नागरिकता संशोधन बिल को अमेरिका द्वारा पक्षपातपूर्ण बताने वाले बयान का भारत ने दिया करारा जवाब।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी केंद्र (यूएससीआईआरएफ) को हमारे मामलों में दखल देने की जरूरत नहीं है।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : भारत ने नागरिकता संशोधन बिल (सीएबी) पर अमेरिका द्वारा दिए बयान का करारा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी केंद्र (यूएससीआईआरएफ) को हमारे मामलों में दखल देने की जरूरत नहीं है। नागरिकता बिल (सीएबी) और एनआरसी किसी भी व्यक्ति से धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता नहीं छीनता है। यूएससीआईआरएफ ने नागरिकता बिल को पक्षपातपूर्ण बताया था। रवीश कुमार ने कहा- यूएससीआईआरएफ को इस मामले मे दखल देने का अधिकार नहीं है। उन्हें यहां की स्थानीय समस्याओं की जानकारी नहीं है। वह अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर बयानबाजी कर रहे हैं। अमेरिका सहित हर एक देश को यह अधिकार है कि वह जनगणना कराए और अपने नागरिकों की पहचान करे। ऐसा करने के लिए योजनाएं या कानून बनाए जा सकते हैं। यूएससीआईआरएफ ने सोमवार को कहा था कि लोकसभा में सीएबी के पारित होने पर वह चिंतित है। यह गलत दिशा में बढ़ाया गया खतरनाक कदम है। बिल में धर्म के आधार पर नागरिकता देने या न देने की बात कही गई है। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और संविधान से भी अलग है, जो धार्मिक भेदभाव से परे सबको समानता का अधिकार देता है। आयोग ने कहा- अगर बिल दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो अमेरिका की सरकार को गृहमंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए। नागरिकता संशोधन बिल सोमवार रात लोकसभा में पास हो गया। रात 12.04 बजे हुई वोटिंग में बिल के पक्ष में 311 और विपक्ष में 80 वोट पड़े। इस पर करीब 14 घंटे तक बहस हुई। विपक्षी दलों ने बिल को धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया। गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में कहा कि यह बिल यातनाओं से मुक्ति का दस्तावेज है और भारतीय मुस्लिमों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। शाह ने कहा कि यह बिल केवल 3 देशों से प्रताड़ित होकर भारत आए अल्पसंख्यकों के लिए है और इन देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं, क्योंकि वहां का राष्ट्रीय धर्म ही इस्लाम है। विधेयक अब राज्यसभा में पेश होगा।