‘राइट टू प्राइवेसी’ मौलिक अधिकार है या नहीं? SC में फैसला सुरक्षित

निजता का अधिकार यानी राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं, इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. बुधवार को नौ जजों की संवैधानिक बेंच के सामने इस मसले पर सुनवाई हुई.

निजता को मौलिक अधिकार के दायरे में लाने की दलील पेश करते हुए कहा गया कि निजता कई अधिकारों का गुलदस्ता है. दलील दी गई कि ये तमाम अधिकार विधायी और सामान्य कानूनों द्वारा संरक्षित नहीं हो सकते. इसलिए निजता को मौलिक अधिकार माना जाए.

इससे पहले मंगलवार को इस मसले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है. तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया था कि आम लोगों के डेटा प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस लोगों की कमेटी का गठन कर दिया है. उन्होंने कोर्ट को बताया है कि कमेटी में UIDAI के सीईओ को रखा गया है. वहीं गुजरात सरकार की ओर से दलील दी गई है कि निजता के अधिकार को अनुच्छेद-21 के तहत नहीं लाना चाहिए.

बता दें कि संवैधानिक पीठ में इस मसले पर सात दिनों तक सुनवाई की गई. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षति रख लिया है. उम्मीद है कि इसी महीने सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है, क्योंकि संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जे.एस खेहर इसी महाने रिटायर हो रहे हैं.

 

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