अगर दुनिया में सब शाकाहारी बन जाए तभी धरती को बचाया जा सकता है !!!

एक नवीन अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे खाने की आदतों का पर्यावरण पर असर पड़ता है

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है। इसके चलते जलवायु परिवर्तन का खतरा पैदा हो गया है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इससे निपटने के लिए उचित कदम उठाने की सलाह दे रहे हैं। इसी कड़ी में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि मांस की खपत को कम करके जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। एक नवीन अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे खाने की आदतों का पर्यावरण पर असर पड़ता है। यदि हमें वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को कम करना है तो अपने खाने की आदतों में कुछ बदलाव लाना होगा।वैज्ञानिकों के मुताबिक, हम अपने आहार में मांसाहार को कम करके और पौधों पर आधारित उत्पादों के सेवन की मात्रा को बढ़ाकर धरती को बचाने में मदद कर सकते हैं। मांसाहार को कम करना इसलिए जरूरी है ताकि खाद्य अपशिष्ट को कम किया जा सके। इसी के साथ जब ज्यादा लोग शाकाहार का सेवन करने लगेंगे तो फसलों की पैदावार बढ़ानी होगी। इससे पेड़- पौधों की संख्या में इजाफा होगा, जिससे ग्रीन हाउस गैसों को कम किया जा सकेगा।वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें खाने की आदतों को बदलना होगा। इसका मतलब है कि मांस की खपत में 75 फीसद, सुअर के मांस में 90 और अंडों के उपभोग में 50 फीसद की कमी लानी होगी। वहीं, दूसरी तरफ सेम और दालों का उपभोग तीन गुना और नट्स व बीजों का उपभोग चार गुना बढ़ाना होगाऑप्शंस फॉर कीपिंग द फूड सिस्टम विद इनवायरमेंटल लिमिट्स के नाम से प्रकाशित इस स्टडी के मुताबिक, वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर बढ़ती आबादी को देखते हुए कुछ जरूरी कदम उठाए जाने जरूरी हैं। इनमें से एक तो है रेड मीट के उपभोग में कमी लाना और दूसरा खेती में विकास करना। तभी वर्ष 2050 तक बढ़ी हुई आबादी के लिए खाद्यान उपलब्ध कराए जा सकेंगे। नेचर नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, घटते वन और भारी मात्रा में पानी की बर्बादी जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण हैं। इसके लिए कृषि योग्य भूमि को बढ़ाने की आवश्यकता है।

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