जासूसी कांड में AAP नेता मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ीं, CBI ने दर्ज की FIR
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुश्किले थमने का नाम नहीं ले रही है। अब CBI ने फीडबैक यूनिट मामले में सिसोदिया समेत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सलाहकार गोपाल मोहन पर FIR दर्ज की है।
(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुश्किले थमने का नाम नहीं ले रही है। अब CBI ने फीडबैक यूनिट मामले में सिसोदिया समेत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सलाहकार गोपाल मोहन पर FIR दर्ज की है। FIR के मुताबिक, FBU केस में सिसोदिया समेत 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इन सभी के खिलाफ 120B, 403,468,471,477 IPC और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है।
CBI द्वारा दर्ज FIR में नई दिल्ली के तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी सुकेश कुमार जैन, CISF के रिटायर्ड DIG और फीडबैक यूनिट के जॉइंट डायरेक्टर एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विशेष सलाहकार सुकेश कुमार जैन, रिटायर्ड जॉइंट डिप्टी डायरेक्टर प्रदीप कुमार पुंज , CISF के रिटायर्ड असिस्टेंट कमांडेंट सतीश खेत्रपाल (फीड बैक ऑफिसर), गोपाल मोहन (दिल्ली के मुख्यमंत्री के सलाहकार) एवं अन्य के नाम हैं। ऐसे में देखा जाए तो पूरी की पूरी फीडबैक यूनिट ही सवालों के घेरे में आ गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली सरकार ने फरवरी 2016 में अपने अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और कामकाज पर नजर रखने के लिये Feed Back Unit का गठन किया था। 29 सितंबर 2015 को हुई दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग में FBU के गठन को मंजूरी दी गयी थी। उसके बाद तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी ने 28 अक्टूबर 2015 को दिल्ली के मुख्यमंत्री को FBU के गठन का प्रपोजल दिया जिसे मंजूर कर लिया गया था। इस यूनिट में शुरूआत में 20 भर्तियां की जानी थीं जिसके लिये दिल्ली सरकार के उद्योग विभाग की 22 पोस्ट को खत्म किया जाना था, लेकिन बाद में दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्यूरो की 88 पोस्ट में से 20 भर्तियां FBU में करने की बात हुई, क्योंकि ACB भी विजेलेंस विभाग के अधीन काम करता है। हालांकि ACB में जिन 88 पोस्ट को भरने की बात की जा रही थी उसका भी सिर्फ प्रपोजल था, उसके लिए उपराज्यपाल की तरफ से मंजूरी नहीं ली गयी थी।
शुरूआती जांच में CBI ने पाया कि यूनिट में भर्ती के लिये तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी सुकेश कुमार जैन ने 6 नवंबर 2015 को मनीष सिसोदिया को प्रपोजल दिया कि AR Department से मंजूरी ले ली जायेगी। मनीष सिसोदिया ने इस पर सहमति दी लेकिन सुकेश कुमार जैन ने इसकी जानकारी AR Department को दी ही नहीं। विजिलेंस विभाग के अधिकारी ने जांच के दौरान बताया कि भर्तियों के लिये आवेदन जारी करने के बाद इसकी जानकारी AR Department को दी गयी लेकिन कहा गया कि ये भर्तियां उद्योग विभाग में खत्म की जा रही पोस्ट की जगह होगी। लेकिन 25 जनवरी 2016 में तय किया गया कि ये भर्तियां ACB में की जाने वाली 88 भर्तियों में से की जायेंगी जबकि इन भर्तियों की मंजूरी नहीं ली गयी थी। इस बात की जानकारी मनीष सिसोदिया को भी थी कि इन भर्तियों के लिये या यूनिट के गठन के लिये उपराज्यपाल से कोई मंजूरी नहीं ली गयी है।
इस तरह देखा जाए तो सीबीआई ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि इस यूनिट का गठन नियमों को ताक पर रख कर किया गया, उपराज्यपाल से जरूरी मंजूरी नहीं ली गयी, अपने विभाग के मुखिया विजेलेंस सेक्रेटरी को कभी रिपोर्ट या जरूरी जानकारी नहीं दी गयी, सीक्रेट फंड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया और फर्जी बिल बनाये गये। इसकी वजह से सरकार को 36 लाख रुपये का नुकसान हुआ। इसी के बाद CBI ने मनीष सिसोदिया, तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस सुकेश कुमार जैन, आरके सिन्हा ,डिप्टी डायरेक्टर फीड बैक यूनिट प्रदीप कुमार पुंज, फीड बैक ऑफिसर सतीश खेतरपाल और एडवाइजर एंटी करप्शन-मुख्यमंत्री गोपाल मीणा के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच की सिफारिश की थी।
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