दिल्ली में एक दशक बाद 1200 MW होगी बिजली की मांग

देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ रही आबादी का असर बिजली की खपत पर भी पड़ रहा है

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) :देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ रही आबादी का असर बिजली की खपत पर भी पड़ रहा है। यहां बिजली की अधिकतम मांग 63 सौ मेगावाट तक पहुंच गई है जो न सिर्फ अन्य महानगरों बल्कि कई बड़े राज्यों की तुलना में भी ज्यादा है। आबादी की रफ्तार जिस तरह से बढ़ रही है, उससे अगले दस वर्षों में बिजली की मांग 1200 मेगावाट तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। यदि इसे ध्यान में रखकर बिजली से संबंधित बुनियादी ढांचे का विकास नहीं हुआ तो आने वाले वर्षों में दिल्लीवासियों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ेगा।दिल्ली में बिजली की मांग बढ़ रही है, लेकिन उस अनुपात में बुनियादी ढांचे का विकास नहीं हुआ है। न तो दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड की नेटवर्क मजबूत हुआ है और न ही बिजली वितरण कंपनियों का। इसलिए 55 सौ मेगावाट के ऊपर मांग पहुंचने पर दिल्ली में समस्या शुरू हो जाती है। ऐसे में आने वाले समय यदि मांग 12 हजार मेगावाट पहुंचेगी तो समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।यहां बिजली उत्पादन पर भी ध्यान देना होगा। मांग की तुलना में महज 20 फीसद बिजली ही दिल्ली स्थित संयंत्रों से मिलती है। इस कारण दिल्ली दूसरे राज्यों से मिलने वाली बिजली पर निर्भर है। पर्यावरण का हवाला देकर कोयला आधारित राजघाट बिजली संयंत्र बंद कर दिया गया है तो वायु प्रदूषण बढ़ने पर बदरपुर संयंत्र को भी बंद करना पड़ता है। गैस आधारित दो पावर प्लांट पुराने हो गए हैं, जिससे इनका उत्पादन कम होता है। वहीं, पर्याप्त गैस नहीं मिलने से बवाना पावर प्लांट में क्षमता के अनुसार उत्पादन नहीं हो रहा है।हरियाणा के झज्जर में कोयला आधारित 1500 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्र में दिल्ली सरकार ने निवेश किया है, लेकिन इसकी बिजली महंगी होने के कारण दिल्ली के लिए यह फायदेमंद नहीं है।बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात कही जाती है। अगले दस वर्षो में एक हजार मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से प्राप्त करने का लक्ष्य है, लेकिन इसे हासिल करना इतना आसान नहीं है। इस समय बमुश्किल एक सौ मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है।

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