शीला दीक्षित को CM प्रत्‍याशी घोषित कर कांग्रेस ने बीजेपी के ब्राह्मण वोट बैंक में लगाई सेंध!

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नई दिल्‍ली: देश के सबसे बड़े राज्‍य उत्तरप्रदेश में वरिष्‍ठ नेता और दिल्‍ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला हैं। अपने इस कदम के पीछे पार्टी की मंशा 78 वर्षीय शीला के सियासी अनुभव का फायदा उठाने के साथ-साथ राज्‍य के ब्राह्मण वोटों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत बैठाई है। ब्राह्मणों को अब तक परंपरागत रूप से बीजेपी का वोटबैंक माना जाता हैं। शीला को सीएम प्रत्‍याशी के रूप में पेश कर कांग्रेस ने सियासत की एक बेहद अनुभवी नेता के साथ राज्‍य की ही किसी शख्सियत को अपने चेहरे के रूप पेश किया है।

शीला का यूपी से गहरा संबंध रहा है। शीला का विवाह स्‍वाधीनता सेनानी तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्‍य रह चुके उमा शंकर दीक्षित के परिवार में हुआ था। यही नहीं, उनके पति स्व. विनोद दीक्षित भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य रहे थे। इस लिहाज से शीला यूपी की बहू हुईं। 31 मार्च 1938 को जन्‍मी शीला की प्रारंभिक शिक्षा  दिल्ली के कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से ली। बाद में स्नातक और कला स्नातकोत्तर की शिक्षा मिरांडा हाउस कॉलेज से हासिल की।

शीला वर्ष 1998 से 2013 तक तीन कार्यकाल में दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री का पद संभाल चुकी हैं। दिल्‍ली में मेट्रो और फ्लाईओवर को लंबा जाल उन्‍हीं के कार्यकाल की देन माना जाता हैं। दिल्‍ली में सीएम पद संभालने के पहले वे केंद्र सरकार में भी मंत्री के तौर पर सेवाएं दे चुकी हैं। 1984 से 1989 तक में वे यूपी के कन्‍नौज से सांसद भी रह चुकी हैं।

सीएम के रूप में दिल्‍ली के विकास का श्रेय मिलने के साथ-साथ शीला और उनकी तत्‍कालीन सरकार पर विभिन्‍न घोटालों के आरोप भी लगते रहे हैं। कॉमनवेल्‍थ, टैंकर और मीटर घोटाले में उन पर गंभीर आरोप लगे हैं। आम आदमी पार्टी के दिल्‍ली में उभरकर आने के साथ ही देश की राजधानी में शीला दीक्षित की ‘आभा’ धीरे-धीरे कम होती गई।

यहां तक कि 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्‍हें आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से हार का सामना करना पड़ा। मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली सरकार ने उन्‍हें केरल का राज्‍यपाल नियुक्‍त कर दिया लेकिन केंद्र में एनडीए सरकार के आने के बाद उन्‍हें यह पद गंवाना पड़ा। बहरहाल, यूपी के लिए पार्टी का सीएम चेहरा बनने के बाद शीला दीक्षित फिर कांग्रेस राजनीति का केंद्रबिंदु बन गई हैं लेकिन देश के सबसे बड़े राज्‍य में लगभग निर्जीव पड़े संगठन और कार्यकर्ताओं में जान फूंकना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। क्‍या शीला ऐसा कर पाएंगी…।

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