि हिन्दू साधू-संतों पर लोग झूठे आरोप लगा कर उनकी छवि ख़राब करने पर जुटे हुए हैं। ऐसे में लेफ्ट यानि कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों और कम्युनिस्ट मीडिया हाउसेस पर भी लोग सोशल मीडिया में गंभीर आरोप लगा रहे हैं। लोगों ने फेसबुक पर लिखा “ऐसा नहीं कि साधू संतों के समाचार भारतीय मीडिया नहीं दिखाता, पर तभी दिखाता है जब उनकी बदनामी करनी हो। अगर किसी संत ने नेक काम किये हों जैसे जयेंद्र जी ने देश भर में गरीबों के लिए मुफ्त हस्पताल खोले वो मीडिया नहीं बतायेगा।”

आरोप है कि आसाराम, राम रहीम, राम पाल पर महीनों लगातार नेगेटिव कार्यक्रम दिखाने वाले मीडिया हाउस, किसी कीमत पर हिन्दू बाबाओं और संतों के वास्तविक रूप का परिचय देश-दुनिया को नहीं करवाना चाहता। लोग फेक बॉलीवुड स्टार के नाम से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी गालियां दे रहे हैं क्योंकि जानबूझ कर बाबाओं और संतों की छवि को ख़राब करने के लिए वो बाबा, पुरोहित, पुजारियों को बलात्कारी, अंधविश्वासी, गुंडा, गलत काम करने वाला दिखाते हैं। हिन्दू संतों के संगठनों का भी आरोप है कि उनकी हालत देश में सबसे बुरे स्तर पर पहुँच गई है। हाल ही में आई फिल्म ‘पेडमैन’ में भी अक्षय कुमार कहता है कि ‘काश मैं भी बाबा होता। इस तरह की छवियों और बातों नें संतों-बाबाओं के ख़िलाफ देश भर में वातावरण बना दिया है। संतों और बाबाओं के साथ होने वाले अपराधों को सरकार और पुलिस गंभीरता से नहीं ले रही। अब कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग और कुछ लोग जो दलितों के नाम का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं।  हिन्दू देवी-देवताओं और संतों, बाबाओं पर लगातार लिख व बोल रहे हैं। सोशल मीडिया में इतने सारे पेज और ग्रुप बने हुए हैं लेकिन सरकार जानबूझ कर सोई हुई है। क्या ये देश केवल कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों का ही हैं? इस तरह के तैरते सवालों से सोशल मीडिया भर गया है? यहाँ तक कि कम्युनिस्ट विचारधारा के पत्रकारों को भी अब हिन्दू लोगों ने पहचानना शुरू कर दिया है। क्योंकि वो उनको ही अपने साथ हो रहे अत्याचारों का बड़ा कारण मानते हैं। शंकराचार्य की समाधि पर मीडिया का मौन भी हिन्दुओं के साथ भेद-भाव का प्रतीक माना जा रहा है। कांची शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती अद्वैत वेदान्त के प्रणेता एंव आठवी शताब्दी के अध्यात्म गुरू आदि शंकराचायॆ के 69 वें प्रतिनिधि थे। लोग लिखते हैं कि जयेंद्र सरस्वती को भारतीय समाज आजीवन याद रखेगा। इन्होने शिव के दर्शन और वेद ,उपनिषद् एंव पुराणों मे वर्णित आध्यात्मिक आदर्श व बह्मवाक्यों को आत्मसात कर जीवनपथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा दी। वैसे भी भारत को साधू-संतों की ही भूमि कहा जाता है, लेकिन अब इस तरह के भेदभावों ने हिन्दुओं के मन में डर और वहम भर दिया है।

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