महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : भाजपा-शिवसेना का गठबंधन विरोधियों पर पड़ा भारी।
रुझानों में अभी तक भाजपा को 103 तो शिवसेना को 56 सीटें मिलते हुए दिखाई दे रही हैं।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना के गठबंधन को जनता सपोर्ट मिला है। रुझानों में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को एक बार फिर से बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है। हालांकि, भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने की जो संभावना जताई जा रही थी, फिलहाल रुझान इस ओर इशारा नहीं कर रहे हैं। बहरहाल, इतना जरूर है कि राज्य में फिर से देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनेगी। रुझानों में अभी तक भाजपा को 103 तो शिवसेना को 56 सीटें मिलते हुए दिखाई दे रही हैं। वहीं एनसीपी 54 और कांग्रेस 45 सीटों के साथ तीसरे और चौथे स्थान पर है। 26 सीटों के साथ अन्य पांचवें पायदान पर हैं। आपको बता दें कि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने यह चुनाव देवेंद्र फडणवीस की छवि को सामने रखकर लड़ा था। रुझानों को देखने से यह बात साफ तौर पर जाहिर हो रही है कि महाराष्ट्र की जनता ने गठबंधन के उस भरोसे को कायम रखा है। आपको यहां पर बता दें कि महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। 21 अक्टूबर को यहां पर 60.46 फीसद मतदान हुआ था। राज्य में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए यह तीसरा मौका होगा जब यह राज्य में सत्ता पर काबिज होंगे। गौरतलब है कि इससे 1995-1999 के बीच राज्य में इसी गठबंधन की सरकार थी। गठबंधन के इस कार्यकाल में पहले मनोहर जोशी और फिर नारायण राणे सीएम के पद पर काबिज हुए थे। इसके बाद 1999-2014 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन राजनीतिक उथलपुथल के चलते राज्य ने पांच मुख्यमंत्रियों को देखा। इसमें दो बार विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण एक-एक बार सीएम बने थे। महाराष्ट्र में लंबे समय तक सरकार देने वाली कांग्रेस फिलहाल सत्ता से काफी दूर हो चुकी है। महाराष्ट्र के चुनावी मुद्दों की बात करें तो इस बार राज्य सरकार ने स्थानीय मुद्दों के अलावा उन मुद्दों को भी जोर-शोर से उछाला जो केंद्र की बदौलत उन्हें मिले थे। राज्य सरकार ने कश्मीर से हटाए गए अनुच्छेद 370 को भी इस बार के चुनाव में भुनाया। भाजपा-शिवसेना ने इसको केंद्र की मजबूती के साथ देश और राज्य की ताकत के तौर पर आम लोगों के सामने जो तस्वीर पेश की उसका उन्हें पूरा फायदा मिला है। महाराष्ट्र की आम जनता ने इस बार का चुनाव में अपना फैसला राज्य के साथ देश की मजबूती को ध्यान में रखकर ही दिया है। इसके अलावा तीन तलाक का मुद्दा भुनाने में भी राज्य सरकार सफल रही है। वहीं कांग्रेस दोनों ही मुद्दों पर सरकार का खुला समर्थन न करने की वजह से पिछड़ गई। इन मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे के तौर पर मराठा आरक्षण की भी इस चुनाव में काफी धूम दिखाई दी। इसके अलावा हाल ही में आरे कॉलोनी में हुई पेड़ों की कटाई के साथ-साथ मेट्रो का विकास भी चुनावी सभाओं में एक मुद्दे के तौर पर सुनाई दिया। शिवसेना ने खुलेतौर पर आरे कॉलोनी के निवासियों के हक में आवाज बुलंद की। हालांकि यह बात अलग है कि जब यह आवाज बुलंद की गई तब तक वहां के अधिकतर पेड़ों पर आरा चल चुका था। लेकिन ये एक ऐसा स्थानीय मुद्दा था, जिसका शोर पूरे महाराष्ट्र में सुनाई दे रहा था। लिहाजा शिवसेना ने इसको समय रहते लपक लिया। वहीं कांग्रेस इसमें भी पीछे रह गई। किसान आत्महत्या और उनकी कर्जमाफी का मुद्दा इस चुनाव में काफी सुनाई दिया लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे को सही तरीके से भुनाने से चूक गई। या ये भी कहा जा सकता है कि सरकार की नीतियों और विकास के रोड़मैप के सामने कांग्रेस की आवाज दब गई। इसके पीएमसी बैंक (पंजाब व महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक) घोटाला भी इस चुनाव के शोर में एक मुद्दा बना। यह घोटाला करीब 6500 करोड़ से भी ज्यादा का है। एक दशक से चल रहे इस घोटाले में बैंक मैनेजमेंट ने एक कंपनी को फंड देने के मकसद से कई फर्जी अकाउंट खोले थे। बाद में इस HDIL कंपनी को 4226 करोड़ रुपये दे दिए गए और बाद में यह कंपनी दिवालिया हो गई। नतीजतन आरबीआई ने न सिर्फ बैंक के कामकाज पर रोक लगा दी, बल्कि बैंक के ग्राहकों को अपनी रकम निकालने के लिए एक लिमिट भी तय कर दी थी। कर्जमाफी की जहां तक बात है तो आपको यहां पर ये भी बता दें कि राज्य सरकार इस बात को लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रही जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज किसान सम्मान योजना के तहत 89 लाख किसानों को कर्जमाफी का फायदा दिलाने की बात कही गई थी। हालांकि 2017 में शुरू की गई इस योजना में 31 जुलाई 2019 तक केवल 43 लाख 64 हजार 966 किसानों को ही फायदा पहुंचा। इनके खातों में 18,649 करोड़ रुपये जमा किए गए। सरकार ने इस योजना पर 34 हजार करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान लगाया था।