अगर इस प्लान पर होता काम तो नहीं होती केरल में बाढ़ के कारण तबाही
केंद्र सरकार ने केरल की बाढ़ को गंभीर प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया है। भीषण त्रासदी से राज्य को करीब 20 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : कुदरत के कहर के बाद केरल मुश्किल हालात से धीरे-धीरे उबर रहा है। हालांकि, 100 साल की सबसे विनाशकारी बाढ़ की वजह से केरल को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। केरल जैसे राज्य में इस तरह की बारिश और बाढ़ एक असाधारण घटना है। केंद्र सरकार ने केरल की बाढ़ को गंभीर प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया है। भीषण त्रासदी से राज्य को करीब 20 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। इन सबके बीच इस बाढ़ ने राज्य के लिए बेहद अहम बुनियादी ढांचे की कमर तोड़ दी है। आइए जानते हैं कि बाढ़ ने राज्य को कितना नुकसान पहुंचाया है और क्या, इस त्रासदी को रोका या कम किया जा सकता था।केरल में इस त्रासदी का सबसे ज्यादा नुकसान यहां के पर्यटन उद्योग पर पड़ा है। राज्य में राजस्व के हिसाब से पर्यटन उद्योग काफी अहम है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के जीडीपी में करीब दस फीसद का योगदान पर्यटन उद्योग का है। लाखों परिवारों का जीवनयापन इस उद्योग से जुड़ा हुआ है। बताया जा रहा है कि राज्य में आई बाढ़ के चलते करीब 80 फीसद पर्यटकों ने अपनी बुकिंग रद कर दी है। इसके अलावा राज्य में पर्यटन से जुड़ा दूसरा आधारभूत ढांचा भी पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। इसमें हवाई, रेल और मेट्रो शामिल है। इस सेक्टर को भी भारी नुकसान हुआ है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष पर्यटन उद्योग से जुड़ा है।इसके अलावा राज्य में मुख्यमार्ग और सहायक मार्ग समेत करीब दस हजार किलोमीटर से ज्यादा की सड़कें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। इसके साथ ही राज्य के 134 पुल भी पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। एक लाख से ज्यादा घर तहस-नहस हो गए। राज्य में करीब 40 हजार हेक्टेयर से भी ज्यादा की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इंसानों के साथ ही 50 हजार मवेशी और दो लाख से ज्यादा पोल्ट्री फार्म काे नुकसान हुआ है।केरल में कम समय में भारी बारिश तो बाढ़ के लिए जिम्मेदार है ही। इसके अलावा बांधों से बड़े पैमाने पर पानी छोड़े जाने से हालात और बिगड़ गए। केरल में 41 छोटी बड़ी नदियां हैं, जो अरब सागर में मिलती हैं। इन नदियों पर 80 बांध है। ज्यादा बारिश से इडुक्की आैर इदमलयार समेत 80 बांधों में जल का स्तर क्षमता से ज्यादा हो गया, जिससे बांधों से पानी छोड़ना पड़ा। इन सभी बांधों के गेट खोलने की वजह से राज्य में बाढ़ के हालत और गंभीर हो गए। केरल के 14 में से 13 जिलों में बाढ़ का असर देखा गया है। केरल के 9 जिलों समुद्री तट से मिलते हैं। इस बाढ़ में सबसे ज्यादा तबाही इडुक्की जिले में हुई। इसके अलावा मलप्पुरम, कोट्टायम आैर एर्नाकुलम में भारी तबाही हुई।जलस्तर बढ़ने के साथ ही एक-एक करके इडुक्की बांध के पांचों गेटो को खोेला गया, ऐसा 26 सालों के बाद किया गया। इससे पहले 1992 में यहां के सभी गेटों को खोले गए थे। जानकारों का कहना है कि यदि बांध से समयबद्ध तरीके धीरे-धीरे पानी छोड़ा जाता केरल में बाढ़ इतनी विनाशकारी नहीं होती। इसके अलावा बांध के पानी छोड़े जाने से पहले स्थानीय लोगों को पहले से एलर्ट करने की जरूरत थी। केरल सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में यह माना है कि बांध का पानी अचानक छोड़े जाने के कारण ऐसा हुआ है। इसके अलावा बांधों में कितना पानी है और आपात स्थिति में कितना पानी छोड़ा जाना है। इसकी जानकारी भी पूर्व में दी जानी चाहिए थी।2011 में माधव गाडगिल समिति ने पारिस्थति के लिहाल से इस इलाके को पूरी तरह से संवदेनशील करार दिया था। पश्चिमी घाट के पर्यावरण को लेकर सरकार ने पहले माधव गाडगिल समिति गठित की थी। इस समिति ने 2011 के मध्य तक रिपोर्ट की प्रक्रिया पूरी कर उसे सरकार को सौंप दिया था, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने लंबे समय तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और न ही इसे सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया। अंत में न्यायालय ने इन सिफारिशों पर काम करने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश जारी किए।2011 में माधव गाडगिल समिति ने पारिस्थति के लिहाल से इस इलाके को पूरी तरह से संवदेनशील करार दिया था। पश्चिमी घाट के पर्यावरण को लेकर सरकार ने पहले माधव गाडगिल समिति गठित की थी। इस समिति ने 2011 के मध्य तक रिपोर्ट की प्रक्रिया पूरी कर उसे सरकार को सौंप दिया था, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने लंबे समय तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और न ही इसे सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया। अंत में न्यायालय ने इन सिफारिशों पर काम करने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश जारी किए।अगर गाडगिल समिति की सिफारिश अमल में होती तो शायद केरल को बड़ी त्रासदी से बचाया जा सकता था। लेकिन उस वक्त केरल समेत इन राज्यों ने माधव गाडगिल समिति की रिपोर्ट का विरोध किया था, जिसने पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिकी के लिए पूरी तरह संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया था। सीमित ने खनन एवं अन्य विकास गतिविधियों का रोकने का पक्ष लिया था।तब सरकार ने आगे की दिशा तय करने के लिए कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया, जिसने अप्रैल, 2013 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक और योजना आयोग के सदस्य के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाले नौ सदस्यीय समूह का गठन केरल सहित कई राज्यों के विरोध को देखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने किया था।दरअसल, भारत की 1600 किलोमीटर लंबी पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रृंखला को संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जा चुका है। पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रंखला को विश्व में जैव विविधता के 8 सर्वाधिक संपन्न क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इस श्रृंखला के वन भारतीय मानसून की स्थिति को प्रभावित करते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होने वाली पश्चिमी घाट श्रृंखला महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल से होकर गुजरती है तथा कन्याकुमारी में समाप्त होती है। इस क्षेत्र को यूनेस्को ने मानव का प्राकृतिक पर्यावास कहा है।