मैं हमेशा सोचता था कि मानव स्वभाव को बेवजह बढ़ा-चढ़ाकर फिल्मों और किताबों में पाशविक और राक्षसी दिखाया जाता है, लेकिन अब मैं जानता हूं कि ऐसा वास्तव में भी होता है… हमारे एक अपने ने हमसे विश्वासघात किया, और ‘ब्रूटस’ की भूमिका निभाई. वह मेरे लिए छोटे भाई जैसा था. मैं आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले उसे नहीं जानता था, और हमारी शुरुआती मुलाकात पार्टी की एक बैठक में ही हुई थी. वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह करावल नगर से हार गया था. वह विधायक नहीं था, परंतु काफी सक्रिय था, और मैं देख पा रहा था कि वह पार्टी के काफी विश्वासी लोगों में से एक था और पार्टी उस पर भरोसा करती थी… वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में खासे अंतर से जीता और बाद में उसे दिल्ली के मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया. मैं उसके लिए खुश था, लेकिन आज मैं इतना हताश महसूस कर रहा हूं कि शायद अब कभी किसी पर इतनी आसानी से भरोसा नहीं कर पाऊंगा, शायद अब कभी किसी को छोटा भाई नहीं समझ पाऊंगा. हां, कपिल, तुमने इंसान पर किए जा सकने वाले भरोसे और एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ने वाले मूलभूत मानवीय मूल्यों को पूरी तरह चकनाचूर कर दिया है.
मैंने उसे मंत्री बन जाने के बाद बदलते हुए देखा. वह सार्वजनिक मौकों पर ज़्यादा वाचाल रहता था. टीवी हो, प्रिंट हो या डिजिटल मीडिया, वह ख़बरों में बने रहने का प्रत्येक अवसर इस्तेमाल करता था. उसका व्हॉट्सऐप भी काफी एक्टिव था. उसके ट्विटर फीड और सोशल मीडिया की अन्य गतिविधियों को तुरंत सर्कुलेट कर दिया जाने लगा था. मैं समझ सकता था कि वह खुद को प्रचारित करने में जुटा है. वह सोच-समझकर खुद को पार्टी में राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित कर रहा था, भले ही वह पठानकोट हमले को लेकर (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी को आईएसआई एजेंट कहने का मामला हो, या अफ़ज़ल गुरु की फांसी के मुद्दे पर जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के रुख को लेकर उन्हें खुलेआम शर्मिन्दा करने का मामला हो. पार्टी के भीतर ही इस तरह की फुसफुसाहटें थीं कि वह कुछ ज़्यादा ही आज़ादी ले रहा है, लेकिन उसे बचपना समझा गया. अब हम जानते हैं कि वह भोला-भाला नहीं था, खुद को किसी ‘बड़ी जगह’ पहुंचाने के लिए हर मौके का इस्तेमाल कर रहा था. ये हरकतें किसी ‘स्वयंभू क्रांतिकारी’ की नहीं हो सकतीं, जो भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के लिए बड़े-बड़े बलिदान करने का दिखावा करता रहा हो, और कहता हो कि वह राजनीति में ताकत या पद पाने के लिए नहीं, व्यवस्था को बदलने और अरविंद केजरीवाल के दिखाए रास्ते पर टलने आया है.
लेकिन उस दिन, उसमें आया बदलाव कतई अचानक और कतई अप्रत्याशित था, जो हमारी सबसे बुरी कल्पनाओं से भी परे था. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 4 मई की रात को फोन कर बताया कि उसे मंत्रिमंडल से हटाया जा रहा है. उसका चेहरा उतर गया. उसने धमकाया कि वह अरविंद केजरीवाल और उनकी राजनीति को खत्म कर देगा, और ‘सुनिश्चित करेगा कि अरविंद (केजरीवाल) जेल पहुंच जाएं…’ मनीष भौंचक्के रह गए, समझ ही नहीं पाए कि क्या प्रतिक्रिया दें. संदेश साफ था. मैं नहीं जानता, कि उसने मंत्रिमंडल से निकाले जाने की ख़बर मिलने के बाद बाहर जाकर किसी से बात की थी, या यह किसी ऐसे व्यक्ति की प्रतिक्रिया था, जो मंत्री नहीं रहने के झटके से उबर ही नहीं पाया था. लेकिन अगले ही दिन दिया गया उसका आक्षेपपूर्ण वक्तव्य काफी धमकीभरा था. उसका आरोप कि अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आवास में ही उसकी मौजूदगी में अन्य मंत्री सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपये हासिल किए, कतई अजीब, कतई अवास्तविक तथा किसी दूसरी ही दुनिया का लगता है.
