(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली। सरदार सेवा सिंह, यकीनन ये नाम आपके लिए नया सा लग रहा होगा लेकिन असल में ये वो नाम है जिसने विदेश में भारत के उस पुरुषार्थ व पराक्रम का परिचय दिया था जो ऊधम सिंह व मदनलाल ढींगरा जैसा ही था. भरी अदालत में एक अत्याचारी व क्रूर अंग्रेज अफ़सर को मार कर सदा के लिए सुला देने के लिए कितना साहस की जरूरत होती होगी.. उस से पहले भी मिल कर उसको भरी सभा में लाने के लिए कितने धैर्य की जरूरत रही होगी जबकि उसको मारने के पहले भी कई मौके मिले रहे होंगे.और सबसे बड़ी बात ये कि उस समय जबकि धरती भारत की नहीं बल्कि विदेश की रही हो.. उधम सिंह, मदनलाल ढींगरा की तरह ही तरह एक अन्य वीर सरदार सेवा सिंह आज ही प्राप्त हुए थे अमरता को जिनके गुमनामी के दोषी हैं तथाकथित नकली कलमकार और स्वघोषित इतिहासकार..भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर ही रहे थे; पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे। वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे। ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे. सेवासिंह थे तो मूलतः पंजाब के, पर वे अपने अनेक मित्र एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे। उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी। प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।
हॉप्सिन नामक एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने एक देशद्रोही को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागासिंह और वतनसिंह की गुरुद्वारे में हत्या करा दी। इससे सेवासिंह की आँखों में खून उतर आया। उसने सोचा यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएँ कराता रहेगा। सेवासिंह ने सोचा कि हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फँसाकर मारा जाये। इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये। हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्तसिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जायेगी। सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया। हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये। सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा।अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया। जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुँचा। उनके वहाँ आने पर कोई रोक नहीं थी। चौकीदार उन्हें पहचानता ही था। सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी। ये देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया। सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया; पर फिर संभल कर बोला, ‘‘ये पिस्तौल आप रख लें। इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं।’’इस पर हॉप्सिन ने क्षमा माँगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी।
अगले दिन न्यायालय में वतनसिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी। हॉप्सिन भी वहाँ मौजूद था। जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतनसिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे। सेवासिंह ने हाँ कहा। जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है। उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला – इस तरह। हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया। न्यायालय में खलबली मच गयी। सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले सँभाल अपनी पिस्तौल। अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ।’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया। उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया; क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है। यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है। जो गालियाँ भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है। जय हिन्द।’’ उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देेने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फाँसी दे दी गयी।
आज 11 जनवरी को NLN परिवार बलिदानी सेवा सिंह को उनके बलिदान दिवस पर बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है और सवाल करता है उन कथित कलमकारों से कि उन्होंने क्यों गुमनाम रखा ऐसे वीरो को जिनकी गौरवगाथा सदा सदा के लिए प्रेरणास्रोत बन जाती आने वाली पीढ़ियों के लिए.. साथ ही सवाल है एक खास गाना गाने वालों से भी कि क्या सच मे हमें आज़ादी मिली थी बिना खड्ग बिना ढाल ..भारत माता के अमर लाल सरदार सेवा सिंह जी अमर रहें।