हड़ताल पर गए ट्रांसपोर्टर अब असमंजस की हालत में।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में शामिल करने की ट्रांसपोर्टरों की मांग के बारे में कहा कि इसका फैसला सरकार नहीं, बल्कि जीएसटी काउंसिल के स्तर पर होगा।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : बीस जुलाई से शुरू हुआ ट्रांसपोर्टरों का चक्का जाम ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जहां ट्रांसपोर्टरों की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। क्योंकि सात दिन बाद भी चक्का जाम का जरूरी वस्तुओं की आवाजाही पर कोई विशेष असर दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरी ओर शुरुआती मान-मनौव्वल के बाद अब सरकार ने भी हड़ताल को अपनी मौत मरने देने का मन बना लिया है। इस बीच यदि जरूरी चीजों की आपूर्ति पर असर पड़ता दिखाई दिया तो सरकार हड़तालियों के खिलाफ सख्त रुख अपना सकती है। ऐसे में एस्मा भी लगाया जा सकता है। हड़ताल से पहले सरकार ने ट्रांसपोर्टरों को मनाने की भरसक कोशिश की थी। खुद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने उनकी मांगों के संदर्भ में कुछ ऐलान किए थे। जिनमें ट्रकों के एक्सल लोड में 25-35 फीसद तक की बढ़ोतरी, साल के बजाय दो साल में फिटनेस सर्टिफिकेट तथा ओवरलोडिंग पर टोल जुर्माने में कमी जैसे अहम एलान शामिल हैं। गडकरी न केवल स्वयं ट्रांसपोर्टरों से मिले, बल्कि वित्तमंत्री पीयूष गोयल के साथ भी उनकी मीटिंग करवाई। इन बैठकों में सरकार की ओर से ट्रांसपोर्टरों से स्पष्ट कहा गया था कि 18 नवंबर तक हड़ताल को टाल दें। इसके बाद सरकार उनकी अन्य चिंताओं के समाधान का भी प्रयास करेगी। लेकिन ट्रांसपोर्टर नहीं माने और सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए हड़ताल पर चले गए। लेकिन एक सप्ताह बाद अब उनकी स्थिति न घर के न घाट के वाली हो गई है। और वे चक्का जाम खत्म करने का बहाना ढूंढ रहे हैं। ट्रांसपोर्टरों की निराशा उनकी बार-बार की बैठकों और बयानो में झलकती है। ट्रांसपोर्टरों के सबसे बड़े संगठन आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआइएमटीसी) ने, जिसके आह्वान पर इस चक्का जाम का आयोजन हुआ है, बृहस्पतिवार को कहा, ‘हम लंबे समय से सरकार को अपनी तकलीफें बताने का प्रयास कर रहे हैं।..लेकिन लगता है किसी के पास हमारी समस्याएं सुलझाने की फुरसत नहीं है।’ इसी के साथ उन्होंने चक्का जाम के 70-80 फीसद सफल रहने, ह्वाइट गुड्स(कंज्यूमर ड्यूरेबल) की डिलीवरी पर असर पड़ने तथा उद्योग जगत को 30 हजार करोड़ रुपये की चपत लगने का दावा किया। वैसे अंदरूनी तौर पर वह चाहते हैं कि सरकार उन्हें कोई रास्ता दे। ट्रांसपोर्टर कुछ भी कहें, लेकिन सरकार हकीकत को समझ रही है और इसीलिए अब उसने ट्रांसपोर्टरों को अनसुना करने का मूड बना लिया है। हालांकि परिवहन व्यवस्था के साथ हड़तालियों की हरकतों पर उसकी पैनी नजर है। हालांकि इस विषय में औपचारिक तौर पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। पूछे जाने पर सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव (परिवहन) अभय दामले ने कहा, ‘चक्का जाम के बारे में मैं कोई भी टिप्पणी नहीं करूंगा। सरकार क्या सोच रही है, अथवा क्या करने वाली है आदि कुछ भी नहीं।’ हालांकि एक अन्य अधिकारी ने हड़तालियों द्वारा की जा रही जोर-जबरदस्ती पर नाराजगी जताई तथा इसे ब्लैकमेल करार दिया। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में शामिल करने की ट्रांसपोर्टरों की मांग के बारे में कहा कि इसका फैसला सरकार नहीं, बल्कि जीएसटी काउंसिल के स्तर पर होगा। वैसे परिवहन क्षेत्र के स्वतंत्र पर्यवेक्षकों की माने तो चक्का जाम से जरूरी चीजों की आवाजाही पर मामूली असर पड़ा है। परंतु यह स्थिति चक्का जाम से ज्यादा बरसात और राजमार्गो पर जलभराव के कारण पैदा हुई है। जैसा कि हर साल इस मौसम में होता है।