यह बेतुका है, यह हास्यास्पद है. उसका कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने अपने ही मंत्रिमडल के एक सहयोगी से रिश्वत ली. वह ऐसा आरोप लगा रहा है, जो अरविंद के कट्टर दुश्मन भी नहीं लगा सकते. वह एक ऐसे शख्स पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है, जो अपने भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान के लिए ही जाना जाता है; वह शख्स, जिसने एक पूरी पीढ़ी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा दी; वह शख्स, जिसकी खातिर मेरे जैसे हज़ारों लोगों ने अपने-अपने करियर और जमे-जमाए व्यापार छोड़ दिए और फक्कड़ों-सी ज़िन्दगी जीने लगे; उस शख्स पर, जिसने भारतीय राजनीति में असंभव को संभव कर दिखाया और कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि न होते हुए भी न सिर्फ राजनीतिक पार्टी बनाई, बल्कि दो साल के भीतर दो बार दिल्ली में सरकार भी बनाकर दिखाई; वह शख्स, जिसने ‘आप’ को उस समय 67 सीटें दिलवाईं, जब (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी.
लेकिन यही राजनीति है… इसीलिए लोग राजनीति में प्रवेश नहीं करते, और इसीलिए राजनीति का ज़िक्र बदमाशों के आखिरी मुकाम के रूप में किया जाता है.
मुझे पूरा भरोसा है कि छल-कपट के इस खेल में कपिल अकेला नहीं है. मुझे पूरा भरोसा है कि उसके पीछे सबसे ताकतवर लोग हैं, जो हमारे (दिल्ली में) सरकार बनाने के वक्त से ही अरविंद और ‘आप’ की छवि बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. केंद्र की बीजेपी सरकार ने दिल्ली की ‘आप’ सरकार का गला घोंट डालने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया.
कपिल का दावा है कि रिश्वत दिए जाने के वक्त वह मुख्यमंत्री आवास पर मौजूद था, लेकिन वह सही वक्त नहीं बता पाया. मुख्यमंत्री तथा सत्येंद्र जैन की पूरी दिनचर्या सार्वजनिक हैं, और एक-एक सेकंड का हिसाब मौजूद है. कोई भी आसानी से जान सकता है कि वे कब-कब और कहां मिले, और किसकी मौजूदगी में मिले. मुख्यमंत्री आवास के चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, और बेहद आसानी से यह पता लगाया जा सकता है कि कपिल कब और किस वक्त वहां पहुंचा. सच्चाई यह है कि जिस दिन का ज़िक्र हुआ, उस दिन वह वहां गया ही नहीं था. मंत्रिमंडल से बर्खास्त होने के अगले दिन उसने मुख्यमंत्री आवास पर दो बैठकों में भाग लिया. एक बैठक दिन में हुई थी, और दूसरी शाम के समय और दोनों ही बार पार्टी सहयोगी और अन्य विधायक मौजूद थे. उसे मुख्यमंत्री के साथ अकेले में कोई बातचीत या बैठक करने का अवसर नहीं मिला. इन सभी तथ्यों की जांच की जा सकती है. किसी भी जांच एजेंसी के लिए सभी रिकॉर्ड मौजूद हैं. सौभाग्य से जिस दिन वह ‘कथित बैठक’ हुई बताई गई है, सत्येंद्र जैन भी मुख्यमंत्री से मिलने नहीं पहुंचे थे.
