अमेरिकी कंपनियों में बने हथियारों को भारत लाने के लिए अब लाइसेंस की नहीं होगी जरुरत।
भारत व अमेरिकी कंपनियां मिल कर भारत में हथियार व अन्य उच्च तकनीकी वाले उपकरणों का निर्माण कर दूसरे देशों को बेच सकती हैं।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : सोमवार को अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्मुर रॉस ने एक कार्यक्रम में एक ऐसे फैसले की घोषणा की जो आने वाले दिनों में न सिर्फ भारत को सबसे करीबी रक्षा सहयोगी बनाएगा बल्कि भारतीय रक्षा उद्योग की तस्वीर भी बदल देगा। यह फैसला है भारत को रणनीतिक कारोबार साझेदार एसटीए-1 का दर्जा देना। इसका सीधा सा मतलब यह है कि अमेरिकी कंपनियों की तरफ से इजाद की गई तकरीबन 90 फीसद तकनीकी या हथियार भारत लाने के लिए अब लाइसेंस लेने की जरुरत नहीं होगी। अभी तक अमेरिकी कंपनियों को इसके लिए वहां के वाणिज्य मंत्रालय से लाइसेंस लेने की जरुरत होती थी। माना जा रहा है कि इस फैसले से आने वाले दिनों में देश के रक्षा क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों की तरफ से अरबों डॉलर के नए निवेश का रास्ता खुलेगा। साथ ही भारत की रक्षा उपकरणों की जरुरत भी काफी कम कीमत पर पूरी हो सकेंगी। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस एक फैसले ने भारत व अमेरिका के रिश्तों में पिछले कुछ महीनों से चल रहे कयासों पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया है। ट्रंप प्रशासन ने बता दिया है कि वह भारत पर कितना भरोसा करता है। यह असलियत में अमेरिकी सरकार की तरफ से हाल के दिनों में भारत के संदर्भ में लिया गया सबसे बड़ा फैसला है। यह बताता है कि अमेरिका भारत को अपने हथियारों के बाजार के तौर पर नहीं देखता बल्कि उसकी रणनीति भारत में रक्षा उपकरणों के निर्माण का ढांचा तैयार करना है। यह फैसला एक साथ कई अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियों को भारत में निर्माण इकाई स्थापित करने के लिए उत्साहित करेगा। क्योंकि अमेरिका में लागत एक बड़ी समस्या है जिसका समाधान भारत उपलब्ध कराता है। भारत व अमेरिकी कंपनियां मिल कर भारत में हथियार व अन्य उच्च तकनीकी वाले उपकरणों का निर्माण कर दूसरे देशों को बेच सकती हैं। इस तरह से अमेरिका ने रक्षा क्षेत्र में सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बेहद मजबूती दी है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि अमेरिका का यह फैसला तब आया है जब पांच हफ्तों बाद दोनो देशों के बीच विदेश व रक्षा मंत्रियों की अगुवाई में टू प्लस टू वार्ता होनी है। अमेरिका ने एसटीए-1 का दर्जा अभी तक सिर्फ नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रिटी आर्गेनाइजेशन) के सदस्य 36 देशों को दिया हुआ है। अभी तक अगर कोई अमेरिकी कंपनी भारत में तकनीकी हस्तांतरण करना चाहती थी या कोई संवेदनशील उत्पाद को निर्माण करना चाहती थी तो उसके लिए पहले अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय से अनुमति लेनी होती थी। अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय आम तौर पर संवदेनशील मामलों में बहुत देरी से मंजूरी देता है या फिर उसे अस्वीकार कर ही कर देता है। ऐसी तकनीकी जिनका हथियारों के साथ दूसरे उपयोग भी हैं, को लेकर अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय का रवैया बेहद कड़ा होता है। यह भारत व अमेरिका के रक्षा सहयोग में सबसे बड़ी अड़चन थी। अमेरिकी रक्षा विभाग का एक आकलन है कि इससे पिछले एक दशक में अमेरिकी कंपनियों को भारत में 10 अरब डॉलर के कारोबार से हाथ धोना पड़ा है। अब अमेरिकी सरकार ने अपनी कंपनियों के लिए भारत में जाने के दरवाजे खोल दिये हैं। हालांकि अभी भारत के स्तर पर भी कुछ कदम उठाने होंगे। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार अपने नियमों को दुरुस्त कर रही है ताकि अमेरिकी कंपनियों को एक पारदर्शी व्यवस्था मुहैया कराई जा सके। भारत व अमेरिका के बीच अभी रक्षा कारोबार सिर्फ 15 अरब डॉलर का है जो तेजी से बढ़ सकेगा। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के इस फैसले ने भारत के लिए एनएसजी की सदस्यता लेने की अनिवार्यता को भी कम कर दिया है। क्योंकि एनएसजी का सदस्य बन कर भारत जिन संवेदनशील रक्षा उपकरणों या हथियारों को हासिल करता अब वह अमेरिका से इस फैसले के आधार पर ले सकता है। यही वजह है कि इस फैसले के बाद भारतीय व अमेरिकी रक्षा कंपनियों के लिए तेजी से गठबंधन होने के आसार है। जिन उपकरणों को भारत विदेशों से खरीदने की सोच रहा था उन्हें अब घरेलू स्तर पर बनाया जा सकेगा। सनद रहे कि हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने भारत को ड्रोन देने का फैसला किया है।