(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : प्रमुख मायावती ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। मसूद को बसपा ने पश्चिमी यूपी का संयोजक भी बना दिया है। बसपा में शामिल होने के बाद इमरान मसूद ने कहा, ‘बहन जी के मूवमेंट को मजबूती देने आए हैं। क्योंकि जब-जब बसपा का मूवमेंट कमजोर हुआ है, भाजपा मजबूत हुई है। वहीं, जब-जब सपा मजबूत हुई है, भाजपा को और अधिक ताकत मिली है। भाजपा को केवल बसपा ही रोक सकती है।’
पहले इमरान मसूद को जान लीजिए
इमरान मसूद का जन्म सहारनपुर के गंगोह में 21 अप्रैल 1971 को हुआ। 51 साल के मसूद पांच चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें चार से में उन्हें हार मिली है। 2006-07 में इमरान नगर पालिका परिषद सहारनपुर के चेयरमैन रहे। 2007 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 2012 में भी विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
2014 में जब नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया तो इमरान ने विवादित बयान दिया। तब कांग्रेस ने उन्हें सहारनपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया था, लेकिन वह हार गए। इसके बाद इमरान ने 2017 में विधानसभा और फिर 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ा। दोनों चुनावों में उन्हें हार मिली। 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान वह कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बाद से ही वह सपा में हासिये पर थे।
बसपा को कितना फायदा पहुंचा पाएंगे इमरान?
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘ इमरान को बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संयोजक बनाया है। इसलिए बसपा को मिलने वाले फायदे को समझने के लिए पश्चिमी यूपी को थोड़ा जानना होगा।’
प्रमोद कहते हैं, ‘पश्चिमी यूपी मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां मुरादाबाद और संभल में मुस्लिम वोटर्स की संख्या 47.12% है। बिजनौर में 43.03%, सहारनपुर में 41.95%, मुजफ्फरनगर में 41.95%, शामली में 41.03% और अमरोहा में 40.78% मुसलमान वोटर्स हैं। इसके अलावा पांच ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स की आबादी 30 से 40% और 12 जिलों में 20 से 30% हैं। 15 ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स निर्णायक स्थिति में हैं। इसके अलावा पश्चिमी यूपी में दलित वोटर्स की संख्या भी 20 से 30% है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘ बसपा को पश्चिमी यूपी में दलित वोटर्स का साथ मिलता है। वहीं, मुस्लिम वोट बसपा, कांग्रेस और सपा में बंटते रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में इनका बड़ा हिस्सा सपा के साथ गया था। इमरान मसूद के आने से बसपा दलित वोटर्स के अलावा मुस्लिम वोटर्स का साथ फिर से मिलने की उम्मीद करेगी। अगर ऐसा होता है तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा को इसका फायदा मिल सकता है।’
सपा-कांग्रेस और भाजपा पर इसका क्या असर होगा?
इमरान मसूद अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं को बसपा के साथ जोड़ने में सफल होते हैं तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान सपा को होगा। 2022 में ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं ने सपा के पक्ष में वोट किया था। वहीं, इमरान मसूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा चेहरा थे। उनके जाने से इस क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ और कमजोर हो सकती है।
दलित मतदाता बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं। पिछले कुछ चुनावों में बसपा के प्रदर्शन के बाद दलित वोटर्स का बिखराव हुआ है। इसका फायदा भाजपा को मिला। इमरान मसूद के आने के बाद अगर दलित मुस्लिम गठजोड़ बनता है तो भाजपा में गया ये मतदाता वापस बसपा के साथ जुड़ सकता है।