इस शख्स का अब आरोप है कि अरविंद टैंकर घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ जांच को रोक रहे हैं. वह खुद जलमंत्री था, और उसी ने 26 सितंबर, 2016 को खत लिखा था कि एन्टी-करप्शन ब्यूरो (भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो या एसीबी) पर उसे भरोसा नहीं है, और जांच एजेंसी उस पर इस घोटाले में अरविंद को फंसाने के लिए दबाव डाल रही है. और अब उसे उसी एसीबी पर नए सिरे से भरोसा हो गया है, और वह अरविंद तथा अन्य ‘आप’ नेताओं के खिलाफ शिकायत करने के लिए उसी एसीबी के पास जा रहा है. अब वह चाहता है कि हम इस बात पर यकीन कर लें कि जो एसीबी पिछले दो साल से ‘आप’ के पीछे पड़ी हुई थी, वही अब न्याय करेगी. पिछले दो दिन से वह लगातार यह राग अलाप रहा है कि ‘आप’ के बहुत-से नेता और पदाधिकारी ‘भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त हैं…’
इस मुकाम पर यह सवाल पूछने से नहीं रोका जा सकता – वह कैबिनेट मंत्री था, विधायक था, पार्टी का सक्रिय सदस्य था, तो वह इतने लंबे अरसे तक चुप क्यों रहा…? ये आरोप उसने पहले क्यों नहीं लगाए – किसी पार्टी फोरम में या बाहर…? वह कैबिनेट से निकाले जाने के बाद इतना ‘पवित्र और शुद्ध’ कैसे हो गया…? और मीडिया क्यों ऐसे शख्स को गंभीरता से ले रही है, जो कैबिनेट में रहते हुए कोई नैतिक साहस नहीं दिखा पाया…? क्यों मीडिया ने उसके शब्दों को ‘ब्रह्मवाक्य’ मान लिया, जबकि उसने सिर्फ ज़ुबानी जमाखर्च करने के अलावा कोई सबूत पेश नहीं किया है…?
अब मुझे इस बात को लेकर गभीर संदेह है कि उसका अचानक इस तरह फट पड़ना फौरी पागलपन था, और मुझे पूरा यकीन है कि यह बहुत बड़े खेल, बड़े गेमप्लान का हिस्सा है, और ‘आप’ सरकार को अस्थिर करने की साज़िश है. नगर निगम चुनाव के दौरान जहां भी मैं गया, मुझे गुस्साए समर्थक और वॉलंटियर मिले, जिनकी शिकायत थी कि जल प्रबंधन के स्तर में अचानक गिरावट आ गई है. जल प्रबंधन दिल्ली की ‘आप’ सरकार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक रहा है. इस तरह की शिकायतें तुरंत उसके पास पहुंचाई गई थीं, लेकिन हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते गए. कोई सुधार नहीं हुआ था, क्यों…? क्या उसने ऐसा जानबूझकर किया था, ताकि ‘आप’ के चुनावी भविष्य को प्रभावित किया जा सके. क्या वह पार्टी को नुकसान पहुंचाने पर तुला हुआ था…? क्या वह बीजेपी के इशारे पर ऐसा कर रहा था…? या किसी अन्य ताकतवर शख्स के इशारे पर…? क्या उसे बीजेपी ने बड़ी और बेहतर चीज़ों के वादे कर बरगलाया था, जैसा अन्य राज्यों में बहुत-से दलबदलुओं के साथ किया गया था…?
मैं जानता हूं कि आने वाले महीने काफी महत्वपूर्ण हैं. इससे भी ज़्यादा बुरी घटनाएं होंगी. हर कोशिश इसीलिए की जाएगी, ताकि सोच के रूप में ‘आप’ और संवैधानिक ढांचे के हिस्से के रूप में उसकी सरकार को खत्म किया जा सके. कपिल जैसे लोग सिर्फ मोहरे हैं. रिंगमास्टर कोई और ही है. इस सबके बावजूद इस तरह की लड़ाइयां हमें मजबूत बना रही हैं, और हमारी इस सोच करी पुष्टि करती हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई आसान नहीं है – आग का दरिया है, डूबके जाना है…
आशुतोष जनवरी, 2014 में आम आदमी पार्टी के सदस्य बने थे…